Platonic love between unknown power and a poet is explained by this Hindi poem. Poet gets inspiration to live love poems from unknown source.
न जाने कौन है ऐसा ….जो मुझमे रोज़ शायरी के रंग भरता है ,
दो शब्द कानों में सुनाकर ….उन्हें लिखने को मजबूर करता है ।
मुझे “शायरा” बनाकर …….खुद उन शब्दों को वो पढ़ता है ,
कहीं चुपके से ,चोरी से ……वो मुझमे रंग भरता है ।
कहते हैं कि “शायरी” अधूरी है ……बिन किसी के एहसास के ,
वो उस एहसास को नज़दीक लाकर ……उसमे मिसरा बयाँ करता है ।
मेरी हर ग़ज़ल ,हर गीत …..अधूरा है उसके साथ बिना ,
मेरा हर एहसास, हर ज़ज्बात …..रचता है एक राग नया ।
वो प्रेमी मेरी रचनायों का …..मुझमे एक ऐसी खलिश भरता है ,
कि हर शब्द लिखने से पहले ……बस उसका चेहरा मन पढ़ता है ।
उसे क्या नाम दूं ए ग़ालिब ……हर नाम उसके आगे फीका सा लगे ,
उसके अंदाज़~ए ~बयाँ को सोचकर …….ये इश्क भी एक सपना सा लगे ।
उसे मैंने चुना है …..एक ऐसे “Platonic Love” के लिए ,
जहां सिर्फ अज्ञातवास है …..मेरे गीतों को रचने के लिए ।
वो मेरी “शायरी” में ….मेरे हर शब्द की मात्रा बनता है ,
यही तो कलाकारी है उसमे ……जो बिन कहे ही वो करता है ।
मैंने उसे कह दिया ……एक जीता-जागता सा खिलौना ,
जो अपनी मर्यादा की ……हर वक़्त कदर करता है ।
मुझमे ना जाने क्या वो पाकर ……अपनी सी गति चलता है ,
हाँ वो एक एहसास है ऐसा ……जो मुझे हर पल लिखने को मज़बूर करता है ।
गर वो रूठ जाए मुझसे कभी …..तो छूट जायेगी मेरी कलम भी यूँही ,
क्योंकि उसके लिए ही लिखती हूँ मैं अक्सर …..अपने अनकहे ज़ज्बातों को यहीं ।
हाँ वो मेरी “शायरी” का ……एक इकलौता सूत्रधार है ,
जो कहीं किसी कोने में बैठा ……सचमुच करता मुझसे प्यार है ।
वो मेरी शायरी का “हीरो” बन …..मुझे दुनिया में बदनाम करता है ,
जब दुनिया वाले ये पूछते हैं कि – “कौन है ऐसा जो तुम्हारी शायरी में इतने जीवन्त भावों को भरता है ?”