मेरी २ कविताएँ – Two Hindi Poems
१ ————आवाज़———–
सुनता हूँ रोज़ लोगों के अल्फाजों की आवाज़,
कभी कुछ कड़वी तो कभी कुछ मीठी |
सुनकर ये आवाज़ बार-बार,
भीतर कोई आवाज़ पनप रही,
कुछ कहना चाह रही मुझसे,
शायद उसके पास शब्द नहीं |
परेशानियो का हल लाती है मस्तिस्ख की कोई आवाज़,
जो मज़बूर करती है सोचने को
आखिर ‘वो’ भीतर की आवाज़ मुझसे कहना क्या चाहती है ?
सुरिलें गीतों की आवाज़ तो बहुत सुनी,
क्या ‘वो’,
बचपन की किलकारियों में माँ की लोरी सुनने की पुकार है ?
या फिर,
अब दुनिया की नहीं अपने दिल की सुनने की पुकार है ?
ना देख पाने वालों के लिए ये आवाज़ ही सब कुछ है क्या ?
जिनके पास सुनने की शमता नहीं उनके लिए कोई आवाज़ नहीं है क्या ?
आवाज़ तो खुशबू में भी है, फिर देखने और सुनने में रखा क्या है ?
बस समझ पाने की ज़रूरत है,
और,
अगर कोई समझना चाहें तो, समझ पाने की हर किसी के पास शमता है |
२ ——–किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर————
किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर,
ईश्वर की गोद से बढ़ा इस मां की गोद |
मैं लड़का था तो सबके दिलो में ख़ुशी थी ,
अगर,
होता लड़की तब भी शायद किसी को कोई ना कमीं थी |
आगे बढ़ा तो बचपन कर रहा था इंतज़ार,
मुझे देखकर दिलों में सबके आ जाती थी बहार |
नटखट शैतान और दुनिया से अनजान था मैं,
पर कुछ ही समय में बड़ो की बन्ने वाला पहचान था मैं |
रौशन करूँगा नाम, ऐसा सब कहते थे मुझे,
उस उम्र में इस बात का अर्थ भी हमें ना सूझे |
राहें बन रहीं थी मैं बस चल रहा था,
मंजिल पता ना थी मैं उन्हें तलाश रहा था |
कदम-कदम पर पाना चाहता था जो मंजिल, बदलती थी,
हवा भी तो कभी इस दिशा तो कभी उस दिशा चलती थी |
बढती गई रौशनी मेरे मस्तिस्ख की, किताबों के ज्ञान की उर्जा से,
मिल गई मुझे चलने की स्थिर राह, दुनिया को देखने के नज़रिए से |
चलूँगा किनारों पे कब तक अब तो छलांग मारनी है,
संभाल कर चलने वालो को भी बाज़ी, कभी जीतनी कभी हारनी है |
तैर के दरिया सफलता को पाऊंगा,
हार मानी जो मैंने तो उसी दिन मर जाऊंगा |
किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर,
कुछ करके ही लौटूंगा भगवान वापिस तेरी गोद |
———समाप्त———–