Hindi poems : मेरी कवितायें प्रेमिका और सम्बन्ध सत्य
प्रेमिका
संसार की इस राह पर जब से मेरे ये पग चले
संग संग मेरे इक प्रेमिका चलने लगी।
ज़िन्दगी के रास्तों पर हाथ वो पकडे हुए
चोरी चोरी देख कर हंसने लगी।
मैंने फिर उससे कहा ;तुम कौन हो, क्या चाहती हो?
हर कदम क्यों मेरे पीछे भागती हो?
…. उसने यूं उत्तर दिया …
मैं मृत्यु हूँ ; और प्रेम करती हूँ तुझको समर्पण भाव से।
पर तू तो जीवन का रसिक मुझको कहाँ तू जानता है ?
प्रेम अग्नि जल रही मेरे ह्रदय में उस अग्नि को अब तक नहीं पहचानता है।
तू भागते ही भागते जब थक चले
और किसी की गोद मैं आश्रय भी तुझको न मिले ।
तब मेरी ही गोद मैं अंतिम तुझे आना होगा
एक अंतिम यात्रा पर साथ ही जाना होगा।
पर तू मनुज का पुत्र है ; जीवन का तुझको गर्व है ।
शायद तू मुझको रोक ले तेरी परीक्षा है।
प्रेम जब इतना किया है कुछ तो तुझसे पाऊंगी
बस तेरे मेरे महा मिलन की मुझको प्रतीक्षा है………
संबंध सत्य
जाने क्यूं अब सारे रिश्ते
लेनदेन वाले लगते हैं
लगता है बस सारे रिश्ते
लेन देन तक ही चलते हैं
जब तक मैं देने लायक था
मेरे घर की चौखट पर भी
लोगों के मेले लगते थे
अपने भी वो दुखडा रोते
हालचाल मेरे सुनते थे
आज उसी चौखट पर तनहा
तनहा बैठा सोच रहा हूँ
सारे रिश्ते टूट गए क्यूं
मेले वाले मेरे साथी
जाने मुझसे रूठ गए क्यूं
शायद इसकी एक वजह है
मेरा खाली खाली दामन
फिर भी मैं उनसे कहता हूँ
जब भी तुमको कुछ लेने हो
पास मेरे फिर से आ जाना
हल पूछने मुझसे मेरे
और अपने भी हाल सुनना
फिर से हम सब अजनबियों से
रिश्ते वाले बन जायेंगे
फिर से घर की चौखट पर
कुछ लोगों के मेले से लगेंगे
मीठी मीठी बातों के कुछ जाले
फिर से लोग बुनेंगे
पर मुझे ख़बर है वो रिश्ते भी
बस तब तक ही चल पायेंगे
जब तक कुछ मेरे दामन मैं ऐसा होगा
जो मैं उनको दे सकता हूँ
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