This Hindi poem highlights the love of two men in a woman’s life which she is admitting in front of this society
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ,
मेरे साथ के…. हर बात के ….हर रात के ……सौदेगार मेरे ।
एक कहे मुझे आग का शोला …..दूजा उसे कहे पानी ,
एक कहे तुझमे जवानी …..दूजा कहे उसे सिर्फ निशानी ।
हाँ मुझमे अब भी है जवानी ….फर्क सिर्फ सोच का होवे ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
एक ने मुझको रोज़ भोगा ……दूजा करे सिर्फ चाहा ऐसी ,
एक ने जिंदगी से मोड़ा ….दूजे ने फिर जिंदगी से नाता जोड़ा ।
हाँ मुझे चाहत दोनों की ……दोनों की है एक अजब कहानी ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
एक गर मुझसे रूठ जाता है ……तो दूजा भी न भाता है ,
एक गर दस कदम चलाता …..तो दूजा उन राहों में फूल सजाता ।
कैसे कह दूँ फिर मैं बोलो …….कि नहीं है मुझमे अब बाकी जवानी ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
एक कहे संभल के चलना ……दूजा कहे उम्र भर तरसना ,
एक सँवारे मेरे जिस्म को मचल के …..तो दूजा नापे उन्हें सिर्फ उँगलियों से ।
कैसे कह दूँ फिर मैं बोलो ……कि हूँ नहीं मैं अब भी पानी-पानी ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
एक ने साँसों को महकाया …..दूजे ने बिस्तर पर सजाया ,
एक ने धड़कनो को जगाया …..दूजे ने उसे दिल में बसाया ।
कैसे कह दूँ फिर मैं बोलो …..कि दिल में नहीं अब भी कोई बेईमानी ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
एक कहे मुझे अपनी शहजादी ….दूजे की मैं लगती भाभी ,
एक है मेरे दिल का शहजादा …..दूजे के संग बाँधा …ना अब तक कोई धागा ।
फिर भी देखो कहती हूँ मैं ……कि दो मर्द है संसार मेरे ,
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही तलबगार मेरे ।
मेरी जिंदगी में मर्द दो ……दोनों ही विश्वास मेरे ॥
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