This Hindi poem highlights the social issue of a man who after some frustration became fugitive from the society and due to this act He became the laughing one for others. But If this act of fugitive has done for some good act , then He is proud to be called with such adjective.
लंका में आग लगाने को ,
गर हनुमान बन कर विनाश करना जरूरी हो ,
तो हाँ मैं भगोड़ा हूँ ।
द्रौपदी की लाज बचाने को ,
गर कृष्ण बन कर वस्त्र देना जरूरी हो ,
तो हाँ मैं भगोड़ा हूँ ।
भगोड़ा वो नहीं …………. जो फिर से शस्त्र उठाने को तैयार रहे ,
भगोड़ा वो नहीं ………. जो सबके सामने पारदर्शिता को प्रस्तुत करे ,
भगोड़ा वो है …………. जो पीठ पीछे अपनों को ही घायल करे ,
भगोड़ा वो है ………जो दूसरों को लूट-लूट कर अपना ही हमेशा घर भरे ।
एक पद को ठुकराकर गर दूजे पद पर ,
कुछ करने की चाहत से ये दिल आबाद रहे ,
तो हाँ मैं भगोड़ा हूँ ।
बहुत से नासमझों को समझदारी की एक सीख देने से ,
गर ये देश संभल सके ,
तो हाँ मैं भगोड़ा हूँ ।
मेरी बातों को अपने दिल में सब मेरी ही तरह उतारो ,
आओ भगोड़ा बन कर ही मेरी तरह तुम इस देश में भागो ,
गर संभल सके ये देश तुम्हारी भगोड़ेबाजी से ,
तो हाँ हम सब भगोड़े हैं ।
भगोड़ा बनना कोई अपराध नहीं ,
हर भगोड़े के अपने भागने का अंदाज़ एक अलग सही ,
तभी तो मैं भी एक भगोड़ा हूँ ।
मैं कहता हूँ कि कहो मुझे भगोड़ा ,
ये शब्द मुझे और विश्वास दिलाते हैं ,
क्या पता मेरे भागने से ही कुछ मूर्खों की अकल में ,
नए तार झनझनाते हैं ।
समुद्र मंथन में विष पीने को ,
गर शिव बन कर जटाएँ धरना जरूरी हो ,
तो हाँ मैं भगोड़ा हूँ ।
भगोड़ा वो होता है …………. जो भाग कर तेज़ी से ,
मैदान के एक छोर से ,
फिर घोड़े पर सवार होकर वापस आए ,
उसी मैदान के दूजे छोर से ।
मगर इस बार दूजे छोर पर ,
नए रास्ते उसके समक्ष हों ,
जिस रास्तों को छोड़ने पर नाम “भगोड़ा” उसे कभी दिया था ,
आज वही सब रास्ते उस “भगोड़े” के आगे परस्त हों ।
गर मेरे भी नए रास्ते परस्त करते हैं शत्रुओं को ,
तो सौ बार मैं यही कहूँगा ,
कि हाँ मैं भगोड़ा हूँ ………हाँ मैं भगोड़ा हूँ ॥
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