Hindi poem on Woman – Men’s Web
क्यों “उनसे” ज्यादा अच्छे लगते हो ?
मुझको ये बतलायो ना….
क्या रिश्ता है, मेरा तुमसे ?
आकर ये समझायो ना |
“साँसों” की गर्मी नहीं है,
फिर भी आस है पाने को…
“राज़” ये गहरा कैसे कह दूं ?
खुल के सारे ज़माने को |
पागल है ये….दिल बेचारा,
ख्वाबो को यूँ, बुनने लगा…
रेत के महल बनाकर अपने,
सपनो में…. कुछ सुनने लगा |
कोई कहे… मुझे, मै दीवानी,
तेरी झूठी,चाहत में…..
ऐसी कश्ती, थाम के चल दी,
जो बिन पतवार, चलाने में |
जिसको भी… ये किस्सा सुनाया,
उसने ही मुझको समझाया….
इस रिश्ते का नाम ना कोई ,
जिसको तुमने, दिल से लगाया |
“पाप” लगाकर, अपने सर पर…
सात जनम…. पछतायोगी,
बाँधा था जो नाता, अपने सजन से…
तोड़ उसे ना…रह पायोगी |
“इश्क” ने कहाँ… कोई सीख को समझा,”
झूठ पर चलना, सीख लिया…
अपने सजन से नाता तोडा,
“प्रेमी” का दिल जीत लिया |
फिर से जवानी…फिर से कहानी,
मस्ती में दिन, चूर हुए…
जिस “खाने” को खाया था… अब तक,
उसके दिन भी…. दूर हुए |
नए “स्वाद” की, नयी सजाएँ…
पाने को भी… मशहूर हुए,
“बदनामी” का डर….. ना, था अब,
हम भी किस्से- कहानी के नूर हुए |
पीछे छोड़ दिया था, दो “फूलों” को..
जिनके कभी हम… चश्मे -बद्दूर हुए,
अपनी ‘हवस” की खातिर…. देखो,
तीन जिन्दगी के….बदनुमा दाग हुए |
दो पल का “नशा”,दो पल की मस्ती…
धीरे-धीरे….छटने लगी,
“अंगारों” पर चलकर, जो पाया था….
उसकी किस्मत,फटने लगी |
“प्रेमी” का मन अब……भरने लगा था,
मेरी मीठी बातो से,
सूनी हो गयी…वो सारी राते,
जिनको सजाया था… हाथों से |
बीच भंवर में, फिर आ बैठी…
बिन पतवार की…. नैया में,
जिसको खेमे वाला…. न कोई,
जीवन पथ की…. डगरिया में |
“पाप” किया था…..जो मैंने खुद से,
उसका न है अब …..मोल कोई,
एक को “धोका”…..एक से “मस्ती”,
बदली “दोनों” की अब…..सोच नयी |
जग ने भी….. मुझको ठुकराया,
“माँ” शब्द भी…..मुझसे कतराया,
“कुल्टा” का सबने…..लांछन लगाया,
“प्रायश्चित” कहीं अब….मुझमें समाया |
थामा हाथ…. किसी आश्रम का,
पाप धुल सके… जहाँ कर्मों का,
“सीख” बन सके…. जहां पर “मोती”,
होने लगी अब तो….उम्र भी छोटी |
स्टेटस-सिंबल बन गया है ….आज “e m a “,
बिन सोच और समझ के…सब चल पड़े,
पर किसी ने नहीं सोचा …..इसके कभी परे,
कि ” Extra marital affair ” है सिर्फ, एक “new way ” |
गर “नारी” ही होगी…. इस “new way” की मिसाल ,
तो कैसे बन पायेगा….हमारा देश विशाल,
जहाँ नारी को शक्ति और भक्ति कहते हैं ,
उसी के चरित्र से….इस “गंगा” को पावन कहते हैं |
“गंगा” के नाम को ….बदनाम न करो तुम,
इसके स्वच्छ जल को यूँ ….प्रदूषित न करो तुम,
गर रोक सकती हो तो रोक लो…..ये आने वाला उबाल,
खुद को मजबूत बना लोगी…..तो क्या कर सकेगा ये “मर्दों का जाल” ||
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