Three Hindi poems on woman, mother and world peace. First poem tells that woman should be respected. Second poem talks about sacrifice of mother; and third poem about world peace.
(1) नारी–
नारी एक महान शक्ति है ,
सीखो करना उसका सम्मान।
नारी ने जन्म दिया है तुमको ,
स्नेह धार से सींची है ,
ममता चादर तुम्हे ओढ़ा कर ,
हर पल रक्छा करती है।
अपने चाहे विपदा झेले
तेरे सुख की रखती चाह।
हाथ जोड़ ईश्वर से तेरे
सुख सुविधा की रखती चाह ,
ममता भरा ह्रदय मइया का ,
इसको कभी न भूलो आप।
ईश्वर से ऊँचा आसन उसका ,
अपने उर में रक्खो आप।
नारी ही बहन है आपकी,
प्रेम वो करती अपरम्पार ,
बाँध के राखी तेरे कर में ,
तेरे बल की करती आस।
दिल में उसके चाह भरी है ,
भैया मुझको भूल न जाना ,
मैं तेरी प्यारी बहना हूँ,
इसको रखना हरदम याद।
नारी ही पत्नी है तेरी ,
तुमको देती प्रेम अपार ,
तेरे सुख दुःख की वह संगनी ,
नहीं छोड़ती कभी वह साथ।
तेरी विपदा में वह तुमको
प्रेम अधिक ही करती है,
अपने दुःख को उर में छिपाए ,
सम्बल तुम को देती है।
नारी बिना है जीवन सूना ,
इसको कभी न भूलो आप.
यह मत भूलो नारी संबल ,
जन्म मृत्यु तक हरदम साथ ,
बिना नारी के जीवन सूना ,
इसको तुम्हे निभाना है ,
नारी के महिमा ,गौरव की
रक्च्छा तुनको करनी है।
(2) शत शत नमन है माँ को मेरा —
शत शत नमन है माँ को मेरा
जिसने मुझको जन्म दिया
मेरे हित कष्टों को झेला
मेरे सुख का ध्यान दिया।
गीले शय्या पर वह सोती
सूखे शय्या मुझे सुलाती
जब भी रोता मुझे उठाती
मधुर लोरियाँ मुझे सुनाती।
मधुर नींद मुझमें भरती
ढँक आँचल से दूध पिलाती
मधुर स्नेहिल चुम्बन दे
अंग मेरे मजबूत करे।
प्यार भरी गोदी में वह ले
मेरे दुःख को दूर करे।
पकड़ अंगुलियां मुझे चलाती
मेरे संग पग पग धरती
थका जान झट गोद उठाती
ढक आँचल से दूध पिलाती।
ज्यों ज्यों बढ़ती उम्र है मेरी
मुझमें वो संस्कार भरे
सदगुण के पथ मुझे चलाती
मानवता का पाठ पढ़ाती।
ऐसा ऊँचा भाव है माँ का
कैसे बरनन कर पाऊँ
त्याग भाव की मूरति मइया
कैसे उसको भूल सकूँ।
ऐसी माँ का ऋण है मुझ पर
पूर्ण कभी न कर पाऊँ
सेवा भाव सदा उसके प्रति
शत शत नमन करूँ उसको।
यह श्रद्धांजलि मेरी माँ को
और अधिक क्या कर पाऊँ
आशीर्वाद सदा तू देना
यही विनय हरदम तुझसे
शत शत नमन है माँ को मेरा
जिसने मुझको जन्म दिया
(3) विश्व शांति —
आज सुबह सवेरे उठकर
घर के बाहर खड़ा हुआ,
पूरब दिशा में लाली छाई
और हवा भी पुरवाई।
मुझे सुहाना लगा सवेरा
मेरे मन आनंद भरा ,
नभ मंडल में खग कुल देखो
कैसा कलरव करते हैं ,
झूम झूमके वृछ डालियाँ,
आपस में गले मिलती हैं।
अंधकार के मिट जाने से
प्रकृति प्रफुल्लित होती है
फिर मानव तो चेतन प्राणी
तन्द्रा में क्यों होते हैं
भानु उदय जब होता बन्दे
स्वागत करने उठ जाओ।
राम नाम की सुन्दर ध्वनि से
मन को पूरित कर डालो ,
तभी विश्व में शांति मिलेगी
और मिलेगा सुख विविध।
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