कुछ नम, कुछ ग़म – २
1. रूह – मजरूह
आज़ाद थी मेरी रूह इस कायनात में,
गिरफ्त हुई बारी बारी, मां के पेट से ज़िन्दान-ए-दुनिया तक.
चिता की अग्नि या कब्र की मिट्टी भी रिहा न कर पायी,
इस सिलसिला-ए-ज़ंजीर से मुझ मजरूह को.
2. वादाख़िलाफी
हक़ीक़त-ए-हयात का इल्म तो था मुझे, मगर बेइल्म हूँ कैसे एक पल में क़यामत छा गयी?
ज़िन्दगी भर साथ देने का वादा किया था तू ने, तेरे बेदाग़ दामन पर यह दाग़ कैसा वादाख़िलाफ़ी का?
3. सृष्टि का नियम
दिल नाख़ुश है मंदिर के हलचल को देख कर.
बंदा रंज-ओ-ग़म में डूबा है, और ईश्वर मसरूफ है.
सृष्टि का नियम है, कोई हँसे कोई रोये,
और ईश्वर निष्पक्ष हो कर विश्व को चलाये.
4. अंधी इबादत
होगया है हमें इश्क़ उनसे, कभी दीदार तो हुआ नहीं।
अरे, इबादत करते हैं ख़ुदा की, कभी देखा तो नहीं।
5. हार जीत
वह आया, वह निहारा, वह जीता,
मैं बेबस होकर हारी दिल अपना
हार जीत का सिलसिला भी अजीब है
जो जीतता है असल में वह हारता है
और जो हारता है, वह हारकर भी जीतता है।
6. गुनह्गार
ग़म-ए-रुख़सत-ए-मह्बूब इतनी शदिद कि सैलाब्-ए-लफ़्ज़ रोके न रुका
बाद्-ए-फ़नाह भी एह्सास है ज़र्रा-ए-आशियां में तेरे वजूद का.
सुकूं मिला थोडासा, सैलाब्-ए-लफ़्ज़ घटा थोड़ासा
रंज-ओ-ग़म से जंग करते करते जीने लगा थोड़ासा.
इल्ज़ाम है मेरे सर तुझे भुलाने का
तेरी ग़ैरमौजूदगी से समझौता करने का.
तुझे भुलाना कैसा, मेरी रूह में ज़िंदा है तू
तू रुख़सत हुई कहां, मेरी सांसों में बसी है तू.
तेरी अमानत हूं मैं, अपने आप को संभाल रहा हूं
तेरा है यह आशियां, तिनका तिनका संभाल रहा हूं.
इंतज़ार है मुझे उस लम्हा-ए-मौत का
इल्तिजा है तुझसे उस दावत-ए-मिलन का.
तब तक, मेरे हमनवा, जिये जाऊंगा इस उम्मीद को लेकर
बहार बन मौत मेरे हमसफ़र की आगोश में फ़िरसे ले जायेगी.
… श्याम सुंदर बुलुसु
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