एक
यह याद बहुत बुरी चीज है
मन को तरसाता है
तन को तड़पाता है
जब – जब सूरज ढलता है
कानों में कुछ कह जाता है
यह याद बहुत बुरी चीज है
सर पर उन्मुक्त गगन है
रह – रह कर शोर मचाता है
न बादल है , न बिजली है
ओस कहाँ से आ जाता है
यह याद बहुत बुरी चीज है
तारों की बेरहमी तो देखो
साथ – साथ मुस्काते हैं
तनिक नहीं शर्माते हैं
क्यों चाँद कहर बरपाता है
चित को क्यों सुलगाता है
यह याद बहुत बुरी चीज है
हवा तेज है, सर्द भी है
दर्द भी है, गम भी है
छुवन किसी का तब
जख्मों को क्यों सहलाता है
यह याद बहुत बुरी चीज है
दो
तुम चली गयी
पर गयी नहीं
मन – मानस के कोने में
अश्रु – कण के रुदन में
नयनों की अविरल धार में
स्वासों के नीरव मझदार में
तुम टिकी रही
पर गिरी नहीं
तुम फिसल गयी
पर डूबी नहीं
तुम गीत बनकर सुना रही
संगीत बनकर रिझा रही
विनय है अब तुमसे यही
तो बख्स दो जिंन्दगी
जहाँ हो बस वहीं रहो
पीछा न करो तुम अबसे
तीन
आई लव यू,
तीन शब्दों का समूह
कितना व्यर्थ
कितना सार्थक
कोई कह जाता है
पर कब निभा पाता है
कितना टिका पाता है
स्वर्ण वर्ण सा मुखड़ा अब
कैसे धूमिल हो जाता है
जो कुसुम कली थी कल
अब काँटों सा लगता है
व्यर्थ सभी, रूला जाता है
तीन शब्दों का समूह
आई लव यू
शनैः शनैः इनकार रहा
अब न वो प्यार रहा
न ही वो इकरार रहा
कैसे कानों में कह जाता है
आई लव यू नोट
चार शब्दों का समूह
कहीं ठोर नहीं अब
न ही गले लगाता है
न ही कोई अपनाता है
सजा संवारा अपना घर
अपनों से लूट जाता है
आँसूं तो झर जाते हैं
गम उर में रह जाता है
आई लव यू
तीन शब्दों का समूह
व्यर्थ चला जाता है
–END–
रचयिता : दुर्गा प्रसाद