We always miss that we don’t have….and still if we are not able to grab that “something” we start blaming. Here all blame goes to the place where is everything but still missing “something”. And for few less fortunate people that someone is the person whom they never want to give upon, at any cost.
माना की यह मेरा नसीब हैं,
पर यह शहर बड़ा अजीब हैं|
संग हैं अपनो का पर,
कुछ कमी हैं|
खिलखिलती आँखों मे,
कुछ कुछ नमी हैं|
भीड़ मे अकेला यह मन
इसका हर ख्वाब हो पूरा यह मुनासीब नहीं हैं |
हालांकि, यही मेरा नसीब हैं,
पर यह शहर बड़ा अजीब हैं|
चुपचाप गुमसूम बैठा
यहाँ अंधेरा चारो ओर,
ना जान किस के इंतेज़ार मे
रूठा सा लगता हैं|
हर तरफ सन्नाटा सा
चुभता हुआ है शोर,
बस शायद सिर्फ़ तेरी
कमी से लगता हैं|
यहाँ,
हर रात होती गहरी,
उदास हर सहर हैं|
तू क्यूँ इन आँखों से ना दूर
पर फिर भी ना मेरे करीब हैं|
यह शहर बड़ा अजीब है,
पर यही तो मेरा नसीब हैं…..
क्यों,
साथ रह कर अधूरापन,
पास होने पे भी अकेलापन,
तू अपना हो कर के भी,
क्यों पराया सा लगता हैं |
और तो सभी कुछ सही है,
बस तेरी ही कमी हैं,
तू तुझ जैसा क्यों अब नहीं हैं,
तू सबसे अजीज हो कर भी,
क्यों बेगाना सा लगता हैं |
सच,
सबको हर ख़ुशी नहीं मिलती है,
ज़िन्दगी हर बात कहाँ सुनती हैं,
ज़िन्दगी हर बात कहाँ सुनती हैं,
पर मुझे तो जरूरत है तेरी
और तेरी ही कमी खलती हैं
तू क्यूँ इन आँखों से ना दूर
पर फिर भी ना मेरे करीब हैं|
यह शहर बड़ा अजीब है,
पर सच की सीरत भी खुशनसीब हैं,
जिसमे तू बना हमसफ़र
और तू ही मेरा नसीब हैं….
पर यह शहर बड़ा अजीब है……-
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Rachana A.Rathore