[1] Milan
आज चन्द्रिका निखरी नहीं,
कुछ दीप्त रहा नहीं नभ पर,
देख के कि मैं कहाँ और,
रागिनी मेरी कहाँ पर !
वरुण को महसूस करो तो,
रो रहा जैसे हो विरह पर,
दूर निशा कि श्याम सारी,
नहीं समझे है यह क्षण भर !
प्रेम मिलन से सदा अहम्,
राग यही गाता है अम्बर,
प्रेम में ही जीवन है सारा,
थका आज यह कह कर !
मूक सभी होकर हैं बैठे ,
जिस से मेरे विरह पर,
उसकी वाणी कि वीणा,
है मेरी ही जीवन भर !
प्रेम पात्र उड़ेल दो तुम,
बहे-बहे हो निर्बंध निर्झर,
बनें दृढ हम सदा प्रेम में,
जैसे खड़ें हो रण पर !
सृष्टि के पहले दिवस से,
मुक्त कल्पना के स्वर-पर ,
असमर्थता नहीं, हो मिलन करुण
मृत विरह कि राख पर !
[2]
बाहों में तुम गगन में चांदनी है,
स्वप्न में भी रात यह मनभावनी है,
हो रहा हर्षित यह मन है
मुझसे मिल रही मेरी रागिनी है!
लगा जैसे रुक गयी मेरी तारिणी है,
यह रात अब बस एक काटनी है ,
नवरस का संचार हुआ है
मुझसे मिल रही मेरी रागिनी है!
वह मेरे जीवन की अधिकारिणी है,
घडी जुदाई की यह काटनी है ,
पुलकित हो गता यह मन है
मुझसे मिल रही मेरी रागिनी है!
वो हुई मेरे भविष्य की अनुगामिनी है,
अब यह बात उस से बाँटनी है
पल पल भारी हो रहा है
मुझसे मिल रही मेरी रागिनी है !
[3]
बदस्तूर जारी है,
बेशक्ल लफ़्ज़ों की सरसराहट,
बहता हुआ वक़्त भूल गया था जिन्हें ,
झिलमिला रहे हैं वही पल
दुबारा इस ज़िन्दगी में,
भुला दिया था जिन्हें ,
वे आहटें अब पुकार रही हैं ,
गुनगुना रही हैं, गा रही हैं, चिल्ला रही हैं,
दिख रहा है बंद आँखों से भी बहुत कुछ,
एक दामन के तले छिपाया था जिन्हें ,
वे आंसू टपक रहे हैं,
बह रहे हैं,
लिया जा रहे हैं संग अपने,
खुशियों के पौधे,
जाने बचेगा क्या, फिर से खो देने को सिर्फ,
मिलेगी जो चांदनी तो पूछूंगा ,
क्यों जी रहा हूँ , अँधेरे में
बिना रूह , रूप , रूमानियत के ,
क्या देखने को सिर्फ विनाश , विकार, विकृति
या यह शुरुआत है,
एक नए सफ़र की,
विसाल की….
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