In this Hindi poem the poet is remembering that wonderful lips of his beloved which once made him excite and invited too for mating.Thought of that lips refresh his feels
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके अधरों ने ली थी कसम ,
कि ख़तम हमको करके रहेंगे ….
तोड़ दुनिया के सारे भरम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
पसीने से लथपथ थे जब दो बदन ,
अधरों को अधरों की पिपासा थी ,
चंचल हुआ था जब ये मन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके क़दमों से मिले थे जब कदम ,
हाथों में जकड़ी थी बेड़ी कोई ,
दिलों का हुआ था मिलन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसकी खुशबू ने लूटा मेरा भरम ,
सीने पर रख कर सर अपना ,
वो लगाने लगे एक लगन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
हम बुझाने लगे थे उसकी अगन ,
धीरे-धीरे से उठता धुँआ ,
कर रहा था अधरों की लाली ख़तम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
अब बहकने लगे थे कदम ,
उसका दुपट्टा सरकने लगा था ,
पाने को कुछ और सनम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
हम संभालें अब खुद को कैसे सनम ?
वो गिरे जा रहे थे बाहों में ,
हमने तोड़ी अब अपनी कसम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसने लुटने की ली थी अब कसम ,
हमें “नशे” में वो लाकर ,
कह रहे थे अब रुक जाओ सनम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
कैसे रुक जाएँ अब आगे हम ?
होने दो जो होता है अब यूँ ,
मत बुझायो अब मन में लगी ये अगन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
जिस्मों से निकल रही थी अब एक अगन ,
आँखों ने आँखों को इशारा किया ,
यही होता है नूरानी मिलन ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
घुल रहे थे बदन में बदन ,
एक “ज्वालामुखी” जो बसा था कहीं ,
अब वो फटने लगा था उसकी कसम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
वो ना बोले कुछ और ना ही अब हम ,
बस दीवाने से हो एक-दूजे को ,
कस रहे थे बाहों में लिए शरम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
उसके अधरों ने ली थी जो कसम ,
आज पूरी हुई वो दिनदहाड़े ,
दो पल में हुआ सब ख़तम ।
मदहोशी भरा था वो क्षण ….
आज भी जब करूँ उसे ध्यान मग्न ,
उसके “अधर” मुझे सोने ना दें ,
जिनकी खातिर कभी मिटा था ये तन ।।