The Hindi family story based on love and relationship of a young girl with her niece through their life,
वक्त कितनी तेज़ी से गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं, खास कर लड़कियाँ ….नीले रंग का कार्ड और उस पर सुनहरे अक्षरों मे छपा नाम… “उमा संग आनंद” ..मधुरिमा के चेहरे पर एक स्निग्ध सी मुस्कान फ़ैल गयी… ऐसा नहीं था की अचानक कार्ड मिला था ..एक-एक चीज़ तो पूछ रही थी जीजी… कैसे करूँ, तू आ जा ना …अभी वहीं बैठी है फिर बाद मे आके कानून बताएगी…जेवर साडियां सब फिर मैं अपनी पसंद के ले डालूंगी.. हर दिन फोन पर ये सब धमकियाँ तो मिलती रहीं, पर मेरी उमा का सच मे ब्याह हो रहा है इसका यकीन तो मधुरिमा को कार्ड देख कर भी नहीं आ रहा है…. मन कोई 25 साल पीछे भाग गया..
सुबह सुबह नहा कर स्कूल जाने के लिए रेडी हो रही थी..
“आज हिंदी का पेपर है मेरा”, मधुरिमा जोर से बोली…
“मुझे लेट मत कर देना”.. उसके साथ स्कूल जाने वाली आरती ने कहा.. जो मधुरिमा के बाल बांधने का इंतज़ार कर रही थी..
“अरे नही, लो हो गयी तो… अभी पूरे बीस मिनिट है चल एक बार फिर से देख लें…”
आरती ने भी सर हिला कर हामी भर दी.. दोनों कमरे मे जाकर किताब खोल ही पायी थीं, कि बाहर कुछ हलचल सी हुई..
“आरती तू बैठ .. मै आती हूँ..” बोल कर मधुरिमा तेज़ी से बाहर निकली.. तब तक हलचल अंदर वाले कमरे तक पहुँच गयी… सामने देखा तो जीजी-जीजाजी थे … और जीजी की गोद मे नन्हा सा रुई का गोला.. अपने कुर्ते से रगड़ कर हाथ साफ़ किया और एक उंगली से उसके नरम गाल को छुआ … ये मेरा पहला परिचय था मेरी उमा से…
आरती ने कहा, “अरे आंटी कब आईं ?” आरती के पापा जीजाजी के साथ उनके ऑफिस में ही थे…
मैंने कहा, “बस अभी तो आये हैं ये लोग”
बड़ी जीजी, जो उनके स्वागत कम देखभाल के लिए पहले से आई हुई थीं, उन्होंने याद दिलाया तो जैसे मै नींद जागी..
“बेटा तेरा पेपर है”
मैंने बैग उठाया, लगभग भागते हुए से हम स्कूल पहुंचे…जैसे तैसे पेपर किया और भागी घर की ओर .. आज किसी का साथ नही चाहिए था मुझे… घर पहुँच कर हाथ धो कर कूद के जीजी के बेड पर चढ़ गयी और नन्हे से जीव को देखने लगी.. जीजी ने हाथ बढ़ा कर गोद मे उठाया और मेरी गोद मे दे दिया, “ये ले तेरी अमानत”…
मैंने भी हाथ खोल दिए और गोद मे लिटा लिया इतने छोटे बच्चे से इतने पास से पहला स्पर्श था मेरा…जीजी ने कहा, सम्हाल इसे… और मैंने ऐसे थामा जैसे अब किसी को नहीं दूंगी.. उस से पहले एक और खिलौना भगवान ने दिखाकर छीन जो लिया था हमसे…उमा को गोद मे लेकर ऐसा लगा जैसे बिना प्रसव वेदना के इसकी माँ बन गयी… जैसे उसने मेरे भीतर छुपी नन्ही सी माँ को जगा दिया था …. अब तो सिवा उमा के कोई काम ही न था.. स्कूल जाते जाते उमा के कपडे धोना और वापस आकर सूखे हुए उतार तय करना मेरी जिंदगी का सबसे जरुरी काम था अब तो…. जीजी को साफ़ निर्देश थे कि आप पानी का कोई काम नहीं करोगी…
अब उमा 5 महीने की हो गयी उसकी करवट उसकी मुस्कुराहट सब लगता जैसे मेरी पूंजी है सच मे “मासी” शब्द को जी रही थी मै… दुनिया मे प्यार ऐसी चीज़ है जितना दो उससे ज्यादा मिलता है मेरे और उमा के बीच तो ये बात सौ टका सच थी…कह नहीं सकती मुझे उससे ज्यादा प्यार था या उसको मुझसे… वैसे तो हमेशा बड़े लोग नाम रखतें है बच्चों का … मगर बोलना सीखते ही मुझे मेरी उमा ने नाम दिया नेहा… जो ठीक से बोल भी न पाती… निया कहती… हम दोनों साथ सोते साथ खाते ..बड़ा सुख मिलता उसकी जूँठन खाने मे… उसके गीले बिस्तर पर सोने मे..
तभी छोटू के दुनिया मे आने की आहट हो गयी डॉक्टर के निर्देशों का सार तब तो सिर्फ इतना समझ आया की मेरी उमा और भी ज्यादा मेरे पास रहेगी जीजी उसको अब रात मे भी नही सुलायेंगी अब तो हमारा रातदिन का साथ हो गया मगर मेरी पढाई मे उमा ने कभी बाधा नही डाली और और कभी सो गयी तो किसी की मजाल कि “निया” को जगा दे…नियत समय पर घर मे भैया आ गया उमा का छोटा सा …
वक्त भागता चला जाता है. .मेरा इंटर हो गया और बीए भी घर वालो को सुयोग्य वर मिल गया उसको हाथ से कैसे जाने देते… और मेरी शादी हो गयी ससुराल आ गयी आज भी याद है विदाई का वो पल जब मै रोती रोती गाड़ी मे बैठने जा रही थी मेरी नज़र उमा की तलाश मे भटक रही थी जीजी मेरा हाल बिना कहे जान गयी और पकड कर मेरे पास ले आयी वो ऐसी नज़रों से देख रही थी जैसे उसकी मौसी को बलि चढाने ले जा रहे हो… मुझे भी लगा कैसे जीऊँगी इससे दूर होकर ..ये कैसे रहेगी मेरे बिना ..मगर जीजी भी तो उसकी माँ थी… जननी … मै कैसे उनसे ज्यादा हो सकती थी उन्होंने मेरी उमा को सम्हाल भी लिया और इस योग्य भी बना दिया कि वो अपने साथ साथ औरों का का भी ख्याल रख सके ..
ससुराल और परिवार कि जिम्मेदारियों ने मुझे इतना समय ही नही दिया..कि मै उमा के साथ ज्यादा समय बिता पाती हो सकता है उमा कि मन से वो यादें मिट गयी हो या धूमिल हो गयी हो… मगर मेरा माँ होने का हर अहसास आज भी उस से ही शुरू होता है …बस आज कार्ड हाथ मे ले कर एक और फ़र्ज़ पूरा करने की तैयारी थी… मधुरिमा यादों के बगीचे से खुद को वापस लाकर पैकिंग मे जुट गयी सुबह निकलना जो था अपनी उमा के हाथ पीले करने के उत्सव मे…..
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