Family Short Story – Wife’s House (Biwi Ka Ghar)
अर्चना………. ओ…..अर्चना……….
समीर लगातार अर्चना को पुकार रहा था, लेकिन अर्चना ने कोई प्रतुतर नहीं दिया. सुबह के ८ बज चुके थे और समीर को अभी तक चाय नसीब नही हुई थी. ये अब रोज की समस्या बन चुकी थी. समीर को सुबह उठते ही BED TEA पिने की आदत थी और अर्चना सुबह उठकर नहाये और पूजा किये बगैर रशोई में नहीं जाती थी. इन सब चीजों में उसे कम से १ घंटा लगता था. इधर समीर की बेचैनी लगातार बदती जा रही थी और उसे अर्चना पर बहुत गुस्सा आ रहा था, उसे लग रहा था की अर्चना को मेरी कोई चिंता ही नहीं है. पानी अब सर के ऊपर जा रहा था. समीर को समझ नहीं आ रहा था की वो इस समस्या का हल कैसे निकाले. उधर अर्चना इन सब बातो से बेखबर अपनी पूजा में लीन थी. ये तो सिर्फ एक सुबह की कहानी है, और अभी तो समीर को पूरी जिंदगी इसी के साथ गुजारनी है, ये सोचकर समीर के माथे पर बल पढ़ गए.
आइये अब आपको अर्चना और समीर का परिचय करवा दें. अर्चना एक रुढ़िवादी मराठी परिवार से है और समीर एक बंगाली युवक. दो बिलकुल अलग भाषा, संस्कृति और संस्कार वाले ये पति पत्नी ने एक साथ जीवन जीने का निश्चय किया है. असल में ये इन दोनों की ही दूसरी शादी है. अर्चना के पहले पति और समीर की पहली पत्नी का देहांत हो चूका था. अर्चना के माता पिता का भी देहांत हो चूका था इसीलिए अब वो इस दुनिया में बिलकुल अकेली थी. एक छोटे से प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करते हुए अर्चना अपने धर्म कर्म संस्कार आदि के साथ संतुष्ट थी. इधर समीर भी अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपने अकेलेपन से लड़ते हुए किसी तरह से जी रहा था.
दोनों अपने – अपने तरीके से जीवन जीने की कोशिश कर रहे थे. दोनों का जीवन एक शांत झील की तरह था की अचानक जैसे उसमे किसी ने पत्थर फेंक दिया. हुआ यूँ की समीर का ट्रान्सफर नागपुर हो जाने की वजह से वो नागपुर आकर रहने लगा. वही उसकी मुलाकात कालेज के पुराने दोस्त जयंत से हुई. समीर की पूरी कहानी सुनने के बाद जयंत ने उसे दूसरी शादी की सलाह दी. जयंत ने ही उसे अर्चना से मिलवाया. असल में जयंत और अर्चना एक दुसरे को बचपन से जानते थे और अर्चना के पति के गुजर जाने के बाद उसे लगता था की अर्चना को भी दूसरी शादी कर लेनी चाहिए. और अर्चना जैसी संस्कार वाली लड़की किसी भी आदमी का जीवन सुधार सकती है. जिस किसीसे भी अर्चना की शादी होगी वो आदमी जरुर सुखी होगा.
बहरहाल अर्चना से पहली ही मुलाकात में समीर उसको दिल दे बैठा. उसको जैसी जीवन साथी चाहिए थी, अर्चना में वो सरे गुण थे. उधर अर्चना को भी समीर अच्छा लगा था लेकिन उसके बचपन के संस्कार उसे बार – बार समीर की तरफ जाने से रोक रहे थे. उसके मन में बार – बार यही सवाल उठ रहा था की एक गैर मराठी और गैर ब्राह्मन व्यक्ति के साथ वो कैसे सारा जीवन गुजार सकती है. अर्चना पूरी तरह से भ्रमित थी, एक तरफ तो उसके संस्कार, भाषा आदि थे और दूसरी तरफ समीर के साथ एक सुदर भविष्य. एक तरफ दिमाग था तो दूसरी तरफ दिल. आखिर में उसने अपने दिल की सुनी और इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी. समीर तो बहुत खुश था उसे अपनी जिंदगी फिर से खुशहाल नजर आने लगी थी. इस तरह दो अजनबी विवाह के बंधन में बंध गए. शादी के बाद कुछ महीने कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला. अब समीर अपना किराये का छोटा सा कमरा छोढ़कर अर्चना के साथ उसके ही फ्लैट में रहने लगा.
अर्चना का फ्लैट हालाँकि छोटा था लेकिन एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार की जरूरतों के मुताबिक उसमे सारा सामान था. समीर को अपनी गृहस्थी बसने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ा. पहले तो समीर को ये सब अच्छा लगा की चलो बसा बसाया घर मिल गया, लेकिन फिर धीरे – धीरे उसे ये अहसास होने लगा की वो इस घर से अपना रिश्ता नहीं जोढ पा रहा है. उसे यहाँ सब कुछ पराया सा लगने लगा. फिर उसने सोचा की जाने दो, सामान दुसरे का है तो क्या हुआ बीवी तो अपनी है. धीरे – धीरे सब अपना लगने लगेगा. लेकिन ये सब कुछ इतना सरल नहीं था. अर्चना ने पूरा घर अपने हाथों से सजाया था. उस घर में घर की हर चीज़ में अर्चना के पहले पति की यादें समाई हुई थी. और अब तक अर्चना उन यादों के साथ ही जी रही थी. २० वर्ष का सफल वैवाहिक जीवन बिताया था अर्चना ने, और इतने सालो में उसका जीवन पूरी तरह से अपने पति और संस्कारों को समर्पित था. अचानक इस तरह से किसी नए व्यक्ति के लिए इतना सब कुछ बदलने के लिए तैयार नहीं थी.
समीर को समझ नहीं आ रहा था की वो किस तरह से इस घर और अर्चना के रीती रिवाज़ संस्कारों आदि के साथ अपना नाता जोड़ें. उसके लिए ये एक बिलकुल ही नया अनुभव था. लेकिन कहीं न कहीं उए ये विश्वास था की अर्चना के साथ रहते रहते सब ठीक हो जायेगा. यह एक ऐसी समस्या थी जिसे किसी एक को नहीं बल्कि दोनों को मिलकर हल करना था. अर्चना को भी अपने अतीत को पूरी तरह से भूलकर समीर को अपनाना था. लेकिन अर्चना के साथ मुश्किल ये था की वो किसी भी तरह से अपने संस्कारो को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो पा रही थी. उधर समीर भी इस सब चीजों से बिलकुल भी वाकिफ नहीं था. आखिर ऐसा क्या करें जिससे की अर्चना अपने संस्कारों रीती रिवाजो आदि के साथ रहे और समीर भी इन सब चीजों को अपना ले. उसे ये घर अपना लगने लगे. ये सवाल समीर को दिन प्रतिदिन खाए जा रहा था. आखिर उसने निश्चय किया की वो अर्चना से इस बारें में खुलकर बात करेगा.
अर्चना का पूजा पाठ ख़त्म हो चूका था और वो समीर के लिए चाय नाश्ता बनाने में लगी थी. समीर ने चुपचाप पीछे से जाकर अर्चना को अपने बाँहों के घेरे में ले लिया. अर्चना चौंक गयी और अपने आपको छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी.
अरे – अरे ये क्या कर रहे हो तुम सुबह – सुबह…… ऐसे बिना नहाये मुझे मत छुयो….मैंने कई बार कहा है. तुम जाकर ड्राविंग रूम में बैठो मई तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ…..
.ये कहकर अर्चना सभी बातों से अनभिज्ञ अपना काम करने लगी. पर समीर ने उसके माथे पर एक प्यारा सा चुम्बन अंकित करते हुए उसे अपनी तारा खिंचा और कहा चलो कमरे में मुझे तुमसे कुछ बात करनी है. ये कहकर समीर ने उसे बेडरूम में लाकर बिठा दिया. अर्चना को समझ नहीं आ रहा था की ये सुबह – सुबह समीर को क्या हो गया है, और वो किस बारें में बात करना चाहता है. फिर समीर ने उसके हाथों को प्यार से अपने हाथों में लेकर पूछा,
अर्चना…. बोलो ये किसका घर है?
अर्चना ने बिना देर किये कहा… मेरा!
नही….. समीर ने प्यार से उसकी आँखों में देखते हुए कहा… ये तुम्हारा नहीं हमारा घर है…हम दोनों का घर है……..ठीक?
अर्चना ने सर हिलाकर कहा हाँ ठीक है…
.फिर समीर ने उसे समझाते हुए कहा की अब ये बात मन से निकाल दो की ये घर तुम्हारा है. अबसे ये घर हमारा है…..इस घर की हर चीज़ हमारी है…. जैसे हम दोनों एक दूसरे के है वैसे ही यहाँ सब कुछ हम दोनों का है. अबसे इस घर में जो कुछ भी होगा, हम दोनों की मर्जी के मुताबिक ही होगा. ठीक है……?
अर्चना – हाँ ठीक है…..
समीर— तो प्रिये चूँकि तुम्हारे ये रीती रिवाज़ संस्कार आदि सब मेरे लिए नए है और तुम इन सब चीजों को छोड़ नहीं सकती तो क्या ऐसा नहीं हो सकता की पहले तुम मुझे इस बारें में विस्तार से सब समझा दो और फिर हम दोनों मिलकर इन सब चीजों का पालन करें.
अर्चना को और क्या चाहिए था, उसे लगा की जैसे अतीत फिर से लौट आया हो. वो तुरंत समीर के सीने से लग गयी..
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