कभी -कभी जिंदगी में घटी घटनाये मानस पटल पर अपनी एक छाप छोड़ जाती है. जो गाहे -वगाहे याद आ जाती है. हर बच्चे के लिए उनके माँ- बाप ही उनकी पूरी दुनिया होती है. ऐसे ही मेरी जीवन से जुड़ी घटना याद आती है.
उस समय मै ८वी क्लास में थी. हमलोग के परिवार में दो बहने ,एक भाई और माँ -पापा थे. मेरे पापा सादगी पसंद थे,और आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति थे। पापा की मै जाय्दा लाड़ली बिटिया थी. वो हमे ज्यादा प्यार करते थे। अपने पास जो भी है ,उसमे हमेसा संतुस्ट रहना चाहिए- पापा की यही बातें आज भी मेरे जीने का आधार है. मै बचपन से ही माँ- पापा ,भाई- बहनो का ख्याल रखती थी.
वो बालपन के भी क्या दिन थे। सारे दिन हसी ,ठहाके , न जिम्मेदारियों की फिक्र, माँ- पापा का असीम प्यार , उन दिनों समय कैसे बीतता पता ही न चलता। पूरी दुनिया हसी लगती ,हम अपने भाई- बहनो या दोस्तों के बीच अक्सर ये बातें करते की मै बड़ी होकर डॉक्टर बनूँगी। हमलोग बड़े होकर भी अपनी दोस्ती कायम रखेंगे आदि- आदि —. मै अपनी पापा- माँ से कुछ ज्यादा प्यार करती थी ,और आज भी करती हूँ।
एक दिन की बात है ,मेरी माँ ये.बोलकर घर से निकली की मैं मंदिर से एक घंटे में वापस आती हूँ। मैंने घर के छोटे -छोटे काम निपटाकर पढ़ने बैठी। घड़ी ने कब शाम के ५ बज गए पता ही न चला। मन नहीं लग रहा था. क्यूंकि माँ अभी नहीं थी। मैं इधर- उधर टहल रही थी ,समय बीतता जा रहा था ,मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी. देखते- देखते ६. ३० हो गए , मेरे सब्र का बांध टूटने वाला था.
मैंने अपने भाई को बोला आप जाओ मंदिर वाले रस्ते पर माँ को ढूंढो। उसने बोला दीदी अभी जाता हूँ। माँ को ढूंढ कर लता हूँ।
थोड़ी देर बाद वह खाली हाथ वापस घर आया , शाम के ७ बज चुके थे। अब मेरा मन अंदर ही अंदर चिंताओं से भर गया ,मैं सोच रही थी की माँ का एक्सीडेंट तो नहीं हो गया, माँ कही गिर तो नहीं गयी , अगर मेरी माँ को कुछ हो गया तो मेरे परिवार को कौन संभालेगा। मेरे भाई- बहन तो बहुत छोटे है. इनका पूरा वर्तमान और भविस्य बर्बाद हो जायेगा , क्या मै अपनी माँ को दुबारा नहीं देख पाऊँगी।
इंसान को जब कोई राह नजर नहीं आती है तो वह इस्वर पर पूरी आस लगा देता है, अब तो बस आप ही सहारा , मै अपनी पूजा घर के पास गयी ,भगवान के सामने दीपक जला प्राथाना करने लगी। हे परम पिता परमेस्वर मुझसे कोई गलती हो गयी छमा करे .मेरी माँ को मुझे वापस लौटा दो .अब आप ही कोई चमत्कार कर सकते है. कहते है की ईश्वर बच्चे की पुकार तुरन्त सुन लेते है ,मै एक टक ईश्वर को निहार रही थी की तभी डोरवेल बजी .
बहन ने आकर मुझे बताया की माँ आ गयी है. मैंने तहे दिल से ईश्वर को सुक्रिया किया की आपने मेरी माँ को सही- सलामत घर भेज दिया। उसके बाद मै माँ के पास आई ,आते ही माँ को जोर से गले लगा लिया। आप कहाँ चली गयी थी ?आपको कुछ हो जाता तो हम लोगो का क्या हाल होता?
माँ ने कहा हट पागल कैसे बातें करती हो ? माँ के आने के बाद हमलोग ने रहत की सास ली। माँ ने बताया रास्ते में मेरी गहरी दोस्त मिल गयी थी। वो जिद करके मुझे अपने घर ले गयी थी, इसलिए आने में देर हो गयी। उस दिन हमलोग बहुत खुश थे।
दोस्तों उस दिन मुझे पता चला था की जब आपके पास अपने लोग,या अपनी वस्तु होती है तो हम उसकी अहमियत समझ पाते पर जब वो हमसे दूर हो जाती है तब हमे उनकी असली कीमत पता चलती है।
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