Self-Analysis — This Hindi poem highlights the way of self analysis of a beloved about her Lover’s mood and conclude that its not always necessary to tell about her feelings to others as its a two way process in which both get the same results.
कुछ तो इशारा तुम भी करते ,
मेरे समझने के लिए मेरे यार ,
कि इंतज़ार तुमने भी उतना ही किया ,
जितना मैंने किया तुम्हारा दिलदार ।
मैं समझती रही तुम्हें पत्थर का यूँही ,
जिसके सीने में है नहीं प्यार ,
बहुत देर में ये सच जाना ,
कि तुमने किया था मेरा ……मुझसे भी ज्यादा इंतज़ार ।
कुछ तो इशारा तुम भी करते ,
कि तुम भी होकर बेकरार ,
ख्यालों में लाकर अक्सर मुझे ,
भुला नहीं पाते हो हर बार ।
मैं समझती रही तुम्हें नादान ,
जिसे ख्यालों का भी ना था इख्तियार ,
बहुत देर में ये सच जाना ,
कि तुम्हारे ख्यालों में भी था ……मेरे लिए एक नया संसार ।
कुछ तो इशारा तुम भी करते ,
अपने नैनो से मेरे सरकार ,
कि नैनों को भी आता है बताना ,
सपनो की वो खूबसूरत सी तकरार ।
मैं समझती रही तुम्हें बेवजह ही अन्धा ,
जिसने नैनो से भी किया नहीं मुझे निहार ,
बहुत देर में ये सच जाना ,
कि तुम रखते हो बंद करके ……अपने नैनों में मेरा प्यार ।
कुछ तो इशारा तुम भी करते ,
अपने लबों की तपिश का मुझे दे अधिकार ,
कि अधरों से अधरों का रस पीने पर ही ,
मनता है रोज़ एक नया त्यौहार ।
मैं समझती रही तुम्हें अज्ञानी ,
जिसके अधरों में नहीं आती बहार ,
बहुत देर में ये सच जाना ,
कि तुम्हारे अधरों से ही तो लुट गयी ……मैं बीच बाज़ार ।
कुछ तो इशारा तुम भी करते ,
अपनी गर्म बाहों का बनाकर हार ,
कि बाहों में अपनी भरकर मुझे तुम ,
जाने ना दोगे अबकी बार ।
मैं समझती रही तुम्हें सन्यासी ,
जिसकी बाहें भी हैं काँटों का हार ,
बहुत देर में ये सच जाना ,
कि तेरी बाहों से ही पिघल गयी ……..मैं बार-बार ।
अब इशारा ना भी करो गर तुम ,
तो भी समझ गयी हूँ मैं अबकी बार ,
कि जरूरी नहीं होता इश्क में हर बार बताना ,
उस आग को …..जो सुलगती है दोनों में बराबर हर बार ॥
***