This Hindi poem highlights the pain of a beloved writer in which She was busy in some sort of writing late night but unable to do that as every time “A Thought” of Her Lover made Her disturbed as She wanted to write something on him but without His physical presence, all his thoughts have lost which made Her to stop writing further on any work.
बहुत कुछ था कल रात लिखने को मेरे पास ……… मैं लिखती गई ,
बस नहीं था तो तेरा ……… “एक ख्याल” ,
जिसे मैं ज़हन में अपने कहीं ………. ढूँढती रही ।
मगर वो नहीं मिला ………. आखिर मिलता भी तो कैसे ?
था तो “एक ख्याल” ही ना ,
जब सामने तू था ही नहीं ………. तो वो आता भी तो कैसे ?
फिर अचानक से एक हूँक उठी ……… कहीं कोने में इस दिल के ,
पाने को वो तेरा ……… “एक ख्याल” ,
सोचा कि मिलने चलूँ ………. क्यूँ ना मैं तुमसे ?
मैंने पीछा किया ………. तेरे आशियाने का ,
लाने मन में वही वापस …… तेरा “एक ख्याल” ,
जहाँ अक्सर बैठ सुनता था तू ………. फ़साना मेरे आने का ।
तेरा वो “एक ख्याल” मुझे ……… तुझ पर लिखने को कुछ कहता था ,
मगर नहीं आ रहा था वापस यहाँ तेरा वो ……… “एक ख्याल” ,
जो मेरे ज़हन की गहराई में से ………. मुझे सीपी और मोती चुनने को कहता था ।
मैं उस गहराई में उतरने लगी ………. अपने हाथ की कलम को थामे ,
पाने को तेरा वो नया …… “एक ख्याल” ,
मगर तेरा वो नया ख्याल ………. मचा रहा था मेरे अंदर एक और बवाल ।
मैं सोचने लगी कि भला “ख्याल” भी …………. कोई वस्तु है क्या ?
जिसे जब चाहें खरीद लें ,
बिना किसी के साथ के ……… कैसे उसे अपनी धमनियों में फिर सींच लें ?
नहीं आया , नहीं आया देख ………. आज कोई भी तेरा “ख्याल”,
मेरे मन में नहीं आया ,
बहुत कुछ था लिखने को अभी बाकी ………. सिर्फ तेरा वो “एक ख्याल ” ही था जो मुझमे नहीं समाया ।
मुझे उस “ख्याल” को ना पाने का दुःख …………. अब परेशाँ करता है ,
वही तेरे लिए आता था जो कभी ………. “एक ख्याल” ,
तेरे ना मिलने से अब कहीं ……… वो मेरे अंदर ही अंदर कहीं गश्त करता है ।
मैंने फिर से लिखना शुरू किया वही किस्सा ………. जिसमे मैं पहले से ही डटी हुयी थी ,
ये सोच कि क्या हुआ जो नहीं आया आज ……… वो “एक ख्याल” ,
मगर चंद शब्दों के लिखने के बाद ही …………. आज उन बाकी के शब्दों की काया भी टूटी पड़ी थी ।
मैंने फिर सोचा कि आखिर क्या है अब बाकी …………. जो मुझे लिखने से इस तरह से रोक रहा है ,
फिर समझ आया कि वो बस तेरा ही है ………. “एक ख्याल” ,
जो अपने होने के एहसास से मुझे ……… कहीं अंदर ही अंदर से तोड़ रहा है ॥
***