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Hindi Poems on Indian Women
(Note: Image does not illustrate or has any resemblance with characters depicted in the story)
Photo credit: anitapeppers from morguefile.com
महिला सशक्त रंग
होली तो प्रतीक है,
त्रिकोणीय प्रहलाद-हिरणाकश्यप,
होलिका दन्त कथा की ,
होली तो प्रतीक है ,
बुराई पर अच्छाई की विजय कीI
गली-गली कूचे-कूचे,
जलती है, ढेर सारी होली,
उसके बाद आती है, रंग खेलने वाली होली,
वह तो प्रतीक है, स्नेह एवं सच्चाई कीI
होली के रंग है, खुशियों के ढंग हैं,
पर आजकल वह होली,
तो फीकी होली सी लगती है,
इसीलिए कहती हूँ होली सो होलीI
भारी विडम्बना है,
बलात्कार की चीख पुकार है,
बलात्कार के बाद,
जलते नहीं पुरुष,
जलती है महिलाएं ,
इसीलिए दब गयी है, कहीं,
हमारी गुजिया मिष्ठान वाली होलीI
क्या नैतिक मूल्यों से विहीन हो गया है समाज?
बढ़ती अमानवीय घटनाए कम करने का,
कौन करेगा प्रयास ?
क्या तिल-तिल घुटती महिलाओं को सशक्त करना ,
फर्ज़ नहीं हमारा ?
क्यों दशहत में रह रही है, कुछ महिलाएं ?
आओ प्रयास करें,
शुभ अवसर पर होली के,
इन आलौकिक महिलाओं की जिन्दगी में,
बेशुमार पिचक्कारियों से,
सौहार्द के प्रतीकात्मक,
सुन्दर रंग, तुरन्त भर दें I
इनको सुशिक्षा के लिये ,
सुन्दर सुरक्षित माहौल दें,
साथ खड़े हो, इनके सुख, दुख में,
सहयोग दें , उन्हें अपने ,
पैरों पर, खड़े होने में I
तभी तो अमानवता से शोषित ,
महिलाओं का दुख कुछ कम होगा ,
मानवीय गुलाल अबीर के बिखरते,
इन्द्र धनुषीय रंगों से,
प्रत्येक महिला के मन का बोझ,
विजय उल्लास एवं सुकून में
परिवर्तित होगा ।।2
तभी तो होली का सच्चा रंग,
शोषित एवं पीड़ित महिला के ,
सशक्ति करण की, नींव का ,
पक्का , प्रेरणा रंग होगा ।।2
जीवन जीने की कला
विपरीत परिस्थतियों में ,
घोर परेशानियों में
टूटती ज़िन्दगी को ,
खुद में समेटना ,
विषमताओं से लड़ना ,
ना होकर दर्द से हतोत्साहित ,
लेना संबल दर्द से,
लेकर प्रेरणा दुःख से ,
दर्द को सकारात्मक मोड़ देने,
का नाम है ,
जीवन जीने की कला l
सीढी ,पीड़ा नुमा ,
पर हँसते हँसते चढ़ना,
अप्रिय घटनाओं को,
दबी भावनाओं को,
कार्यों में ,रचनात्मक,
अभय हिम्मत से,
प्रस्तुत करने का,
नाम है ,सर्वश्रेष्ठ ज़िंदगी की ,
सच्ची प्रस्तुति ,
यानि जीवन जीने की कला l
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सुकर्मा रानी थरेजा ,
पूर्व छात्रा-आई आई टी –कानपुर,
यूपी ,इंड़िया