This Hindi poem highlights the pain of a writer in which She writes poetry just for Herself. But now one of Her fan posted Her poetry On His Facebook Page and got the permission for the same. She agreed but still requested Him to kept in mind that Her words are meant for “Not for sale”.
इश्क के बाज़ार में अब …..बिकने लगे हैं हमारे “शब्द” भी देखो ,
एक सौदागर आकर के …..हमारे “शब्दों” की बोली लगा गया ।
अभी तो इन “शब्दों” ने किसी की गर्मी पाकर …….मचलना सीखा था ,
और इतनी ज़ल्दी उसने उन्हें अपनी ……महफ़िल~ए~नूर में बिठा दिया ।
वो कहता है कि चुराया नहीं …..हमारा कोई भी “कलाम” उसने ,
मगर हर “कलाम” को ज़माने से ……..बस रु~ब~ रु उसने करा दिया ।
हम हकीकत में जी रहे थे अब तक ……अपने इन “कलामो” में ,
लेकिन उन पर पर्दा गिराने का ……शायद वक़्त फिर से आ गया ।
यूँ तो ख़ुशी है हमें ये जान ……कि कोई डूबता है हमारे “कलामो” में भी ,
दो पल के लिए ही सही …..मगर उलझता है हमारे लिखे तरानों में भी ।
मगर उन तरानों को ……बिठा सौदागरों की नुमाइश में ,
उसने बुलावा भेजा हमें …….पीने का “मदिरा” उनके संग प्यालो में ।
मेरे “शब्द” अचानक रुक से गए ये सोच …कि क्या वो भी बाजारू बनेंगे ,
अब तक जो खुद ही मचलते थे ……उनके पैरों में भी क्या अब ताले लगेंगे ?
गर महफ़िल में जा मेरे “शब्दों” को ……वहाँ के काशिन्दो को खुश करना ना आया ,
तब क्या मेरे “शब्द” भी घुट-घुट कर ……मेरी तरह ही जिएँगे ?
जो नाचते थे अब तक …..बाँध पैरों में घुँघरू खुद ~ब ~खुद ही ,
क्या वो औरों के लिए …….अपने घुँघरू भी यूँ अब तोड़ देंगे ?
ए सौदागर सुन इल्तिजा मेरी …..कि तेरी महफ़िल में मेरे “शब्द” ……सजने जरूर आएँगे ,
मगर उन “शब्दों” की कभी बर्बादी ना हो ……इसी शर्त पर वो उसे रंगीन बनाएँगे ।
ये तन्हाई को दूर करते हैं मेरी …….बस इसलिए इन्हें मचलने की इजाज़त होती है ,
इनमे रंग “इश्क” का होता है …….बस इसलिए इनकी यहाँ “Web” पर कद्र होती है ।
गर इन्हें भी हमने गुलामी से यहाँ बाँध दिया ……तो ये भी हमारी तरह चल ना पाएँगे ,
इसलिए सौदागर तुम्हारी महफ़िल में ……कभी इनको बेचने की बोली ना हम लगाएँगे ॥
***