This Hindi poem highlights the mental state of an ill person where every other person of Her surrounding was trying to demoralize Her on the pretext of asking Her well being. But later Her Husband tried to boost up Her moral and changed Her thinking forever. Through this poem the writer is requesting for all those healthy persons to fulfill their moral duty by boosting up the moral of a sick and unhealthy one.
सुखी कौन ?
वो जो है एकदम स्वस्थ ,
या फिर वो जो है ,
किसी बीमारी से ग्रस्त ।
अभी हाल ही में मुझे पता चला ,
कि मुझे भी ही गई है इस ज़माने की आम बीमारी ,
जिसका नाम है -“डायबिटीज” और जिसे लोग कहते हैं ,
कि ये है अमीरों की इस दुनिया से शान से जाने की तैयारी ।
सुनकर मैं भी बहुत दुखी हुई ,
और बार-बार मुझे रोना सा आया ,
अपनी बेबसी और लाचारी का ,
अंजाम समझ में धीरे-धीरे से आया ।
लाखों मेरे चाहने वाले ,
मुझे तरह-तरह से दिलासा देने लगे ,
कोई शब्दों के मायाजाल में मुझे उलझा ,
तो कोई मरने वालों का उदाहरण देने लगे ।
मैं चुपचाप से उन सबकी हिदायतें ,
एक कोने में बैठ सुनने लगी ,
कौन अपना है और कौन पराया ,
इस बात को सोच मन ही मन हँसने लगी ।
वो जो मुझे ये समझा रहा था ,
कि अब मेरा अंत बहुत निकट सा है ,
या वो जो मुझे बता रहा था ,
कि मेरे अंत का अंजाम बहुत कठिन सा है ।
तभी मुझे समझाने ………
मेरा अपना मेरा हबीब आया ,
जो मेरे चेहरे की उदासी देख ,
मेरे अंतर्मन को खिलखिलाने की एक तरकीब लाया ।
बातों ही बातों में अपनी ,
वो मुझे ऐसा सबक इस ज़िंदगी का समझा गया ,
जिसे सुन स्वार्थी मनुष्य को भी ,
अपने कर्मों को सुधारने का मन्त्र आ गया ।
उसने कहा कि “सुनना चाहोगे क्या ?”
कि सुखी कौन है इस पृथ्वी पर आज ?
वो जो “डायबिटीज” से ग्रस्त है ,
ना कि वो जो करता अपनी सेहत पर फक्र रख सर पर ताज़ ।
क्योंकि तुम बन गए हो अब एक योगी ,
बजाय किसी भोगी के ,
जो स्वाद तो लेता है पकवानों का अपने मन से ,
पर पेट भरता है अपना सिर्फ अपने योग से ।
रोज़ नियमित व्यायाम तुम्हे ,
इस प्रकृति से जोड़े जाता है ,
और आराम को हराम मान ,
तुम्हे काम करने में आनंद आता है ।
जीने की इच्छा तुम्हे अब ,
संघर्षों से लड़ना सिखाती है ,
और ना जीने की इच्छा तुम्हारे मन की ,
कमज़ोरी को दर्शाती है ।
इसलिए तुम उन सबसे ज्यादा सुखी हो ,
पाल अपने अंदर एक विकार ,
फिर क्यूँ होती हो इतनी उदास ?
जब जीने की हर वजह है तुम्हारे पास ।
सोचो जब तुम कभी अलविदा होगी ,
इस समुद्र रुपी सागर से ,
तब साथ कुछ लेकर ना जाओगी ,
और सब लौटा दोगी इसी गागर में ।
क्योंकि रोज़ कई लीटर पानी पी-पीकर ,
तुम्हारा मैला तन इतना उज्जवल होगा ,
कि ईश्वर को भी फक्र करना पड़ेगा ,
जब इतनी स्वच्छ आत्मा का अपने परमात्मा से मिलन होगा ।
उसके इस प्रकार समझाने से ,
मेरे घटते मनोबल में एक सुधार आया ,
और मैं अब एक नए दृष्टिकोण से सोचकर ये समझने लगी ,
कि शायद अपने जीवन को तारने का मेरे समक्ष ये नया द्वार आया ।
इसलिए मैंने मन ही मन धन्यवाद किया ,
अपने उस चाहने वाले को ,
जो मेरा हौसला बढ़ा गया ,
पढ़ा एक नया पाठ मेरे इरादों को ।
और सच में मेरी ये धारणा अब एकदम बदल सी गई है ,
कि मुझसे ज्यादा कोई दुखी नहीं ,
दरअसल दुखी तो वो स्वस्थ लोग हैं जो अपने सुख का प्रचार करते ,
और हम बीमार लोगों से ज्यादा इस संसार में कोई दूजा सुखी नहीं ।
“सुखी” और “दुखी” की बात ना करके ,
मेरा मकसद यहाँ कुछ समझाने का सिर्फ इतना सा है ,
कि रोगग्रस्त अगर कोई मनुष्य है इस धरा पर ,
तो उसके मनोबल को बढ़ाने की बातें करना ही एक अच्छे मनुष्य का कर्तव्य है ॥
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