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My Two Poems

Published by Anurag Singh in category Hindi | Hindi Poetry | Poetry with tag heart | Life | sound | world

मेरी २ कविताएँ – Two Hindi Poems

bud-of-Red-flower

Two Hindi Poems
Photo credit: Penywise from morguefile.com

१ ————आवाज़———–

सुनता हूँ रोज़ लोगों के अल्फाजों की आवाज़,

कभी कुछ कड़वी तो कभी कुछ मीठी |

सुनकर ये आवाज़ बार-बार,

भीतर कोई आवाज़ पनप रही,

कुछ कहना चाह रही मुझसे,

शायद उसके पास शब्द नहीं |

परेशानियो का हल लाती है मस्तिस्ख की कोई आवाज़,

जो मज़बूर करती है सोचने को

आखिर ‘वो’ भीतर की आवाज़ मुझसे कहना क्या चाहती है ?

 

सुरिलें गीतों की आवाज़ तो बहुत सुनी,

क्या ‘वो’,

बचपन की किलकारियों में माँ की लोरी सुनने की पुकार है ?

या फिर,

अब दुनिया की नहीं अपने दिल की सुनने की पुकार है ?

 

ना देख पाने वालों के लिए ये आवाज़ ही सब कुछ है क्या ?

जिनके पास सुनने की शमता नहीं उनके लिए कोई आवाज़ नहीं है क्या ?

आवाज़ तो खुशबू में भी है, फिर देखने और सुनने में रखा क्या है ?

बस समझ पाने की ज़रूरत है,

और,

अगर कोई समझना चाहें तो, समझ पाने की हर किसी के पास शमता है |

 

२ ——–किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर————

किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर,
ईश्वर की गोद से बढ़ा इस मां की गोद |

मैं लड़का था तो सबके दिलो में ख़ुशी थी ,
अगर,
होता लड़की तब भी शायद किसी को कोई ना कमीं थी |

आगे बढ़ा तो बचपन कर रहा था इंतज़ार,
मुझे देखकर दिलों में सबके आ जाती थी बहार |

नटखट शैतान और दुनिया से अनजान था मैं,
पर कुछ ही समय में बड़ो की बन्ने वाला पहचान था मैं |

रौशन करूँगा नाम, ऐसा सब कहते थे मुझे,
उस उम्र में इस बात का अर्थ भी हमें ना सूझे |

राहें बन रहीं थी मैं बस चल रहा था,
मंजिल पता ना थी मैं उन्हें तलाश रहा था |

कदम-कदम पर पाना चाहता था जो मंजिल, बदलती थी,
हवा भी तो कभी इस दिशा तो कभी उस दिशा चलती थी |

बढती गई रौशनी मेरे मस्तिस्ख की, किताबों के ज्ञान की उर्जा से,
मिल गई मुझे चलने की स्थिर राह, दुनिया को देखने के नज़रिए से |

चलूँगा किनारों पे कब तक अब तो छलांग मारनी है,
संभाल कर चलने वालो को भी बाज़ी, कभी जीतनी कभी हारनी है |

तैर के दरिया सफलता को पाऊंगा,
हार मानी जो मैंने तो उसी दिन मर जाऊंगा |

किस तरफ मैं चला और किस जगह की ओर,
कुछ करके ही लौटूंगा भगवान वापिस तेरी गोद |

———समाप्त———–

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