हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।
कैसे नज़रों को अपनी ……….तुम्हारी नज़रों के आर-पार करें ?
कैसे गेसुओं में अपने …… तुम्हे बाँध के , इज़हार करे ?
क्यों आए हो तुम , हमारे सामने …… ये सोच कर , अब रंज करें ,
कभी छिपने के , कभी मिटने के ……… तुम्हारे वास्ते अब यत्न करें ।
हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।
तुमसे वादा था , कि रूबरू ………. कभी ना होगे तुम सनम ,
फिर क्यूँ ये किया है तुमने …… अनजाने में ऐसा सितम ?
बना दो आज इस हक़ीक़त को तुम …… एक मीठा सा सपन ,
या फिर ज़माने से ये कह दो ……… कि नहीं बने हम तेरे लिए सनम ।
हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।
जी तो चाहता था कि चूम लें तुम्हे ………. भर के अपनी बाहों में ,
मगर फिर देख के हंस दिए …… पड़ी बेड़ियाँ अपने पावों में ,
जाने दो हमको बिन कुछ कहे …… वरना हम रो देंगे सनम ,
तुम्हारी और हमारी बेबसी को ……… देख लेगा तब ये ज़माना हमदम ।
हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।
बाहर पिघलता है ये दर्द ………. तो अंदर एक ज़हन पिघला ,
तुम्हे इल्म ही नहीं …… कि सब कैसे और कहाँ मचला ,
बहुत तकलीफ में हैं हम ……अब तेरे वास्ते सनम ,
तू नहीं समझेगा शायद ……… इस तरह बिछड़ने का ये गम ।
हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।
मुड़ गए , हम बिन कुछ कहे ………. कहते तो ये जुबां रोती ,
चल पड़े दो और कदम , रुकते तो …… ये ज़िंदगी फ़ना होती ,
पीछे मुड़ के भी ना देखा …… इस क़दर डरे हुए थे हम ,
कि जैसे जान से ज्यादा , महँगी होगी ……… तेरी रुसवाई , ओ सनम ।
हम खड़े-खड़े पिघल गए ……. तुम्हारे अाने की आहट से ,
हम खड़े-खड़े मचल गए ……. तुम्हारे अाने की चाहत से ।।
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