लफ़्ज़ों में ताक़त कहाँ?
कह सकें जो दिल कि बात||
ये तो बस आँखें ही हैं,
जो छलका देतीं हैं कुछ ज़ज़्बात||
अपनी हर ख़ुशी दे डाली,
क्या होगी इससे बड़ी सौगात||
जाने क्यों तुम समझ न पाए,
होंगे कुछ मुश्किल हालात||
कभी-कभी ऐसा लगता है,
खंज़र घुपा हो सीने में||
रात बीत जाती आँखों में,
डूब जाता दिन रोने में||
अक्सर वो मुझसे कहते,
तुम मेरे हो सब तेरा है||
कौन यहाँ किसका कितना है,
वक़्त-वक़्त का फेरा है||
कहने को तो हर कोई,
कह ही देता है अपनी बात|
ऐसी नाजुक हालातो में,
कम पड़ ही जाते हैं अलफ़ाज़||
नाम कभी आ जाता लव पे,
बातों बातों में बे-बात||
तब सहमी सहमी सी आँखों से,
चुपके से ढलते जज़्बात||
खुदा करे हर रोज़ मिले,
एक नया मदारी जीवन में||
रोयेंगे जब समझेंगे,
क्या रखा था अपनापन में||
फिर भी अगर कभी लग जाये,
भूल हुई पर सच्ची थी||
याद हमें तुम करना दिल से,
पा जाओगे अपने मन में||
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