summary: poem describes how beautiful were college days,poet wishes to relive them.but all in vain.
गुरु छतरी के दिन
कॉलेज की पढाई के खत्म होने के दिन देखते है सब ,
सुन्दर सपने संजोते है सब ,
उतावले होते है कॉलेज से जाने को ,
कॉलेज के प्रोफेसोरो द्वारा बनाई गयी छतरी नुमा सुरक्षा ,
दुश्मन सी प्रतीत होती है ,
कब हटेगी छतरी ,
कब छटेंगे ये मिड सेमेस्टर -एंड सेमेस्टर के बादल ,
कब होंगे हम सच में आज़ाद ,
इस दुश्मन कोर्स वर्क से ,
ज़िंदगी का अगला पढ़ाव अब आने वाला है ,
कोई कम्पनी ,कॉलेज, इंस्टिट्यूट में नौकरी पायेगा ,
कोई विदेश में पढ़ाई में लग जायेगा ,
कितना मज़ा आयेगा——-
पर न जाने क्यों पढ़ाव पर पहुँच कर ,
सब धुंधला धुंधला सा नज़र आता है ,
दिल में रह रह कर ,पिछली यादे सताती है ,
लगता है काश !वह समय रुक जाता ,
सोचते थे कॉलेज के चार साल मुश्किल हैं ,
पर दिल दुहाई देते नहीं थकता ,
पीछे कुछ रह गया है ,
अरे इस नए पढ़ाव पर हमें कोई भी पूछता नहीं ,
यह ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है,
कोई टांग खींचने ,की सोचता नहीं ,
यहाँ तो हजारों रुपये का हिसाब है ,
वहाँ तो अहमियत थी 5 – 10 रूपये की भी l
कोई सहपाठी नहीं ,
कोई तो आये !जो मुझे नए नए नामों से पुकारे ,
कौन है, यहाँ जो मेरी फालतू की बकवास सुन जायेगा ,
कोई तो होगा , मेरी असफलताओं पर दिलासा दे जायेगा ,
काश! कोई तो मेरे साथ बाहर चले चाय पी जाये ,
बिना हिचक मुझे ,कोई तो सुझाव दे जाये
कोई तो मेरी कमियों से मुझे उबारे ,
मेरी काबलियत पर मुझे भरोसा दिलाये ,
कोई नहीं, कोई नहीं ,का स्वर क्यों गुंजता है बार-बार —–
कहाँ है ,जो मेरी ख़ुशी में खुश होते थे ,
कहाँ है,जो मेरे साथ बिना बात घंटो हँसते थे ,
कहाँ है ,वो जो लड़की से कभी बात करते देख लेते थे ,
तो हॉस्टल को ठहाको से सर पर उठाते,
कहाँ ,है जो मेरी ग़मी में ग़म करते थे ,
हाँ वो कोई नहीं मेरे प्यारे दोस्त थे दोस्त ही तो थे ,
कैसे गये छुट ,कहाँ गये वो ,कोई तो बताये —–
गुरु जी ,हमें क्षमा कर दो,
मेरे दोस्तों सहित, गुरु जी,फिर से मुझे अपनी सुरक्षा छतरी के नीचे ले लो—-
Sukarma Thareja
Ch. Ch. College
Kanpur