ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ,
ना बढ़ा ये भूख , ना ये अगन …… अपनी मदमस्त जवानी से ।
बहुत रोकूँ मैं खुद को …… तेरे सामने मदहोशी से ,
तू छीन ना ले मेरी तपन ……… कहीं मेरी बेहोशी से ,
करूँ मैं लाख जतन ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
तेरी मीठी सी चंचल बातें …… मेरा दिल चुरा ले गईं ,
तेरी तीखी सी शोख आवाज़ें ……… बेहयाई का पर्दा उड़ा ले गईं ,
ढकूँ मैं अपना बदन ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
मैंने कब कहा बता …… कि उघाड़ दे तू अपने जिस्म का पर्दा ,
मैंने कब कहा बता …… कि सँवार दे मेरी जवानी का जलवा ,
भागूँ मैं तुझसे डर के सनम ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
जवाँ दिलों का अक्सर कोई …… ठौर-ठिकाना नहीं होता ,
ये दिल कब मचल जाए …… किसी को पता नहीं होता ,
फिसल ना जाऊँ मैं तेरे संग , ये सोच कर ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
एक आग सी लगती है …… जब तू सामने आता ,
एक प्यास सी लगती है …… जब तू आकर के मदमाता ,
तब मैं भूल जाती सब भरम , फिर भी ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
दिल दिमाग पर , तब और भी …… हाफी सा होता जाता ,
जब तू हौले-हौले से , अपनी बातों से …… मेरे सुर में सुर मिलाता ,
तब चूम अपने तन को , मैं ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
बहुत तकलीफ होती है …… खुद को रोक कर , बंध जाने में ,
तब नई एक सीख मिलती है …… खुद को खुद ही आज़माने से ,
बहते हैं तब ये नयन , जब मैं ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
कितना खूबसूरत होगा वो नज़ारा …… जब हम दोनों का मिलन होगा ?
कितना खूबसूरत होगा वो किनारा …… जहाँ तेरा-मेरा एक नगर होगा ,
ये सोच कर मैं हट जाती हूँ , और ……… काबू करूँ अपनी मदमस्त जवानी को ,
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ।
ना सता ये तन , ना ये मन ……. अपनी मदमस्त जवानी से ,
ना बढ़ा ये भूख , ना ये अगन …… अपनी मदमस्त जवानी से ।।
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