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Asmanjas

Published by Durga Prasad in category Family | Hindi | Hindi Story with tag baby | family

असमंजस

ईश्वर भी बहुत बड़े खिलाड़ी हैं , कब कैसा दाँव खेलेंगे कोई नहीं जानता | किशोर को इस बार भी लड़का हुआ | दो लड़कों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चूका था , अब तीसरा हो गया जबकि परिवार के लोग उम्मीदें संजोये हुए थे कि एक लडकी हो जाय तो बंध्याकरण करवा दिया जाय खुशी – खुशी सावित्री का , लेकिन ऐसा नहीं हुआ | लेबर रूम से आधी रात में आधा सर निकालकर नर्स ने होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए किशोर जी , जो बाहर बेंच पर बैठ कर उंघ रहे थे , को सूचित किया कि लड़का हुआ है तो किशोर जी भगवान को कोसते हुए उबल पडा , “ दत्त तेरे की , मनहूस खबर ! सोचा था कि इस बार लडकी हो जाय तो सास की दुलत्ती से छुटकारा मिल जायेगी, क्योंकि सास ने ही दूसरा पुत्र होने पर सावित्री का बंध्याकरण करवाने में विटो पावर का इस्तेमाल कर दिया था तब उसे मुँह की खानी पड़ी थी, हथियार डाल देना पडा था , इसके सिवाय कोई चारा भी तो नहीं था , सास से पंगा लेना अर्थात यमराज को आमंत्रित करने जैसा था |

किशोर बड़ा ही असमंजस में था कि कहीं इस बार भी बंद न करवाने पर विटो न लगा दे | ज्यादा संभावना यही थी और यदि ऐसा हुआ तो छट्ठी के बाद शिशु को सास के आँचल में पंचों के समक्ष डालकर ही दम लेगा वह , वह तीन – तीन बच्चों का क्लर्क की नौकरी से नहीं पाल – पोष सकता , ले जाय सास अपने साथ, तब मालुम होगा कि जरूरत से अधिक बाल – बच्चों का पालन – पोषण करना कितना कठिन होता है | किशोर ने मन ही मन योजना बना डाली चाहे इसमें सफल हो या न हो | माँ को तो वह मना सकता था, लिकिन सास को नहीं, क्योंकि सास हमेशा अपनी बेटी के कान भरने में यकीन रखती थी भले बेटी का परिवार टूट कर बिखर ही क्यों न जाय कांच के टुकड़ों की तरह ?

इधर पत्नी ने स्पष्ट कर दिया था कि बेतुकी बातें सोचने से कोई फायदा नहीं , दिमाग से इस सोच को समूल उखाड़कर फेंक दे कि शिशु को उसकी माँ को सुपुर्द कर देना है, दूसरी दलील दे दी थी कि जैसे दो बच्चे पलते – पोषातें हैं तीसरा भी पलेगा , लड़का है , कोई किसी को देता है क्या ? लडकी होती तो बात दूसरी थी , दे भी देते तो सर का बोझ हल्का ही होता !

कल तक तो लडकी – लडकी रट लगा रही थी , आज उसने विचार बदल दिया, गिरगिट की तरह रंग बदलना क्या शोभा देता है तुमको अपनी माँ की तरह ? किशोर ने अपने विचार से अपनी पत्नी को अवगत करा दिया था |

इतना बोलना था कि उखड गयी ,क्योंकि औरतें अपने मा – बाप की शिकवा – शिकायत सुनना पसंद नहीं करती | कुछेक तो लड़ने – झगड़ने पर कमर कस लेती है , एक भी नतीजा बाकी नहीं रखती जलील करने में चाहे पति हो या पति के परिवारवाले |
सास का प्रोग्राम छठ्ठी के बाद पटना निकल जाना था, लेकिन किसी न किसी बहाने रूक गयी |

पाहून ! सावित्री कहती है कि सवा महीने का बच्चा हो जाय तो चली जाना , मेरा तो रत्ती भर भी रुकने का मन नहीं है , लेकिन बेटी के आगे माँ की क्या बिसात ? ऐसे घर से उनका (उनके पति का) रोज फोन आता है कि इतने दिनों तक … बेटी के घर … ?
किशोर सास से मुहं लगाना उचित नहीं समझता , इसलिए बात को विराम दे दिया |

राम – राम करके सवा महीना बीत गया , गंगा दामोदर में थर्ड ए सी में टिकट भी कट गयी | साजोसामान जितना हो सके, गठिया ली | किशोर को ट्रेन में चढाने भी जाना पड़ा लेहाजवश |

ट्रेन खुलनी की सूचना हो गयी | एक सीटी चालक ने भी हुंकारी में मार दी |
किशोर पाँव छूकर प्रणाम किया तो एक सौ टक्की आँचल से खोलकर पकड़ा दी और हिदायद के लहजे में मुखर पडी :
देख बेटा ! किसी भी सूरत में बंद मत करईओ | भगवान् के घर में देर है पर …? इस बार दोनों ठान लियो कि कन्या होना है तो माँ जगदम्बे की कृपा से मनोकामना पूरी हो जैतो |
गार्ड ने अंतिम सीटी बजा दी थी और गाड़ी चल दी थी| किशोर फट से उतर गया और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि जान बची , लाखो पाए |
दोस्तों ! किशोर ने डाक्टर के कान में बात दाल दी थी कि चुपचाप किसी को बताये बंध्याकरण कर देना है |

दोस्तों ! किशोर स्टेट डिस्पेंसरी में क्लर्क था , अपने मित्रों को सलाह देता था कि छोटा परिवार – सुखी परिवार और वही बाल – बच्चियों की फ़ौज खडी कर ले तो क्या उचित और न्यायसंगत होगा ? क्या वह दोस्तों का सामना कर पायेगा ?

दोस्तों ! कभी – कभी सिद्धांतों व वसूलों के लिए ऐसा करना पड़ता है इंसान को परिस्थितिवश , इसमें कोई बुराई मुझे नहीं दिखती |
उधर सास सोच रही थी कि पाहून को पटा लिया और किशोर सोच रहा था कि सास को इसबार उसने बेवकूफ बनाकर ही दम लिया |
पत्नी की सोच कुछ अलग ही थी कि उनके हसबैंड माँ की बातों को कभी नहीं काटते जो भी बात कह देती है, उसे गाँठ में बाँध लेते हैं |
एक बात किशोर को खटक रही थी कि पत्नी का यदि कुछेक महीनों में गर्भ धारण न हुआ तो वह कैसे उसे कनविंस कर पायेगा |

एक तोड़ है उसके पास कि वह वक़्त रहते उससे कह देगा कि उसने स्वयं नशबंदी करवा ली है ताकि वह (उसकी पत्नी) आजीवन गर्भवती न हो और छोटा परिवार सुखी परिवार के वसूलों को मूर्तरूप में जीवन में उतार सकने में वह अन्तोगत्वा सफल हो जाय |

–END–

लेखक : दुर्गा प्रसाद |

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