This Hindi poem highlights the relationship of a beloved with His Lover in which they are maintaining their distance with only one cloth . The Beloved is requesting Him not to force Her to discard the same as that cloth will not make Her culprit in front of Her Eyes.
वो जो एक कपड़ा बाकी रह गया था …..तेरे-मेरे दरमियाँ ,
वो इतना भारी-भारी सा क्यूँ लगने लगा था ….बोलो ए मेहरबां ?
खुदाया माफ़ करना मुझको ….जो मैंने बात ये सोची ,
मगर जो सोची वो हकीकत थी …..जिसमे थी मेरे इश्क की गर्मियाँ ।
हम हर बार उस एक कपड़े को …..देते हज़ारों दुआएँ ,
जो रखती है दूरी …..और सुनाती हैं तेरे-मेरे रिश्ते की कहानियाँ ।
चाहतें बढ़ती हैं बेहिसाब ….जब अपना मिलन होता है ,
अच्छा है जो वो कपड़ा ढक देता है …….ये सरगर्मियाँ ।
तूने हर बार चाहत की ……उस कपड़े को गिराने की ,
हम ये सोच कर चुप रहे …..कि ना बढ़े और भी ये नजदीकियाँ ।
हर बार दिल ये मेरा कहे ……कि गिरा उस कपड़े को तेरे सीने से लिपट जाऊँ ,
मगर फिर जानती हूँ मैं ….कि सच नहीं होगी कभी भी सपनो की वो दुनिया ।
ये एक ऐसा अजब खेल है …….जिसमे हम ना जाने क्यूँ उलझ गए ?
ना चाहते हुए भी ऐसी चाहत को कहें …..अपनी ही बेशर्मियाँ ।
मेरा वो कपड़ा जिस दिन सनम …..मेरे तन से सरक जाएगा ,
उस दिन खुदा भी उठा देगा ……मेरे चरित्र पर उंगलियाँ ।
इतनी गुजारिश करते हैं तुमसे ……कि रहने दो उसे तन पर ही मेरे ,
वो अकेला ही तो है जो दबा पाता है ….मेरे अन्दर सुलगती हुई चिंगारियाँ ।
भारी-भारी सा तन …..भारी-भारी सा मन …..और भारी-भारी से जब होते हैं ज़ज्बात ,
तब रातों में कहीं ले आता है वो ……तेज़ तूफानों की गर्म आँधियाँ ।
वो एक कपड़ा ये सबूत है ……कि मैं हूँ देखो पाक आज भी ,
फिर भी गर कोई सज़ा दे हमें …..तो निकलती हैं मेरी हिचकियाँ ।
सोचती हूँ की इस बार उस कपड़े को तन पर सज़ा कर ……तुमसे ये कहूँ ,
कि इस झीनी सी दीवार ने ……….मुझे तेरे और करीब ला दिया ।
मैं कल तक सिर्फ तुम्हे समझती थी …….एक तन्हाई का दोस्त निराला ,
मगर अब उस कपड़े ने खोल दिया ……मेरी सोई हुई किस्मत का ताला ॥