1)किसी अधूरी मुलाकात की बिखरी-बिखरी बात हो तुम,
शायद बादलों से छनकर आती धूप सी सौगात हो तुम।
2)कहाँ अंधेरों में भटक रहा है कब से,
वो अक्स है तेरा, उजाले में दिखेगा।
3)हे तमाश-बीं ये दुनिया,
तमाशा हो तुम;
बेतकल्लुफी से फेरेंगे निगाहें,
मन भर तो जाने दो ज़रा।
4)यूँ किसी को ना दोष दे बेवजह ऐ नादान दिल मेरे,
कभी-कभी यहाँ कुछ चीजें होती हीं हैं,ना होने के लिये!
5)इक दल-दल मे उतरा था मैं,
अब उसकी सबसे गहरी ओर बढ चला हुँ।
मुमकीन हे! ये फितूर मुझे डूबो दे,तिनकों का बंदोबस्त कर रहा हुँ ।।
6)वक्त नज़दीक है; किस्मत का अब कुछ यूँ फैसला होगा,
या तो आज हमें मुकम्मल अपना जहाँ होगा,
या फिर कल कदमों में पूरा आसमाँ होगा।।
7)ये जय-अजय,हर पल विजय,
मन तु इसका प्रतिकार कर,
हे जग वही,तु नव तंरग,
चल अब सृजन नवकार कर,
ये हार हे,तु हार कर,
इसका पूरा सम्मान कर।
8)बस इतना ही फर्क हे ज़रूरत और आदत में;
जिसकी ज़रूरत हो उसके बिना रह नहीं सकते और जिसकी आदत हो उसके बिना रहा नहीं जाता।
9)हे कश्मकश ये कि गुनाह किसका था।
कश्ती भी कागज़ की थी और पानी भी गहरा था।।
10)हमें जानना चाहो तो थोड़ा सब्र रखना साहब ,
खो जाती हैं यहाँ मशालें उजालों में।
11)अजीब उसूल हे ये ज़माने का ,
झूठ किसी को पसंद नहीं ,
और खफा सच से रहते हैं लोग यहाँ।
12)ना कुछ पाने की इच्छा , ना कुछ खोने का डर ,
बस कुछ करने का जुनून ही ज़िंदगी हैं।
13)वक़्त हो चला है अब ,
कुछ करने के लिये , कुछ करने का।
14 )अगर सब ढूध के धुले होते ,तो हर कोई शंकर होता।
15)वो कहने लगे खफा से रहते हो आजकल ,बात क्या हैं ?
मैने कहा हदों में रहता हुँ अपनी ,काम क्या हैं ?
16)लाश की तरह यहाँ आवाम हैं जलने लगी ,
इस शहर का नाम अब शमशान होना चाहिये।