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A happy couple is a myth

Published by Shubhangini Chandrika in category Family | Hindi Story with tag husband | Love | marriage | wife

सुबह सात बजते ही हमारे जैसे आम आदमी अपनी दिनचर्या से लड़ते-झगड़ते, लंच और ब्रेकफास्ट की खींचातानी के साथ साथ घर-गृहस्ती की उलझनों को सुलझाते हुए अपने- अपने ऑफिस की तरफ ऐसे दौड़ लगाते हैं मानो अगर आज ना पहुँचे तो हमारी माशूका का बाप उसकी सगाई किसी बड़े डाक्टर, इंजीनियर से कर देगा!

और सच भी है भई आजकल नौकरी किसी माशूका से कम भी तो नहीं! किसी दिन टाईम पे आई लव यू नहीं बोला और ज़रा सी लापरवाही हुई नहीं कि नया ब्वायफ़्रेंड ढूंढ लिया जाता है।ऐसे में किसी दिन घर की मालकिन बीमार पर जाए तो समझो अपनी माशूका नौकरी को बचाये या बीवी को भाई ये तय करना बड़ा कठिन हो जाता है ।

पर फिर भी ब्याहता बीवी ज्यादा कीमती होती है साहब ! आखिर घर की इज्जत प्रतिष्ठा को ही सही और फिर समाज में खुद को फेमिनिस्ट दिखाना भी तो पड़ता है ! ऐसे में पति महोदय ऑफिस रूपी माशूका को छोड़ पत्नी पर ज्यादा फोकस करना ही अपना धर्म मानने लगते हैं!
अमूमन आजकल के मर्द हमारे पापा और चचा लोगों के जमाने की तरह पूरे अड़ियल मर्द नहीं होते शायद उन्हें थोड़ा फेमिनिस्ट होना तथाकथित आधुनिकता का प्रमाण लगता है।और एक हमारे पिताजी लोगों का भी ज़माना हुआ करता था ! भई मजाल है जो माँ की तबियत खराब हो और आकर अंदर झाँक जाएं। उस जमाने में पत्नी की तीमारदारी करना जोड़ू का गुलाम टाईप तमगा दे जाता था। इस डर से लोग अपनी पत्नी को अपनी माँ और भाभियों के हवाले कर बाहर निकल जाया करते थे। पर हाय रे मरी किस्मत आजकल तो मियां बीवी दोनों ही घर से दूर नौकरी पर जाते हैं तो अब ऐसे में कौन मर्द बने और कौन औरत ये बड़ी विकट समस्या हो जाती है।
अतः मज़बूरी में भारत के पचास फीसदी मर्दों ने आधुनिक बनने का फैसला ले लिया और बाँकी पचास फीसदी मर्द अन्य पुरुषों को देख कर आधुनिक होने का शौक पाल रहे हैं!

अब पता है हमारी बात ऑफेंस क्रिएट करेगी और गालियाँ तो पड़नी हैं ही फिर भी आज अपने दोस्त अतुल की कहानी सुना कर ही रहेंगे आपको।

दरअसल अतुल और उसकी पत्नी सोना हमारी फैमिली फ्रेंड हैं और दोनों से अक्सर बात होती रहती है तो ऐसे में दोनों का पक्ष रखने से शायद पाठकों को यह कहानी ज्यादा न्यायपूर्ण लगे।

तो भाई अतुल हमारे वो दूसरे वर्ग के पुरुष हैं जिन्हें वैसे तो आधुनिकता ख़ास पसंद नहीं पर समाज का रुख देखते हुए खुद को आधुनिक बनाने की होड़ में लगे रहते हैं। अतुल जैसे लोग जीन्स और शॉर्ट्स वाली पत्नी चाहते तो हैं मगर बंद कमरों में! बाहर बेचारे बड़ा केयरिंग सा बर्ताव कर-कर के पत्नी के खुले-खुले अंगों को भिन्न- भिन्न बहानों से किसी तरह ढँकने का प्रयास करते रहते हैं। उन्हें पत्नी का नौकरी करना तो पसंद मगर खुद खाना बनाना अपना अपमान लगता है। उन्हें पसंद आता है अगर उनकी पत्नी घर-बाहर सब संभाल ले पर किचन और बच्चों की जिम्मेदारी लेना उन्हें औरतों का काम लगता है। अब इसके लिए उनके पास अपने तरीके भी हैं जो स्त्री की महानता को दर्शाते हुए बिना ऑफेंस समाज में खुद को बेहतर पति और बेहतर पिता दिखाने के लिए पर्याप्त हैं और ये भी एक कला ही है।

दूसरी तरफ,अतुल की पत्नी सोना एक अलग ही किरदार है। वो समझ ही नहीं पाती की उसे अपने पति के साथ मॉडर्न होना है या ओल्ड फैशन्ड । आजकल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में उसे सच और कल्पना के बीच तालमेल बिठाना आता ही नहीं जो उसके अपने जीेवन के लिए तो अत्यंत हानिकारक है ही पर अवश्य ही ये स्वभाव अतुल को भी परेशान रखेगा।

हालाँकि,गलती दोनों में से किसी की भी नहीं क्योंकि हमारा समाज हमें पाल ही ऐसे रहा है । जहाँ लड़की को मॉडर्न होना नौकरी करना सिखाया तो जाता है पर साथ साथ रात को घर से बाहर निकलने से मना भी किया जाता है। जहां शादी के बाद घर और औफिस दोनों की जिम्मेदारी उठाना लड़कियों का कर्तव्य हो जाता है। जहां ये उम्मीद की जाती है कि महिलाएं नौकरी में पति के बराबर तो हों पर घर के कामकाज भी जानती हों। और सबसे अहम् तो यह कि कारपोरेट नौकरियों में मर्द शराब -सिगरेट पियें तो चलता है लेकिन उसी जगह काम करने वाली महिलाओं का शराब पीना लोगों को आश्वस्त करता है कि महिला सीधी नहीं है अर्थात सरलता से “सेट” हो जाएगी।
और फिर इस का विरोध करने पर एक ही जवाब दिया जाता है  कि , “भाई औरतें मर्द की तरह नहीं हो सकतीं क्योंकि घर की इज्जत उनके साथ चलती। मर्दों को इज्जत का खतरा नहीं होता। ऐसे में औरतों को सावधानी रखनी चाहिए।”

मैं इस तर्क से सहमत भी हूँ पर अगर इज्जत का इतना ही डर है  फिर नौकरी पेशा पत्नी, बहू या बेटी क्यों? क्यों कोई गाँव की कम पढ़ी-लिखी लड़की से अपने शहरी बेटे की शादी नहीं करता? और क्यों नहीं बेटों को सिखाता कि रात को बाहर निकलने वाली औरतें तभी सुखी रहेंगी जब तुम उन्हें माँ , बहन या दोस्त समझो कोई वैश्या नहीं।

भई कोई भी औरत अपने सम्मान की कीमत पर आजादी तो कतई नहीं चाहती पर सबकी अपनी -अपनी मजबूरियाँ होतीं हैं। समझ ही नहीं आता कि समाज महिलाओं को क्या बनाना चाहता है ? आधा मर्द या आधी औरत?
खैर इस मुद्दे पर बहस फिर कभी की जाएगी। फिलहाल चलते हैं अतुल के घर जहाँ बाई ने अभी अभी डोर बेल बजाई है।

सोना। सोना
ओफ्फो, सोना ……! बाबू देखो ना डोर बेल बज रही है। सोना प्लीज उठ के दरवाजा खोलो यार।
पर सोना का जवाब नहीं मिलने पर हार के अतुल खुद ही उठ के दरवाजा खोलने चला गया।
सोना के सर पर हाथ फेरते हुए अतुल ने पूछा, “क्या हुआ बाबू उठ क्यों नहीं रही ? तबियत खराब है क्या?

आधे होश में सोना बोली “अतुल ! आप प्लीज छुट्टी ले लो, मेरी तबियत बहुत खराब है। आई थिंक इट्स वाइरल फ़ीवर। फीलिंग सो हैवी। ज़रा पानी की बॉटल दिजिएगा।”

“हाँ श्योर बेबी। ये लो! मैं अभी मैनेजर को बोलता हूँ पर साला मान जाए तब ना । छुट्टी का नाम लेते ही साले की….
“उफ अतुल प्लीज! कभी बिना गाली के भी काम कर लिया करिये।
“या बेबी सौरी सौरी,आई फॉरगॉट, नो गाली हाँ। अभी मैनेजर साब से बात करके अवकाश मांग लूँ?
अतुल के क्यूट बिहेवियर से सोना के बीमार चहरे पे भी हँसी की रेखा खिंच गई।
हालाँकि सोना जानती थी कि अतुल का घर पे रुकना उसके लिए मेन्टल शॉक ही लाएगा पर फिर भी बिमारी में किसी अपने का साथ अच्छा लगता है और पति हो या पत्नी दोनों ही चाहते हैं कि अगला उनकी परवाह करे उन्हे बिना शर्त प्यार करे।
पर हमारे अतुल बाबू बड़े ही निराले कोटि के पति हैं। उनका अंदाज-ए-मोहब्बत ज़रा हट के है।
तो मुद्दे की बात ये है कि पति महोदय ने बीवी की कठिन बिमारी का हाल बयां कर अपने ऑफिस से छुट्टी ले ही ली क्योंकि खड़ूस मैनेजर भी जानता है कि बीवी की जरूरतों को दरकिनार करने की हिम्मत तो भगवान नारायण भी नहीं कर सकते।

अभी आधे घंटे भी नहीं हुए और बाई बड़बड़ाते हुए अंदर आई “मैडम, भईया को बोलो मेरे काम में दखल दे रहे हैं बेफ़िजूल में। काम करने ही नहीं देते।बड़ी मुश्किल से आँख खोल कर सोना ने पूछा, “क्या हुआ अतुल ?क्यों चिढ़ रही है मेड? क्या कहा आपने इससे?
“अरे मैं क्या कहूँगा यार ? ये देखो ठीक से साफ़- सफाई नहीं कर रही बहुत सर चढ़ा रखा है तुमने इसे।
अच्छा भाई बाद में बहस कर सकते क्या? एम् रिअली फीलिंग बैड। तुम जाओ सरिता काम करो अपना।
“अच्छा लाओ तुम्हारा फीवर चेक करूँ?
“आई हैव चेक्ड। अभी 103 है , मैं पैरासिटामोल की टैबलेट ले लेती हूँ।
“हाँ ठीक है। वैसे क्या हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए?
“मैं क्या बोलूँ यार बोला नहीं जा रहा पर देख लीजिए अगर कोई अवेलबल है आस पास में तो चलिए।

“रुको मैं प्रैक्टो एप्प से चेक कर के बताता हूँ। यार एक डॉक्टर सिन्हा का क्लीनिक है पास में और वैसे कहो तो अपोलो भी जा सकते वहाँ भी कोई ना कोई मिल सकता?
विल यू कम ऑन बाइक? या कैब करूँ?”
“आपको क्या लगता है ? कैसे जा सकती मैं इतने फ़ीवर में?
“नहीं मैं तो बस पूछ रहा था। ओके बेबी फिर कैब करें ? पर जाने में एक घंटा तो लग ही जाएगा।
“आप रहने दीजिए मैं अपने फैमिली डॉक से पूछती हूँ। अगर वो कुछ सजेस्ट करते हैं तो मैं वही ले लूँगी एंड परसों सैटरडे है तो अगर ठीक नहीं हुआ कल तक फिर हॉस्पिटल चलते हैं।
“हाँ बेबी सही रहेगा। यू टॉक टू हिम।

“अतुल! अतुल….! सुन रहे हैं क्या? उफ़्फ़ कितना शोर मचा रखा है यार इस बन्दे ने।”
एकदम से चिढ़ी हुई सोना ड्रॉइंग रूम में जाकर बोली “आप वॉल्यूम थोड़ा कम करेंगे टीवी का? मेरे सर में दर्द हो रहा! और आपने कुछ खाया? ”
या बाबू, खा लिया तुम सोई थी तो जगाया नहीं, पिज्ज़ा आर्डर किया था। तुम लोगी?
अतुल बारह बज रहे हैं! एक बार आकर जगा तो देते यार मैंने चाय भी नहीं पी है अब तक ।अभी बस फ़ीवर उतरा ही है। आई नीड सम टी। और ये पिज्जा कौन खाता है फ़ीवर में?

“तो तुम चिढ क्यों रही हो भाई? एक तो तुम्हारे लिए सब छोड़ के घर पे बैठा हूँ और तुम हो कि नुक्स निकाले जा रही हो!
पिज्जा नहीं खाना तो कुछ और आर्डर कर दो और मुझे क्या पता कि फ़ीवर में क्या खाते हैं?

“क्यों आप को कभी फ़ीवर नहीं हुआ क्या? और क्या फ़ायदा आपके घर पर होने से? एक हेल्प तो कर नहीं रहे।”
“यार तुम बाल की खाल मत निकाला करो। तुम लेडीज लोगों का ना यही समझ में ही नहीं आता। सीधे सीधे बोला करो। अब हटो मैं चाय बना देता हूँ।
पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। एकदम से चिढ़ चुकी सोना ने कहा “आप रहने दें मैं देख लेती हूँ” सिंपल ब्रेड सैंडविच बना लेती हूँ अपने लिए। आप चाय पियेगें?

“अब नाराज हो गई क्या?
“नहीं! बस अदरक वाली चाय बनानी थी इसलिए खुद जा रही हूँ।’

“हाँ ठीक है फिर तो बना लो और हाँ दो सैंडविच मेरे भी बना देना स्वीटहार्ट। ”
“पर आपने तो अभी पिज्जा खाया है न?
“बेबी,पर तुम्हारे हाथ के सैंडविच कमाल के टेस्टी होते यार।
“बस बस इतना मीठा मत डालिए कहीं शुगर ना बढ़ जाए मेरा।
“गुड़ सेन्स ऑफ़ ह्यूमर डार्लिंग … पर सच में हँसी नहीं आई।”
सोना शायद बहुत कुछ कहना चाहती थी पर फिलहाल चुप रहना ही उसे बेहतर लगा ।

इधर किचन में सोना हैरान- परेशान हो रही थी और उधर अतुल भैया फोन में व्यस्त।

“हेलो माँ। कैसी हो?
“अरे अतुल बेटा आज दिन में फोन किया सब ठीक है ना मैं तो घर पर ही हूँ तू कहाँ है?
“माँ आज छुट्टी पर हूँ, सोना की तबियत खराब थी तो रुक गया।
“अच्छा ज्यादा खराब है क्या?
“हाँ माँ बुखार है शायद वायरल है!
“अरे तो डॉक्टर से दिखा दे।
“अरे माँ इतनी गर्मी हो रही है दिल्ली में कहाँ जाएंगे बाहर? और तबियत खराब हो जाएगी तो और वैसे भी बुखार ही है कोई सीरियस बात नहीं है। उसने अपने फैमिली डॉक्टर से पूछ लिया है।”
“पर बेटा फिर तेरे घर पर रुकने का क्या फ़ायदा? अच्छा छोड़.. उसे कुछ जूस वगैरह दिया या कुछ खिलाया कि नहीं?
“माँ वो अभी सो के उठी ही है चाय और सैंडविच बन रहा।
“ठीक है बेटा सही से रहना और उसे कोई काम मत करने देना।
नहीं माँ मैने पिज्ज़ा खाया और वो भी अब ठीक है फीवर कम हुआ है।
चल फोन रखता हूँ किचन में देखूं क्या हो रहा।
“ओके बेटा बाय। गॉड ब्लेस यू।’
“बाय मम्मा।

“अरे तुम चाय ले आई। यू आर दी बेस्ट डार्लिंग। तुम्हें पता तुम मेरी फैमिली में बेस्ट लेडी हो।” अतुल ने सोना को अपने पास ही बिठा लिया।
“क्यूँ? और लोग अच्छे नहीं हैं क्या? मुस्कुराते हुए सोना ने पूछा।
“नहीं सब अच्छे हैं पर तुम परफेक्ट हो विथ नो कंडीशन। दैट्स व्हाट आई वॉन्टेड।”  सोना के गाल खींचते हुए अतुल काफी खुश लहजे में बोल गया।
“पर आपको पता मुझे क्या चाहिए? खैर एक बात बताईये आप क्यों हैं घर पे जब कुछ करना ही नहीं?
“यार देखो तुम बता दिया करो ना मैं कर दूँगा। यू नो हाउ आई ऍम। मुझे समझ में नहीं आता कि क्या करना बट आई लव यू सो मच। टेल मी मैडम क्या करूँ आपके लिए? आपका सर दबा दूँ.?

“हा हा। जस्ट स्टॉप इट अतुल। कभी तो मुझे सीरियसली लिया करिए।”

“अरे साल भर से इतना सीरियसली ही तो ले रहा हूँ। देखो बस तुम्हें ही तो देखता हूँ हमेशा। बताऊँ?
“नॉट अगैन हाँ।फिलहाल ज्यादा फ़्री होने की जरुरत नहीं है। मैं बेडरूम में जा रही । थोड़ा रेस्ट करती हूँ,विल फील बैटर।” अपना सैंडविच खतम करते हुए सोना बोली।
“बेबी।मैं आऊँ ? यू रियली नीड सम थैरेपी हाँ?
“उफ़्फ़ यू आर इंपॉसिबल अतुल। दिनभर इतना ही सोचते रहते हैं क्या?
“इट साउंड्स लाइक ऍम पॉसिबल बेबी। एंड यू नो ऍम बेस्ट। आऊँ क्या तुम्हारे साथ?

सोना को अतुल के मजाक पर हँसी आ गई।

“अच्छा बाबा…मुझे माफ कर दीजिए। कोई थैरेपी नहीं चाहिए मुझे आपकी।

“आर यू श्योर?

” हाँ श्योर, अपनी थैरेपी अभी अपने पास ही रखिए।

अतुल! अतुल …..आपने साउंड कम नहीं किया क्या ?
“या बेबी कम कर तो दिया अब कितना कम करूँ?

“तो आप मेरे पास आके बैठिए ना! आई एम् फीलिंग लो…!
“ओके बॉस कमिंग।
हाँ बताइए क्या सेवा करूँ मैडम ?भई तुम्हें पता ही नहीं तुम्हारे हसबैंड की क्वालिटीज क्या क्या हैं?
“रहने दीजिए। बस बैठिए यहाँ बोर हो गयी हूँ।
“नहीं नहीं लाओ मैं अभी सर दबा देता हूँ

“अब रहने दिजिए अतुल । इट्स ओके। वैस भी दर्द ठीक नहीं होगा।”
“यार तुम कभी कुछ पसंद क्यों नहीं करती? हमेशा नुक्स निकालती रहती हो।
“और आप कैसे करते हैं ? लगता है जैसे जबरदस्ती आपसे सर दबवा रही हूँ। आप प्लीज इतना ओवर मत किया कीजिए। प्यार में ताकत की जरुरत नहीं होती बबा।”

“बस शुरू हो गया तुम्हारा? एक तो अपना ख़याल नहीं रखती, ऊपर से मैं छुट्टी लेकर बैठा हूँ उसकी भी कद्र नहीं। इससे तो बेहतर बाई को रख देता एक्स्ट्रा पैसे देकर और खुद ऑफिस चला जाता।
तुम्हें इतना प्यार करने वाला हसबैंड मिला है उसकी कोई कीमत ही नहीं। जा के देखो लोग कैसे लापरवाह होते हैं।

“अच्छा तो एहसान कर रहे हैं आप? आपको जाना था तो चले जाते मेरे लिए जबर्दस्ती रुकना जरूरी नहीं था।”

“देखो मेरा वो मतलब नहीं था । यू नो कभी-कभी मुझे लगता है कि अ हैप्पी वूमन इज अ मिथ ओनली।”

“हाँ एंड अ लविंग हसबैंड इज ऑल्सो अ मिथ… राइट? पर हमलोग क्यों लड़ रहे हैं यार? वैसे ही मेरा सर इतना दर्द कर रहा है । क्या हम बाद में नहीं लड़ सकते हैं ?”

“ओके सौरी बेबी। हटाओ ये सब ….लाओ मैं धीरे धीरे दबा देता हूँ।

बेबी…। सोना…
हम्म।
“बेबी। सो गईं क्या?”
क्या हुआ?
“मैं हॉल में जाऊँ? सोचा घर पे हूँ तो मैच देख लूँ।”
हम्म जाइए।
“कोइ जरूरत हो तो आवाज दे देना।”
“ठीक है जाइए।”

अतुल के जाते ही सोना ये सोचने लगी कि क्या वाकई अतुल इतने सीधे हैं? या वो अपनी इमेज बना रहे? या वो ऐसे ही हैं शायद समय के साथ जिम्मेदार हो जाएं? इस जमाने में जहाँ लड़के कमिटमेंट के नाम से ही भागते फिरते हैं वहाँ अतुल तो वाकई काफी जिम्मेदार लग रहे हैं।
इन्हीं सब अन्तर्द्वंद के बीच खुद पर गुस्सा होते हुए सोना सोचने लगी।
“बेकार ही मैं उनपर नाराज हो गयी। उनकी गलती ही क्या है उन्हें आता ही नहीं ये सब यार। जैसे तैसे उन्होंने मेरी मदद करने की जो कोशिश की है वो कहीं से भी कम नहीं है ।
ये सास-बहू वाले सिरियल देख-देख के मेरा दिमाग भी खराब हो गया है!
घर पे हैं तो क्या हुआ अगर एक मैच देखना चाहते हैं तो । और ऐसा भी क्या ईगो रखना मैं ही उनके पास चली जाती हूँ। सोना मन में अतुल के लिए स्नेह से भरी खुद से खुश सी हॉल की तरफ जा ही रही थी कि अतुल की आवाज आई।

“हाँ भाई सतीश। कैसे हो बे? कब से लगा रहा था साले उठाते क्यों नहीं थे?
दूसरे तरफ की आवाज तो पता नहीं पर अतुल की बात स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

मैं? मैं घर पे हूँ यार। तेरी भाभी की तबियत खराब थी।
हाँ हाँ काम तो था पर मेडिकल मिल गया भाई।
नहीं! कोई मजनूं नहीं बन रहा यार और वैसे भी एक फ़ीवर के लिए कौन लीव लेता है बे । उसकी तबियत खराब तो थी ही फिर सोचा बाई को सारे टाइम के लिए रोक लूँ।
बट याद आया अगले वीक प्रेजेंटेशन है और आज मैच भी है और वो भी इंडिया पाकिस्तान का।
सोचा इसी बहाने सोना को भी देख लूँगा, मैच भी और प्रेजेंटेशन का बचा हुआ काम भी पूरा हो जाएगा।
हाँ  हाँ वो खुश लग रही थी । सोने गई है कमरे में।
नहीं बे तुमको क्या लगता यार । सुबह से इतनी चिड़चिड़ी हो रही है कि पूछ मत।
तुरत- तुरत नाराज हो जाती है। अब चाय के लिए नहीं उठाया तो उस पर नाराज। वॉल्यूम तेज तो उसपर।
यार ये लड़कियाँ कुछ ज्यादा ही वीक होती हैं । इतने फ़ीवर में हमें तो ऑफिस जाना ही पड़ता है! पर क्या कर सकते।

“अ हैप्पी कपल इज ए मिथ ब्रो”!

तू कितना भी कर ले  यार लड़कियों को खुश नहीं कर सकता। देख वैसे मेरी सोना बहुत ही अच्छी है पर है तो लड़की ही, तो लड़कियों वाले नखरे तो होँगे ही ना भाई।

हालाँकि अतुल ने जो कहा वो उसके हिसाब से शत प्रतिशत जायज था और इसमें कोई बुराई भी नही थी।
पर जाने क्यो सोना के कदम आगे बढ़ नहीं पाए और वापस मुड़ कर सोना कमरे में आ गयी।

“हाँ माँ। हेलो ।

“हाँ बेटा कैसी है ?तबियत तो ठीक है न?  बुखार उतरा तेरा? और अतुल ख़याल तो रख रहा ना ठीक से?

“हाँ ठीक हूँ माँ। अतुल घर पर ही हैं बहुत केयर कर रहे हैं आप टेंशन मत लो।

“तो तू इतनी सैड साउंड क्यों कर रही बेटा? कोई बहस हो गयी क्या दामाद जी से?
“नहीं मैं सैड नहीं हूँ माँ। कितना तो करते हैं अतुल मेरे लिए। हाँ थोड़ा जल्दी परशान हो जाते हैं।”

“अरे तो उन्हें समझा बेटा कि तुझे उनकी जरुरत है सब ठीक हो जाएगा। शुरू -शुरू में लड़के थोड़ा नासमझ होते।धीरे धीरे समझ जाएँगे।

“अरे नहीं माँ वो कर रहे जितना कर सकते। और आप क्या चाहतीं ?सब छोड़ के मेरे सामने तो नहीं बैठे रह सकते? मैं ठीक हूँ कोई ख़ास दिक्कत नहीं है। और आप ये सब खुश करने के नुस्खे और पतियों के बदलने की कहानियाँ मत सुनाया करो। रीयल लाइफ में ऐसा कुछ नहीं होता है।

इट्स हाई टाईम मम्मा,और वैसे भी आजकल “अ हैप्पी कपल इज ए मिथ।”

–END–

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