हमने भी किसी पे अपना नूर बिखेरा था ,
पर चाँद को तो कौन ही छू पाया है l
दिल ने भी किसी पे अपना जाम उडेरा था,
पर इस जाम को तो कौन ही पी पाया है l
इक अजनबी आस ने जगाया था एहसास,
ना चाहते हुए भी मंज़िलें आ गयीं इतने पास ,
आँखों के चिरागों नें भी किसी पे,
अपना प्यार बिखेरा था,
पर उन चिरागों को तो कौन ही जला पाया है l
जलते हैं उन्हें देख कर हम दिन रात ,
सीने में एक आँग हैं , चाहिए एक बरसात,
बरसात ने भी हम पे अपनी बौछार की थी,
पर इस आँग को तो कौन ही बुझा पाया है l
उसे भुलाने की चाह , उसे करीब लाती गयी ,
दिल में लगी आँग हमें और जलाती गयी,
आँग सुलगने की कोशिश और आँग लगाती,
दिल की तड़प उसकी और याद दिलाती,
उसे मिटाने की हर कोशिश की,
और दिल नें सहे हजारों ज़ख़्म,
उन ज़ख्मों के निशानों को तो,
कौन ही मिटा पाया है l
हमनें भी किसी पे अपना नूर बिखेरा था,
पर चाँद को तो कौन ही छू पाया है l
जब मिली नज़र से नज़र,
दिल कर बैठा एक कसूर l
चाह लिया एक पत्थर को,
इसमें मेरा ही तो है कसूर l
अब,
समझ गया हूँ मैं
जीने का एक ही तरीका है,
उसे मिटा दे l
मिटा दे अपनी यादों से,
मिटा दे अपनी इन आँखों से…..
पर,
दिल है इतना अकेला की,
उसे मिटाने से डरता है,
बार बार कोशिश करता है,
हर बार तड़प कर मरता है….
और दर्द में डूबा हुआ बस यह ही कहता रहता है….
हमने भी किसी पे अपना नूर बिखेरा था ,
पर चाँद को तो कौन ही छू पाया है l
दिल ने भी किसी पे अपना जाम उडेरा था,
पर इस जाम को तो कौन ही पी पाया है l
हमने भी किसी पे अपना नूर बिखेरा था ,
पर चाँद को तो कौन ही छू पाया है l
This is how love hurts..
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