This Hindi poem highlights the mating of two lovers before marriage where the beloved agreed that whatever be done between them ,that all was negotiable as in the end they both got a complete physical satisfaction with their acts .
क्या हुआ जो थोड़ा सा रस मेरे ……… अंगों से टपक गया ?
इधर “नशा” हुआ और उधर थोड़ा सा ……… तू बहक गया ।
क्या हुआ जो इस जिस्म की थोड़ी गर्मियाँ ……… हमने तुमसे बाँट ली ?
इधर एक आग सी दिल में लगी …… और उधर तुमने ठंडी सी साँस ली ।
ये यौवन का रस बड़ा ही ………. मादक सा होता है ,
इसको चखने वाला …… एक भोगी बन सोता है ।
क्या हुआ जो भोगी बन ………. तुमने इस रस को थोड़ा सा चख लिया ?
पर जितना भी चखा ……… उतना संग मेरे भरपूर जीवन को जी लिया ।
मैं हर बार जिस दीवानगी से डरकर ………. दूर तुमसे भागती रही ,
हर बार उस दीवानगी में तुम्हे ………… अपने और करीब पाती रही ।
क्या हुआ जो तेरी ख्वाइशों पर ……… ये जिस्म मेरा पिघल गया ?
कभी जो बच्चा सा था …… वो आज परिपक्व बन कर निखर गया ।
ये जीवन योग है अगर ……… तो भोग भी इसकी एक पहचान है ,
जिसको पाकर दानव भी ……… बन जाता एक इंसान है ।
क्या हुआ जो संग तेरे ……… थोड़ा सा गुनाह हमने भी कर लिया ?
अपने योग को एक भोग बना …… खुद को और समृद्ध कर लिया ।
मैं टूट कर बिखर सी गई थी ……… जब तूने मेरे तन को था छुआ ,
एक बिजली सी कहीं कौंध गई थी ……… जब साँसों से साँसों का मिलन हुआ ।
क्या हुआ जो इन साँसों में तेरे साँसों का ……… एक एहसास सा था घुल गया ?
यहाँ मैं थोड़ा और बहक गई …… और वहाँ तू थोड़ा और बेकाबू हुआ ।
मैं धीरे-धीरे से समाने लगी थी ……… तब तेरे ही आगोश में ,
ना तू रहा तब होश में ……… और ना मैं रही तब होश में ।
क्या हुआ जो उस होश ने ……… हम दोनों को बेहोश कर दिया ?
इधर मैंने तब तुझको दोष दिया …… और उधर तूने मेरे दोष से खुद को संतोष दिया ।।
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