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Sweater

Published by Seema Singh in category Family | Hindi | Hindi Story with tag housewife | maid | Memories

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Hindi Family Story – Sweater
© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

“उफ़ सर्दियों का मौसम आया और ये कपड़ों का तूफ़ान साथ ले आता है .. पहनते वक्त नज़र नहीं आते और अलमारी मे रखने हो तो फिर देखो जगह ही नहीं बचती…”

“मैंने आपसे कहा था ना इसकी अलमारी अलग बनवा दीजिए अब बताइए कहाँ रखूं इसके कपड़े और कहाँ अपने..”

“आप सुन भी रहे हो?”

मुक्ता की आवाज़ सुनकर मयंक नें अखबार में से सिर निकाला… और कपड़ों के ढेर मे दबी अपनी पत्नी की खीज भरी सूरत देख बरबस हसी छूट गई …जैसे तैसे हसी रोक कर कहा “परेशान क्यों हो रही हो कुछ कपड़े मेरी अलमारी मे रख दो ना … और अब जैसे ही फुर्सत मिलती है एक अलमारी और बनवा लेंगें … वैसे भी पुराने कपड़े अलग कर दोगी तो थोड़ी जगह तो बढ़ ही जायेगी…” मयंक ने अपना सुझाव दिया..

मुक्ता जैसे किसी पहाड़ी टीले जैसे कपड़ों ढेर पर चढ कर बाहर निकल आई और मयंक के बगल में बैठ गई…

“आपकी अलमारी कौन खाली है फिर भी हैंगर तो लग जायेंगें दो चार…” मुक्ता ने आँखें सिकोड़ कर अनुमान लगाते हुए कहा…और बैठ कर बिखरे हुए कपड़े फोल्ड करने लगी..

मयंक भी जानता था अगर अब अखबार को हाथ लगाया तो उसकी खैर नहीं है… वो भी मुक्ता का हाथ बटाने के लिए बिट्टू के स्वेटर फोल्ड करने लगा…

“अरे ये वाला स्वेटर बिट्टू के बनेगा अब?” मयंक नें चौंक कर मुक्ता को एक स्वेटर दिखाते हुए पूछा….

“पता नहीं शायद ऊँचा हो गया हो..” मुक्ता ने हाथ में लेकर अंदाज़ा लगाते हुए कहा ..फिर अपनी बेटी बिट्टू को ज़ोर से आवाज़ लगाई… “बच्चे क्या कर रहे हो यहाँ आओ ज़रा…”

बिट्टू फुदकती हुई आकर खड़ी हो गई.. “क्या हुआ मम्मा?” और पूरे में अपने कपड़े बिखरे देख कर खुश हो गई “अरे वाह! मेरे स्वेटर निकाले हैं!” और एक-एक को उठा कर देखने लगी…

मुक्ता ने झिड़कते हुए कहा “अरे ये मत करो बेटा… ज़रा ये पहन कर दिखाओ… देखे बनता भी है या नही…”

ये क्या स्वेटर तो बिट्टू के पेट के ऊपर ही खतम…मयंक की हंसी रोके न रुकी मुक्ता भी हँस पड़ी… और बिट्टू तो जैसे बन्दर की तरह नाचने लगी छोटा सा स्वेटर पहन कर …जैसे-तैसे मुक्ता ने पकड़ कर जबरन स्वेटर उतरवाया…और मयंक की ओर देखकर बोली “ये भी छोटा हो गया.. बिलकुल नया सा रखा…”

“किसी को दे दो ना” मयंक ने सुझाया…

“ऐसे किसे दे दूं…?” मुक्ता ने खीज भरे स्वर में कहा… “पिछली साल निशा को दिए तो थे बिट्टू के छोटे कपड़े… बहनोई जी का भी मुँह बन गया था और उसकी सास नें कितनी बाते सुनाई थी.. हम क्या ऐसे गए गुजरे हैं जो उतरन दे दी तेरी बहन ने मेरे बच्चे को” मुक्ता ने कहा “ना बाबा मेरी हिम्मत नही किसी रिश्तेदार को अब पुराने कपड़े देने की…” मुक्ता ने दुखी होते हुए कहा “इतने प्यार से इतने कीमती कपड़े खरीदे हैं फेंक भी तो नहीं सकती अपने बच्चे के कपड़े हर कपड़े से यादें जुडी हैं मेरी हर कपड़े की एक कहानी है न फेंक पाऊँगी और न पोछा बना सकती हूँ….”

“कहाँ रखोगी फिर? इस दो कमरे के छोटे से फ्लैट में जरुरत का सामान आ जाए वही बहुत है फालतू सामान रखने की जगह कहाँ है..” मयंक ने परेशान होते हुए कहा

“दीवान में डाल दूंगी फिलहाल फिर सोचती हूँ क्या करना है” कह कर मुक्ता छोटे कपड़ों की पोटली बांधकर उठ गई…

“बहुत देर हो गई चलो खाना लगा रही हूँ..आप दोनो आ जाओ…अभी कामवाली बाई आ जायेगी…तो जल्दी मचायेगी…”

किचेन से खाना लेकर आती हुई मुक्ता ने अपने पति और बेटी को बुलाया… मयंक खुद तो आया ही साथ मे खेलती हुई बिटिया को भी सामान की तरह एक हाथ में लटका कर ले आया… “शरारतों में बड़ा मज़ा आता है तुमको…” बेटी को दुलारते हुए मुक्ता ने पास की कुर्सी बैठा दिया…

खाना खाकर उठे ही थे कि कामवाली आ गई… “आ गई गुंजन?” मुक्ता ने पूछा

“हाँ भाभी खाली है चौका?”

“ये कौन है भाई…?” मुक्ता ने बाई को जवाब देने के बजाय दूसरा सवाल उछाला… महरी के पीछे पीछे एक पतली-दुबली सी छोटी बच्ची खड़ी थी…

“क्या नाम है तुम्हारा?” मुक्ता ने प्यार से बच्ची से पूछा…

“भाभी को नाम बताओ अपना” माँ ने डांटते हुए कहा..

बच्ची सकुचा कर अपनी माँ के पीछे छुप गई… मुक्ता ने किचन में से एक कटोरी मे कुछ बिस्किट निकाल कर बच्ची को पकड़ा दिए…

“अरे इतनी सर्दी में इसको क्यों ले कर आ गई गुंजन बच्चा है बीमार पड़ जाये तो?” मुक्ता ने महरी को डपटते हुए कहा…

“अरे भाभी आज ज्यादा काम नहीं था तो ले आई इसको भी..बस आपका करके घर जा रही हूँ …” किचन साफ़ करते हुए गुंजन ने कहा…बच्ची वही डाइनिंग टेबल के पास ज़मीन पर बैठ कर मगन भाव से बिस्किट खाने लगी…

मुक्ता गौर से बच्ची और इस भयंकर सर्दी में उसके पहने हुए कपड़े देख रही थी…एक घिसा हुआ सा पुराना स्वेटर जिसमे गर्मी का तो नामो-निशान भी न होगा…अचानक मुक्ता की आँखों में जैसे चमक आ गई…लगभग दौड़ती हुई सी गई और बिट्टू के पुराने स्वेटर की पोटली उठा लाई…और एक निकाल कर ऊपर से ही नाप कर देखा बच्ची को एक दम फिट आयेगा… तब तक बाई भी काम खत्म कर के बाहर आ गई थी…कपड़ों की ढेरी देख कर मुक्ता से पूछा..

“गुड़िया के कपड़े हैं भाभी..”

मुक्ता ने सिर हिला कर मना करते हुए कहा “नहीं इसके हैं … तुम पहनोगी ना?”

बच्ची ने ललचाई नज़र से पहले कपड़ों की ओर फिर अपनी माँ की ओर देखा.. मुक्ता ने पूरी पोटली उठा कर महरी को थमा दी… उसके चेहरे पर अपूर्व संतोष था

“ये बात मेरे दिमाग मे पहले क्यों नहीं आई…” मुक्ता ने खुश होते हुए मयंक से कहा..

मुक्ता की खुशी का पारावार न था…आज उसे अपनी अमूल्य धरोहर का उचित उत्तराधिकारी जो मिल गया था..

***

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