This poem “On a tireless flight”( अथक उड़ान हो), is to inspire a bird to start its tireless flight in spite of the odds she met due to natural calamities in her life.
अथक उड़ान हो
परिंदे, तू क्यों गुमशुम है ,
किन ख्यालों में गुम है?
गगन पुकारता, धरा निहारती ,
भरो पंखों में असीम शक्ति।
नभ में तेरा अथक उड़ान हो,
तेरा प्रण महान हो ।
तेरा प्रण महान हो।
भूल जा वो घटना,
घटाओं का घिरना,
हवाओं का तूफ़ान में बदलना,
तिनको से बने घोसले का ,
झूलना , डोलना , टूटना,
अन्डो का गिरना , बिखरना,
ये तो आपदा है , विपत्ति है ,
तेरी नियति तुझसे छल करती है।
तू उन्हें पुकार ले,
झुकाओ ललकार ले,
पथ में काँटों पर सेज बना ,
फिर उठ जिंदगी संवार ले।
तू रुकना मत , थकना मत।
आशाओं से भरा वितान हो ,
तू चल, अथक उड़ान हो ,
तेरा प्रण महान हो,
तेरा प्रण महान हो।
घटायें हो काली, मतवाली ,
हवाएँ रोकती हो बाहें ,
तिमिर – घन में, तड़ित – प्रभा
से खोजों अपनी राहें ।
जाना वहां, पार क्षितिज है ,
हो न जहाँ नफरत की कोई आँच,
प्यार ही प्यार बसा हो दिलों में,
प्रेम धुन पर हो मधुर – मधुर नाच।
ऐसा ही नया जहाँ बसाना है,
ऐसा ही नया पैगाम सुनाना है।
तू चल वहां पर , भले अथक उड़ान हो ,
तेरा प्रण महान हो, तेरा प्रण महान हो।
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This poem “May not be a sad childhood”(न हो उदास बचपन) is about the sadness that has set in in the life of a small child due to scarcity of resources.
न हो उदास बचपन
ओढ़कर ये टोकरी ,
ढूढती हूँ सपन,
खुले आसमान में,
खोया कहीं है मन,
उदास बचपन ,
उदास बचपन।
होश संभाला जबसे, मेरे
सूखे होंठ पपड़ियाते ,
क्योंकि माँ तो रहती ,
काम का बोझ उठाते.
न कोई खिलौना,
न कोई बिछौना ,
न कोई लोरी ,
खाली कोना – कोना।
न कोई प्रीत,
न कोई मीत,
न कोई मुस्कान ,
न कोई गीत।
न कोई उपासना,
न कोई प्रार्थना,
न कोई फुहार,
न कोई मनुहार।
बचपन रीता ही रहा ,
क्रंदन ही क्रंदन ,
खोया कहीं है मन ,
उदास बचपन,
उदास बचपन।
मन है निराश ,
तन है हताश ,
बिखरा पांत – पांत,
न कोई विश्वास।
मेरी गली आया
न सूरज कभी ,
अँधेरा ही अँधेरा
पसरा हुआ यहीं।
कौन जोत लेकर
आएगा यहाँ,
दूध की नदिया
बहायेगा यहाँ?
आशा की नयी पौध,
कौन लगाएगा ,
कौन करेगा
भविष्य में सिंचन ,
खोया कहीं है मन,
उदास बचपन
उदास बचपन।
न हो अत्याचार ,
न हो बलात्कार ,
मेरा भी है वजूद,
करो तुम स्वीकार।
न खौफ हो मन में
न लगे कहीं ग्रहण।
खिला – खिला हो मन ,
खिला – खिला बचपन।
न हो उदास मन ,
न हो उदास बचपन,
न हो उदास बचपन।
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— ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, जमशेदपुर।
मेतल्लुर्गी*(धातुकी) में इंजीनियरिंग , पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट । टाटा स्टील में 39 साल तक कार्यरत । पत्र पत्रिकाओं में टेक्निकल और साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशन । जनवरी 2014 से सेवानिवृति के बाद साहित्यिक लेखन कार्य में निरंतर संलग्न ।
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