“ममता भरा एहसास “इन शब्दों को अगर मैं कहानी कहूँ तो शायद वह ग़लत होगा यह कहानी नही एहसास है कुछ लम्हों का जब मुझे भी ममता का अहसास हुआ…. ऐसा एहसास जो माँ को माँ बनने पर शायद होता होगा ।”शायद” शब्द इसलिए क्योंकि इस एहसास को सही ,कम ,ज़्यादा,अच्छा , खट्टा ,मीठा कहने का कोई माप दंड हो ही नही सकता ।हर व्यक्ति के लिए यह अलग है ।
बचपन से माँ से खट्टी मीठी बातें ,अनबन,अनेको शराराते तो आप सबने भी करी होंगी, मैने भी खूब करी ।
कभी छुप कर मम्मी को धप्पा करना , कभी मम्मी के बालों में कपड़े सूखने वाले क्लिप्स लगाना । हर वो चीज़ करना जो वो मना करें ।मज़ा आता था उनको तंग करने में और सबसे मज़ेदार पड़ोसन का खेल…….मम्मी ने तो मुझे नकली नाम भी दिया हुआ था “कोमल” ।
माँ की थकान मुझे उस छोटी उम्र में समझ कहाँ आती ।
बच्चो की पढ़ाई और शौंक पूरा करने के अलावा एक मिड्ल क्लास परिवार चलाने के लिए जितना घर का काम ज़रूरी है उतना ही ऑफीस जाना भी ।जब कॉलेज में गई तो माँ सिर्फ़ माँ ना रही बेस्ट फ़्रेंड भी बन गयी और करियर के वक़्त पर बेस्ट गाइड भी ।रसोई में खाना बनाने के लिए सब्जियाँ छिलते वक़्त जब परेशानियों की मैली परत भी धो देती थी तो लगता था की माँ रसोई घर के साथ साथ सारी परेशानियों को प्रेशर कुक्कर में विस्टल देकर धुएँ में उड़ाने वाली बेस्ट कुक भी थी ।
पर हर वक़्त खुशनुमा कहाँ रहता है ,एक दिन जून जुलाइ की बात है…. तपती गर्मी में मम्मी जब ठंड से काँपने लगी तो समझ ही नही आया की क्या हुआ उन्हे ।जैसे जैसे डॉक्टर बोलते गये हम करते गये ।
पर सब दवाइयाँ बेकार ही साबित हो रही थी । जो सही था वो था मम्मी का होसला और हिम्मत वरना 55 साल की उम्र में अपना दर्द छुपाना आसान नही होता ………..पर उनके लिए था ……..क्योंकि भारत जैसे देश में अगर घर को चलाना है तो खुद को भी चलाते रहना है चाहे मशीन की तरह ।
आँखों की रोशनी के साथ साथ उनकी याददाश्त भी धुंधली हो गयी ,मुझको तब लगा जब मम्मी ब्रश करके पूछने लगी की ब्रश तो किया ही नही मैने ।
तब लगा की हथेलियों से रेत की तरह ही हमारी खुशनुमा ज़िंदगी से भी कुछ फिसल रहा है ।
दवाइयों की भारी खुराक ने आँखों की रोशनी तो लौटा दी लेकिन शरीर को खोखला कर दिया लेकिन तब भी मम्मी हिम्मत करके अपने दफ़्तर जाती रही ।मैं मम्मी को पहले उनके ऑफीस छोड़ती थी फिर खुद ऑफीस जाती थी ।घर से ऑफीस का 20 मिनिट का सफ़र अंताक्ष्णी खेलते हुए मुस्कुरा कर गुज़ारते था ।
जन्माष्टमी का वो दिन जब मैं ,मम्मी,पापा और मेरी बेहन सब एक साथ बैठे थे मम्मी कुछ कहने लगी ,कुछ ऐसा जो हमें समझ नही आया और जब तक आता मम्मी को हॉस्पिटल ले जाने की नौबत आ गयी और हॉस्पिटल जाते ही आई .सी. यू जाने की नौबत ।
हम सब बाहर बैठे परेशन थे तभी मम्मी की आवाज़ें बाहर तक आने लगी और वो कृष्णा के भजन गाने लगी ,उनको सालों से बेटे की तरह जो मानती आ रही थी ।घबराकर मैने मैने डॉक्टर से कहा की क्या हुआ मेरी मम्मी को…उनके पास कोई जवाब नही था ।शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ गयी ..कुछ डॉक्टर बोले जो मुझे सुनकर भी समझ नही आया ।मैं डॉक्टर से ज़िद्द करने लगी की मुझे मम्मी से मिलने दे पर वो नही माने तभी अंदर से नर्स आकर कहने लगी की मेरी मम्मी किसी कोमल के बारे में पूछ रही है । पहले तो मैं नही समझी फिर याद आया की यह नाम तो मम्मी ने ही मुझे खेल में दिया था ।उस एहसास को शायद यहाँ लिख भी ना सकूँ …..लिखने के लिए लाखों शब्द भी कम पड़ जाएँगे… और एक भी शब्द समझ नही आ रहा । शायद उससे बयान नही कर सकती ।
मैं अंदर जाकर मम्मी से मिली ,कुछ दिनों बाद मम्मी बेहतर होकर घर लौट आई लेकिन वक़्त ने मुझे मम्मी को मेरी बेटी और मुझे उनकी माँ बना दिया था ।अब मेरी बारी बारी थी उन्हे हाथों से खाना खिलाने की ,नहलाने की ,उनके बाल बनाने की,वो करने की जो वो किया करती थी जब मैं छोटी थी ।वो एहसास था ममता का एहसास …एहसास शायद यही शब्द है मेरे पास उससे नाम देने का जो अतुल्या था और दर्द से भरा भी ।
वक़्त फिर बीता और कुछ दिन बाद मम्मी को फिर से हॉस्पिटल ले जाना पड़ा और उन्हे वेंतिलटेर का सहारा लेना पड़ा ।
कुछ दिन बाद उनकी तबीयत सुधरी और वो वेंतिलटेर से हट कर आई .सी .यू .में शिफ्ट हुई । आई .सी .यू .में लोगों के मिलने जाने का निर्धारित समय होता है । जब मैं उस समय अंदर गयी और मम्मी से मिली तो मुझसे पूछने लगी की क्या तारीख है बिटिया ,मैने कहा 10 जून तो वो बोली जन्मदिन मुबारक हो बेटे । मैं बहुत खुश हुई की आज के दिन भगवान ने मुझे इतना बड़ा गिफ्ट दिया । मम्मी को मेरा बिर्थडे याद है । मम्मी फिर बोली जन्म दिन मुबारक …तुम कोमल ही हो ना ।
अपने खेल के नाम को अब मैं भी अपनी असलियत मान चुकी थी ….नही बर्दाश था की सच की मम्मी को मेरा नाम ही याद नही है ..नही पहचानती अब वो मुझको ।
मम्मी ने कोमल समझ कर ही सही मुझे उस दिन कुछ बातें समझाई जिनमे शायद इस बाहरी ज़िंदगी को जीने जा सार छुपा था ।शायद वो जान चुकी थी की अब हम बात नही कर पाएँगे ।
अगले दिन मम्मी की तबीयत बहुत खराब हो गयो और वो फिर से आई .सी .यू. में चली गयी और इस बार वहाँ से ना लौटने के लिए ।उनके हमें छोड़कर जाने से कुछ 5 मिनट पहले उनकी हाथ में अपनी उंगलियाँ रखी तो उन्होने छोटे बच्चे की तरह मुट्ठी बंद कर ली ।
वह एहसास ..हाँ वह एहसास था ममता का एहसास क्योंकि मैं केवल अपनी मम्मी ही नही बल्कि उनके साथ उन्हे बच्चे के तरह रखे हुए वक़्त और लम्हों को भी महसूस कर रही थी ।
माँ की तुलना ना कोई इस जन्म में कर पाया है ना ही कोई कर सकता है लेकिन उस एहसास को क्षण भर ही महसूस करके आज भी लगता है की इस छोटे से शब्द में लाखों एहसास छुपे है ..शायद उस में से मैने एक एहसास को कुछ लम्हों के लिया जिया ।
उस ममता के एहसास को महसूस कर आज भी दिल और आँखें दोनो भर आती है और लगता है की काश मम्मी आप आज भी हमारे साथ ही रहते और आप मुझे ताह उम्र मेरे नामे से बुला पाती…कोमल नाम से नही .
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