Dedicated to my dear women who don’t know how special she’s and what she is for our society …. .
ख्वबों का एक अाशियां बनाया था ; टूटा जो इस कदरफिर ढ़ला ना जो
हमकदम, हमदर्द कि पनाह में
मैं भी मजबूर
दरमियाँ बस रुसवाईयाँ हमारी
एक हाल मेरा
अनेक सवालात-ए-ज़माना
गुज़ारा नादानीयों सा होता नहीं …..
बेकसूर
बादस्तूर
वो अंधेरी काली सदियों सी लम्बी रात काटे नहीं कटी
तमाम उमर
गवाईं
लबों के पन्नों पर फिर बेवफ़ाइ कि कहानी दोहराई
ग़िला नज़रों का ग़ुमनामी ने ठहराई
वासता सदियों का
लमहा-लमहा धंधला होता चला
झूठी कस्में
अधूरे वादे
ज़िन्दगी भर के इंतज़ार का खोखला दावा …
सीना छल्ली कर चला ॥
किरण कि हल्की सी रौशनी का
हलका सा वो छलावा मेरा सीना ज़ख्मी कर चला ….
ख्वाब अनगीनत दिखलाकर
वो मेरे स्नेंह छोटा सा आशियाना
उड़ चला तूफ़ान के भँवर में
मेरे सपनों का जहान डूब चला फ़रेब के भँवर में
मैं
पुकारती चली ए मेरे हमनवा
और डुबा दे चला ज़िनदगी के सफ़र में
हशर मेरा तबाह कर चला ज़िन्दगी के सफ़र में ॥
अब बस मैं हूं
दिल मेरा सूना आँगन सा
आौर
तमाम एैहसास मेरे कलम से
लिखती जा रही हूं
गुनगुनाती जा रही हूं
अपनी पहेली सी ज़िन्दगानी सुनाती जा रही हूं
मैं चलती जा रही हूं
मैं चलती जा रही हूं
आसूँओं को पीति जा रही हूं
गम़ को भुलाती जा रही हूं
अधूरा सफ़र तय करती जा रही हूं ॥
लुटानें को भले डौलर नहीं जेब में
मगर मैं मुसकान बिखेरती जा रही हूं …..
अब बस ,
खोज में निकलती जा रही हूं
सीख के पढ़ाव पर बढ़ती जा रही हूं
इसलिए अब बस खामोश सा अफ़साना सुनाती जा रही हूं ……
वो गिरी ,संभली
उठी , चली
फ़िर गिरी
लेकिन हार ना मानी
वो आगे बंढ़ी
पर हार ना मानी
तुम भी दिखलाना उसको
सबक सिखलाना उसको
खोटा सिक्का समझ तुम्हें ठुकराया
जिसनें ….
तुम,
अपनी तकदीर का सितारा खुद बनो
तुम मामुली नहीं
तकदीर हो अपनी
कामियाबी चूमें कदम कुछ एैसा करो
दुनियाँ में हो तुमहारा कुछ एैसा करो ……
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