श्राप
अम्मा, अम्मा की गुहार लगाती हुई इन्दु ने सुबह – सुबह घर मे प्रवेश किया ।
“अरे ! क्यों शोर मचा रही है ? क्या हुआ ?”
“ देखो न अम्मा , आज फिर से राजू ने देर कर दी । स्कूल के लिये अभी तक तैयार नहीं हुआ क्या ? ’’ अपनी गोल – गोल आँखे घुमाते हुये उसने अम्मा से पूछा । वैसे तो मेरा नाम राजेश था , पर घर मे सब राजू ही बुलाते थे । इस कारण वो भी मुझे राजू ही बुलाती थी ।
‘अरे ! तू खुद ही जाके देख ले कमरे मे क्या कर रहा है ?’ और वो पैर पटकती हुयी कमरे मे आयी तो मैं अपना बस्ता तैयार कर रहा था।
“क्या राजू ? तेरी वजह से रोज स्कूल की देरी हो जाती है ।” तू जल्दी क्यूँ नहीं तैयार होता। पता है ! तेरे कारण रोज मुझे क्लास के बाहर खड़ा रहना पड़ता है देर से जाने के कारण। “
मैं गुस्से से बोला , तो तू चली क्यूँ नहीं जाती क्यों मेरा दिमाग खाती है ?” मेरी मर्जी मैं तो आराम से तैयार होऊंगा तू चली जा ।
नहीं , मैं तेरे साथ ही जाऊंगी , चाहे कितनी भी देर हो जाये । “पता नहीं , उसमे ऐसी क्या जिद थी। उसका जब जी चाहता बेधड़क घर मे आ जाती थी ।” उसका घर मेरे पड़ोस मे ही था । दोनों परिवारों का आना – जाना था एक दूसरे के यहाँ । “मुझ पर तो ऐसे हुकुम चलाती थी जैसे मैं उसका गुलाम हूँ । पता नहीं ! क्या समझती थी खुद को ? ” जबकि उसका स्कूल मेरे स्कूल से अलग था , पर एक ही रास्ते मे पड़ता था । पहले उसका स्कूल पड़ता था , बाद मे मेरा । पुरे रास्ते वो पटर – पटर बतियाते हुए चलती थी । कई बार तो मैं गुस्से से चिल्ला भी पड़ता था उस पर । “ तू मेरा पीछा क्यूँ नहीं छोड़ती ? कल से तेरे साथ नहीं आऊंगा समझी कुछ ।” इतना सुनते ही वो जैसे सहम सी जाती और कितने आंसू उसकी आँखों से निकल कर उसके गोरे गालों को भिगोने लगते । फिर हारकर मुझे उसे मनाना पड़ता ।
“ बड़ी अजीब लड़की है ! मैं अम्मा से शिकायत करता देख ले अम्मा , ये मुझे बहुत तंग करती है । मुझे अच्छा नहीं लगता। फिर मैं इसकी चोटी खीचूँगा तो तू मुझे कुछ मत कहना । ” पर अम्मा इसे हमारा लड़कपन समझकर हँस कर मेरी बातों को टाल देती । अरे , जा न ! वो तेरे साथ अगर चली जाती है तो क्या हुआ ? तेरा काम भी तो वही करती है । तू तो स्कूल से आकर अपना बस्ता फेंक कर दोस्तों के साथ खेलने चला जाता है । तो तेरे पीछे वो अपने स्कूल के काम के साथ तेरा भी तो स्कूल का काम कर देती है । अम्मा ने तो उसे और भी सर चढ़ा रखा था । क्योंकि मेरी कोई बहन नही थी , इसलिए अम्मा उसे अपनी बेटी की तरह मानती थीं । वो सारे घर मे ऐसे इतराती घूमती थी जैसे उसी का घर हो ।
इधर समय बीतता गया अब हम बचपन की दहलीज पार कर किशोरावस्था मे आ चुके थे । पर उसका घर मे बेख़ौफ आना जारी था । मैं भी अपनी दुनिया मे मस्त था । दोस्तों के साथ खेल – कूद , मौज मस्ती चलती थी । इंटर पास करने के बाद मेरा सिलेक्शन इंजियनियरिंग मे हो गया । जिसकी पढ़ाई के लिए मुझे दूसरे शहर जाना था । “इंदु को जब पता चला तो वो मेरे पास आयी और उसने कहा , तू तो बाहर चला जायेगा तो मै किससे बाते करूंगी ? तुझे मेरी याद तो आएगी न ! ” और मैं अनमने मन से उसकी बात को अनसुना कर देता । “ वो शायद मन ही मन मुझे बेइन्तिहाँ चाहती थी पर इस बात को उसने कभी किसी पर जाहिर नहीं होने दिया । मैंने भी कभी उसके इस अहसास को महसूस ही नहीं किया । वो मेरी जितनी परवाह करती थी , मैं उतना ही बेपरवाह था उसके प्रति ।”
मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चला गया । इन 4 सालों मे मैं सिर्फ छुट्टी पर ही घर आता था । आते ही अपने पुराने दोस्तों से मिलने चला जाता था । “ अम्मा से पता चलता कि मेरे जाने के बाद भी वो रोज आती और मेरे कमरे मे रखे सामान को ठीक करके करीने से रख देती थी और घंटों मेरे कमरे मे पता नहीं क्या करती थी ? ” अम्मा उसे बावली कहती थी ।
“ मुझे याद है , अक्सर बचपन मे वो मुझसे पूछती थी !! राजू तू मुझसे शादी करेगा न ?और मैं उससे पीछा छुड़ाने के लिए कह देता हाँ करूँगा । वो खुश हो जाती । पर मुझे इस बात का जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि वो सच मान बैठेगी मेरी इस बात को !!! ” अब उससे मिलना न के बराबर हो गया था । क्योंकि मैं बहुत कम समय के लिए घर आ पाता था । और जब वो घर पर आती तो मैं अक्सर बाहर ही रहता था दोस्तों के साथ ।
इधर मेरी इंजियनियरिंग की पढ़ाई खत्म होने को थी । आखिरी साल पूरी होते ही नौकरी भी लग गयी । घर मे मेरी शादी के प्रस्ताव आने लगे । “अम्मा ने अच्छी सी लड़की देखकर मेरी शादी तय कर दी । शादी 20 दिन के अंदर ही होनी थी क्योंकि लड़की की दादी की तबियत काफी ख़राब थी , इसलिए उनकी इच्छा थी कि पोती की शादी उनकी आँखों के सामने हो जाए । खैर , हमारी शादी हो गयी । संध्या नाम था उसका । ” शादी के वक्त इंदु अपनी मासी के यहाँ गयी हुई थी , सब कुछ इतनी जल्दी मे हुआ कि उसे निमंत्रण भी न भेज सका ।
सब कुछ ठीक चल रहा था । मैं संध्या से काफी प्रभावित था वो बहुत ही सुशील और समझदार थी । क्योंकि मुझे नौकरी के लिए दूसरे शहर जाना था ,छुट्टी ख़त्म हो गयी थी। “मैंने अम्मा से संध्या को ले जाने की बात की तो वो बोली , पहले जाकर रहने का तो इंतजाम कर ! फिर ले जाना अपने साथ । तब तक मेरे पास भी रह लेगी कुछ दिन फिर तो न जाने तू कब आएगा छुट्टी लेकर ?? ” मैं चला गया कुछ दिन मे वापस आने को कहकर। शहर जाकर थोड़े ही दिनों मे अपने रहने के लिए एक अच्छी सी जगह ढूंढ ली । उधर घर पर खबर भिजवा दी कि मैं संध्या को लेने पहुँच रहा हूँ । मैं आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर घर पहुँच गया ।
इधर इंदु वापस आयी तो सीधे अम्मा के पास आयी । उसने जब संध्या को देखा तो अम्मा से पूछा !! ये कौन है ? तो अम्मा बोली , राजू की दुल्हन है । वो कुछ नहीं बोली ??? बस !!! इतना पूछा कि , राजू कहाँ है ? अम्मा ने उससे बोला कि अपने पिताजी की दुकान पर गया है । पिताजी की कपडे की दुकान थी, मैं दिन मे वहीँ चला गया था ।
“ इंदु दुकान पहुँची । मैं उसे देखकर चौक गया !!! और बोला तुम कब आयी ?? बैठो ! वो बैठी नहीं । मुझसे बोली , तू खुश तो है न!!! और उसकी आँखों से दो आंसू गिर गए । मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूँ? वो बोली ! तू जिंदगी भर औरत के प्यार के लिए तड़पेगा ? तुझे कभी चैन नहीं मिलेगा !! और ये कह कर वो चली गयी । ” मैं उसे रोक भी न सका । न ही कुछ कर सका । “ शायद उस दिन मुझे यह अहसास हुआ कि वो मुझे बचपन से मन ही मन चाहती थी पर मैं ही उसके इस अहसास को समझ नहीं पाया । ” उस दिन के बाद से वो फिर कभी हमारे घर नहीं आयी ।
मेरी छुटटी खत्म होते ही मैं संध्या को लेकर दूसरे शहर आ गया । धीरे- धीरे मैं संध्या के साथ अपने जीवन मे व्यस्त हो गया । समय जैसे पंख लगाकर बीत रहा था । “इधर संध्या माँ बनने वाली थी । हम दोनों अपनी छोटी सी गृहस्थी मे बहुत खुश थे । संध्या भी अपने आने वाले नये मेहमान को लेकर काफी उत्साहित थी । ”
“एक दिन अचानक बाजार मे इन्दु के पापा से मुलाकात हो गयी!!! वो किसी जरूरी काम से वहाँ आये थे । मैंने पूछा !! इन्दु कैसी है ??? तो उनकी आंखें भर आयीं !!!! उनसे जैसे बड़ी मुश्किल से बोला गया गला भर आया था बोलते समय कि उसकी तो डेथ हो गयी एक महीने पहले !!!!! मैं सुनकर एकदम भौचक्का रह गया !!!! मैंने पूछा कैसे ?? तो उन्होंने बताया उस दिन मुझसे मिलके जाने के बाद से वो एकदम चुप हो गयी । घर मे सबने पूछा कि क्या बात हो गयी ? पर उसने किसी को कुछ नही बताया ?? धीरे – धीरे उसका पागलपन बढ़ने लगा। इलाज भी कराया पर कोई असर नही हुआ । और आखिर एक दिन सिर्फ तुम्हारा नाम लेते हुए वो इस दुनिया से विदा हो गयी । तब उस दिन हम सब को समझ आया कि वो शायद मन ही मन तुम्हें चाहती थी पर कभी किसी को बताया नही ?? अगर वो पहले ही हमे बता देती तो शायद आज वो !!!!!!! इतना कहते ही वो मेरे गले लगकर रोने लगे ।” मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें ढाँढस बंधाया । “मुझे खुद कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या कहूँ ??? इस बात का जरा भी अंदाजा नही था कि बात इतनी बिगड़ जाएगी!!! इन्दु सचमुच इतनी पागल थी मेरे लिए और मैं हमेशा उसे मज़ाक मे लेता रहा । ” उसके बाद इन्दु के पिताजी मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए “ सब ऊपर वाले की मर्जी ” कहते हुए वहां से चले गए । मैं उन्हें रोक भी न सका । “जहाँ खड़ा था वहीं का वही खड़ा रह गया !!”
किसी तरह हिम्मत करके घर पहुँचा । “ मेरा चेहरा एकदम पीला पड़ गया था , संध्या मुझे ऐसी हालत मे देखकर घबरा गई कि क्या हुआ ?? मैंने उसे इन्दु के पिताजी वाला सारा किस्सा बयान किया । मैं इन सब के लिए खुद को दोषी मान रहा था । संध्या बहूत समझदार थी , उसने मुझे धीरज बंधाया कि इसमें मेरा कोई दोष नही है । ” हालांकि संध्या की बातों से दिल को थोड़ी राहत तो मिली पर रात भर मैं चैन से सो न सका । “बार – बार इन्दु का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ रहा था । जैसे वो चीख – चीख कर कह रही है !!! ‘ तुम मेरे कातिल हो राजू ???’ पूरी रात इसी तरह बैचेनी मे कट गई ।”
कुछ दिन बाद अचानक संध्या की तबियत बिगड़ गयी उसे हॉस्पिटल मे भर्ती कराना पड़ा । उसकी हालत मे कोई सुधार नही हो पा रहा था । “डॉक्टर ने ऑपरेशन करने की सलाह दी और कोई चारा नही था संध्या और बच्चे को बचाने का । ऑपरेशन शुरू हुआ , मैं बाहर बैचनी से टहल रहा था । ‘ ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि संध्या और मेरे बच्चे को बचा ले । ’ थोड़ी देर बाद डॉक्टर बाहर आये तो उनके चेहरे पे मायूसी देखकर रहा नही गया !!!! पूछा क्या हुआ ??? और डॉक्टर सिर्फ इतना ही बोले कि “ सॉरी ”? मैं वहीं फर्श पर बदहवास सा बैठ गया !!!
मुझे कुछ सूझ नही रहा था । आँखों पर विश्वास नही हो रहा था कि जिसे मैंने चाहा वो मेरा साथ छोड़ कर जा चुकी है । मेरे आँसू पोछने वाला भी कोई न था मेरे पास?? ” अचानक मुझे “ इन्दु का दिया हुआ श्राप् याद आया जो उसने मुझे दिया था !!! कि मुझे कभी जिंदगी भर किसी औरत का प्यार नही मिलेगा ? और हमेशा तड़पेगा औरत के प्यार के लिए ??? ” शायद इसीलिए मेरी संध्या मुझसे दूर चली गयी । बार – बार इन्दु के कहे शब्द मेरे कानों मे गूंज रहे थे । उसका दिया श्राप् मेरी जिंदगी भर की सजा बन गयी !!!!!”
–END–