तेरे संग ओ दीवाने ……….
हम भी चले देख पाने ,
खुशियाँ इस दो जहान से ।
सोचें ना समझें कुछ भी ,
बस तेरी मर्ज़ी में ही ,
लुटने लगे हैं ये दिल थाम के ।
बहकी सी है जवानी ,
उस पर आई रुत मस्तानी ,
तूने किया और जवान रे ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
रोकें तो कैसे रोकें ,
खुद को हम कैसे टोकें ,
हस्ती मिटा ले तू भी प्यार से ।
तूने किया इशारा ,
दिल ने फिर तुझे पुकारा ,
बंद आँखें करके हम चले आए ।
सपनो में लुटने को फिर ,
तेरी नज़रों में बिकने को फिर ,
पागल दिल को ये कह आए ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
प्यासी सी धरती को तू ,
प्यासे से अम्बर से ,
थोड़ी रस की फुहार दे ।
भीगने दे उसको भी तू ,
अपनी ही मस्ती में ,
खुद को भी थोड़ा और भिगा सा ले ।
अंजानी सी डगर थी ,
फिर भी तेरी तलब थी ,
तेरा नशा सा ऐसा छा गया ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
जानते-समझते हुए ,
अनजान बन के पगले ,
तेरी बातों में रस हमें आ गया ।
उन खुशियों को ढूँढने ,
तेरे संग झूमने ,
बावले से हम फिसल गए ।
कभी तुझसे ना-ना करें ,
कभी तुझसे हामी भरें ,
अपनी ही नज़रों में कभी गिरें ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
खुशियों को पाने की खातिर ,
रात-दिन बनते हैं शातिर ,
फिर भी हैं अक्सर इसमें उलझ जाते ।
कभी फिर भागा करें ,
छोड़ के ये माया नगर ,
कभी इसमें लौट के फिर गिर जाते ।
बेचैन दिल ये कहता ,
जिन सपनों में तू है रहता ,
उनकी तलब से दिल को सँभाल ले ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
वरना या तो ये तलब जलेगी ,
या इस पर कोई बिजली गिरेगी ,
जिसका ना दे पाएगा तू जवाब रे ।
तेरे संग ओ दीवाने ,
नए गीतों की धुन सजाने ,
बिकते हैं रोज़ बड़ी शान से ।
तेरे संग ओ दीवाने ……….
हम भी चले देख पाने ,
खुशियाँ इस दो जहान से ।।
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