Motivational Poem : Overcome the bad phase of life with a passion to succeed.
Success is earned thru struggle.
This is the real story of a small town boy during the 1970’s who was quite meritorious in his school and college, but due to the financial constraints of the family he could not go to study for professional courses like engineering etc. So he followed simple graduation. His close friends got success and looked down upon him. This made him very much dejected. He was tired of his failures in civil services, although, he always secured rank high and above his friends in the school. Exhausting all his attempts for civil services, at the age of 27 , frustrated he left his home town and came to Mumbai to look for a job .He struggled a lot in Mumbai and went thru initial rejections and deep dejection. Ultimately, he studied further and did part time MBA along with a small job. His age was advancing and chances of good job were receding but he kept on appearing for all the possible job avenues. After braving all those frustrations he got a officer’s job in a public sector at the age of 30 yrs. Today, he is retired and leading a peaceful life. Here is the story of his struggle , while in Mumbai, in the form of a poem. It is a inspirational poem and lesson to the younger generation who gets agitated and dejected by initial failures and either take to drugs or go in a bad company or take other extreme steps.
सफलता
बचपन में साथ साथ थे लिखते पढ़ते,
कभी न एक दूजे से हम थे जलते ।
सफलता की सीडियाँ वोः तो फटाफट गया लांघता ,
मैं तो उसके आगे हर कदम पर रह गया हाँफता ।
उसकी कामयाबी के चर्चे जब जब अखबार में छपते,
मेरे मन मे तो बिन पानी के बादल गरजते ।
सीना तान कर वो तो सबके सामने मुस्कुराता,
अपनी बेबसी पर रोकर में तो बस शीश झुकाता।
हर महफिल मे जाने से हमेशा हूँ कतराता ,
चला भी गया जो तो लोगों से बात करने मे शरमाता ।
तन से हाजिर रहकर मन से हु गायब रहता ,
जीवन के हर खुशी और गम को बस मशीन की तरह हूँ सहता।
सोचता था ईश्वर अभी और कितनी मेरी परीक्षा लेगा ,
दिन एक आयेगा मेरा भी जब वक्त बदलेगा।.
जिंदगी मे कुछ कर गुजरने की मुझमे एक थी बड़ी तमन्ना ,
यही सोच कर एक दिन चल पड़ा मुंबई पूरा करने अपना सपना ।
यह न सोचना की चला हीरो बनने घनचक्कर,
काटता था दिन भर कंपनियों के चक्कर।
रोजगार की तलाश में कितने private सैक्टर के managers के सुने मैंने ताने
खाली ग्रेजुएट हो और चले आए हमारे यहाँ नौकरी पाने,
क्या काम कर सकते हो नहीं है तुम्हारे पास कोई skill,
यह सुन सुन कर मेरी तो आत्मा हो गयी थी kill.
मन में आ गयी थी अत्याधिक हीन भावना ,
सोचा वापस चले, यहाँ नहीं जमेगा कोई ठिकाना,
हिम्मत टूटने लगी आने लगी घर की बहुत याद,
वापस जाने के लिए दिल करने लगे खुद से फरियाद ।
फिर सोचा वापस जाकर क्या होगा वहाँ तो नहीं है कोई रोजगार ,
वही पुरानी यादें कर देंगी तुम्हें बिलकुल लाचार ।
कुछ नहीं कर सकता ज़िंदगी मे ,समाज के यह ताने सुन सुन कर दिल और टूटेगा,
एक और असफलता का ठीकरा मेरे सर पर फूटेगा।‘
मुंबई आना आसान है पर मुंबई मे आशियाना नहीं मिलता ,
दौड भाग कर नौकरी तो मिल भी जाए पर रहने को घर नहीं मिलता।
ऊंची ऊंची इमारतों को देख कर सोचता था ,Oh My Lord,
कौन हैं यह लोग कैसे करते है यहाँ रहना afford.
टक टकी लगाए देखता रहता था ,दिन दुनिया से बेखबर ,
उनके सेक्युर्टी गार्ड की मुछों से भी लगता था डर।
मुंबई की सरपट दौड़ती ज़िंदगी देख कर लगा कहाँ फंस गये हम,
न कोई दुआ सलाम , न किसी के चेहरे पे कोई ख़ुशी या गम ।
किसी को नहीं किसी से भी intimacy,
मुंबई की भीड़ मे भी है गज़ब की privacy.
कोई किसी के काम मे नहीं करता interfere,
पर हर किसी का चल रहा है कोई न कोई affair.
दिल नहीं लगता था तब सोचता था बड़े बड़े फिल्मी एक्टर भी करते थे struggle,
तू हिम्मत रख क्यो हो रहा है इतनी जल्दी puzzle.
बस मे कटी एक दिन जेब, गरीबी में आटा हुआ गीला,
जुहू चौपाटी पर छिनी मेरी घडी तो मैं और हुआ लाल पीला ।
ट्रेन की भीड़ में चलता था सटा सटा,
फिर भी कुछ करना है सोच के था डटा।
इस सोच को लेकर इस भीड़ मे न जाने में कब खो गया,
आंखों से जागा था पर मन से सो गया ।
सोते सोते ख्याली पुलाव बनाने लगा और मेरे मन की उलझनों ने एक जाल बुना ,
आखिर उनमे से मैंने अपने लिए एक ख्याल चुना ।
कुछ और तो skill था नहीं बस पढ़ाई लिखाई ही थी मेरी पहचान ,
इसलिए पार्ट टाइम एमबीए करने की हमने ली ठान ।
दिन मे करते नौकरी की तलाश,
शाम को जॉइन करते एमबीए क्लास।
बस का खर्चा बचाने के लिए पैदल चल चला कर,
लगे रहे हम मन को अपने, समझा समझा कर। ,
वापस जाने का तो अब कोई न था मतलब ,
डटे रहेंगे मैदान में सोच लिया था अब ।
छोटे छोटे संघर्ष का नहीं करूंगा यहाँ बयान ,
इतना जरूर कहुंगा की ,दिये मैंने बहुत इम्तिहान ।
जगह जगह interview में लोग कहते रहे , we don’t require,
Select तो कही न कहीं होना ही है , इस बात की थी दिल मे fire.
वक़्त तो लगा,की बड़ी मेहनत और धीरे धीरे पाई हमने भी एक सफलता,
मिल गयी एक बढ़िया सरकारी उपक्रम मे नौकरी और धुल गयी हमारी विफलता । .
What Thomas Edison the great inventor of the Bulb said , pay heed,
“We normally give up when we are about to succeed”.
मेरी तो यही हैं प्रेरणा दायक दो शब्द
Don’t lose heart at the eleventh hour,
Success always tests perseverance and will power