उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ,
मुझे नहीं पसंद वो ….. ऐसा भी नहीं ,
मुझे है पसंद वो …… ऐसा मुमकिन नहीं ।
उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ।
वो दीवाना पता नहीं …….. क्या सच कहे और क्या झूठ ?
मैं अंजान बनकर लगा देती ……. उस सब पर एक फूँक ,
वो प्यार नहीं , कुछ और है ….. पर है क्या , क्या पता ?
वो तड़प है सिर्फ दो पलों की …… जिसमे दिल मिला और जिस्म गया ।
उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ।
वो हठी, वो नादान …… लिखना चाहता है मेरे दिल पर एक नाम ,
मैं हठी , सब कुछ जान ……. नहीं चाहती वो लिखे कोई नाम ,
वो तब भी इज़हार करता ……. अपनी भोली सी मोहब्बत का ,
और चाहता मैं भी करूँ ……. कि मुझे भी है इंतज़ार उसके दो पलों का ।
उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ।
वो बहे खुद ~ ब ~ खुद …. चाहे मुझे भी अपने संग बहाना ,
मैं बहूँ कैसे भला …… उस दरिया में जिसका नहीं कोई ठिकाना ,
हर बार वो रूठ कर …… मुझसे अपनी शर्तें मनवाए ,
हर बार उन शर्तों से …. एक नई कहानी बनती जाए ।
उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ।
वो अनजाने में दे जाता ……. हर बार एक टीस मोहब्बत की ,
मैं जान कर ले लेती हूँ …… हर वो टीस शरारत की ,
फिर दर्द और बेचैनी तब ….. हम दोनों के बीच गहराती जाए ,
वो दम भरे मैं दम भरूँ ……. इस दम में गाड़ी आगे बढ़ती जाए ।
उस उबलते तूफ़ान को …….. मैंने बार-बार रोका ,
उसका हर एहसास मुझे …… लगा एक धोखा ।
मैं गिर पड़ी गश खा-खाकर ……. उस दीवाने की पागल मोहब्बत में ,
लफ़्ज़ों से कह देती हूँ तब …. जो सुनना चाहता था वो बीच मोहल्ले में ,
उस उबलते तूफ़ान को …… रोक पाना अब नामुमकिन था ,
वो धोखा और फरेब ही सही ……… पर एहसास एक अनोखा था ॥
###