1)कालचक्र
कालचक्र की इस नियती से कौन यहाँ बच पाया है?
निषकंलक निरपराध सीता पर भी यहाँ सवाल उठाया है!
सत्य प्रेम की उस मूरत को अग्नि पर भी चलवाया है!
कालचक्र की इस नियती से कौन यहाँ बच पाया है?
रामचन्द्र की इस धरती पर , खुद राम ने वनवास पाया है!
लोक संभालने आए कृष्ण पर , मणिचोरी का आरोप लगाया है!
कालचक्र की इस नियती से कौन यहाँ बच पाया है?
सत्यनिष्ठ हरिश्चन्द्र का,घर-बार यहाँ बिक जाता है!
करूण तपस्वी गौतम बुद्ध यहाँ, पत्थरौ की मार खाता है!
धर्मनिष्ठ इस सुसभ्य समाज ने, खुद शिव को जहर पिलाया है!
कालचक्र की इस नियती से कौन यहाँ बच पाया है?
2)“हार-जीत”
जीत तो एक ना एक बार हर कोई जाता है,
पर हारने वाला बड़ा खुशनसीब हो जाता है।
जीत तो बस पल भर की
यादे ही छोड़ जाती है,
पर हार ज़िन्दगी भर के लिए
बहुत कुछ सीखा जाती है।
जीत तो हमेशा ही हार से बड़ी
मानी जाती है,
पर हार ही तो सीख कर जीत को
हरा जाती है।
जीतने वाला तो बस चंद खुशियो को
जी पाता है, पर हारने वाला टूट कर
संभलना सीख जाता है।
अगर जीत ही जश्न का अफसाना है,
तो हार भी संघर्ष का बहाना है।
अगर जीत मंज़िल का सुकुन है ,
तो हार ही तो रास्तो का जुनून है।
अगर जीत ज़िन्दगी का मकसद है,
तो हार भी दुनिया का सबक है।
जो जीत सफलता की पहचान है,
तो सफलता भी तो हार से ही मेहरबान है।
जो जीत तुम्हारा भरोसा है,
तो हार ने भी तो तुम्हे तराशा है।
जो जीतना तुम्हारी आदत है,
तो हारना भी तुम्हारी इबादत है;
क्यूकी अगर जीत खुदा का वरदान है,
तो हार भी उसी का एक फरमान है।
तो हार भी उसी का एक फरमान है।।
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