This story is an extension of the first part named “who has the problem” published on 22nd May 2016 .
दिक्कत किसे
बिंदेश्वरी बाबू आज बहुत खुश थे। वे अपनी पत्नी जानकी के साथ आज अपने बेटे – बहू के पास पुणे जा रहे थे। उनकी पत्नी भी बहुत खुश थी. उन्होंने हैदराबाद में रह रही अपनी इकलौती बेटी और नतिनी गरिमा के भी आने का कार्यक्रम बना दिया था। गरिमा की गर्मियों की छुट्टियां थीं। इसतरह बेटी से मिलने का भी मौका मिल जाएगा। नतिनी से तो लगता है कि उसके पहले जन्मदिन के सालों बाद मिलेगी। इतनी सारी खुशियां भगवान् एक साथ दे रहे हैं। कभी – कभी डर भी लगने लगता है, क्योंकि इतनी सारी खुशियों के साथ उत्सव मनाने की आदि नहीं है वह। इसीलिये एक स्वाभाविक डर भी जेहन में घर कर लेता है।
करीब 32 घंटे की निरापद और सुखद यात्रा के बाद वे सुबह 6:30 बजे पुणे पहुँचने ही वाले थे। उन्होंने ट्रेन का कोच और बर्थ नंबर एस एम एस द्वारा बेटे प्रकाश के मोबाइल पर भेज दिया था। प्रकाश ने इसे कन्फर्म भी किया था। उसने रिप्लाई किया था कि वह उन्हें लेने आ जायेगा। हालाँकि सुबह उठने में थोड़ी तकलीफ हो सकती थी। ऐसा शायद वीक डेज़ होने के कारण हो सकता है। और आई टी फर्म में काम करने वाले लोग अक्सर देर रात तक काम करते हैं। इसलिए सुबह उठने में थोड़ी दिक्कत होनी स्वाभाविक है। फिर भी प्रकाश ने फोन पर कॉल करके कहा था कि अगर थोड़ी देर हो जाय तो स्टेशन पर ही इंतज़ार कीजियेगा। वह लेने जरूर आएगा।
विंदेश्वरी बाबू ने अपने मोबाइल पर 5:00 बजे सुबह का ही अलार्म सेट कर दिया था। ट्रेन सही समय से चल रही थी। वे, ठीक पांच बजे सुबह रोज ही जग जाया करते थे। सुबह नित्य – क्रिया के बाद थोड़ा ध्यान और उसके बाद निकल जाते पार्क की ओर लम्बी सैर के लिए। जानकी भी साथ होती थी। परन्तु वह थोडी दूर साथ चलकर पार्क के ही बेंच पर बैठकर आराम करने लगती थी। उसके घुटने में थोड़ा – थोड़ा दर्द रहता था। इसीलिये वे ज्यादा चल नहीं पाती थेी। सुबह की सैर के लिए आनेवाले मित्रों से मुलाकात भी हो जाया करती थी। वे अक्सर कहा करते थे, बिंदेश्वरी बाबू बड़े किस्मत वाले हैं। बेटी की शादी कर दिए हैं। और वह हैदराबाद में सेटल हो गई है। बेटा पुणे में अच्छी नौकरी पर लग गया है। बेटे की शादी भी कर दिए हैं। अब क्या है? खुद भी रिटायर हो गए हैं। बस आराम से जिंदगी गुज़ारनी है। वे कहते, “भाई साहब, इस बार पुणे जा रहे हैं, तो भाभी जी का घुटना भी जरूर दिखला दीजिएगा।”
ट्रेन सही समय पर प्लेटफार्म पर लगने वाली थी। उन्होंने प्रकाश को अपने मोबाईल से कॉल किया था। रिंग जाता रहा लेकिन किसी ने नहीं उठाया। उन्होंने अपना सारा सामान समेटा। वे गाड़ी रुकते ही धीरे – धीरे अपना ट्रॉली सूट केस और जानकी के साथ डिब्बे के अन्य यात्रियों के पीछे – पीछे प्लेटफॉर्म पर उतर गए। वे प्लेटफॉर्म पर एक लोहे के बने बेंच पर बैठ गए। पुणे वे पहली बार आये थे। हालाँकि बैंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई आदि जगहों पर वे प्रकाश के एडमिशन के समय जा चुके थे। उससमय उनकी अवस्था भी पचपन के करीब रही होगी। बृद्धावस्था ने अधिक जोर से नहीं घेरा था। सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था तेजी से घेरने लगती है। यह ऐसी स्थिति है जिसे आप किसी को बता भी नहीं सकते हैं। अपनी पत्नी को भी नहीं। सिर्फ स्वयं महसूस कर सकते हैं।
प्लेटफॉर्म के बेंच पर बैठने के बाद वे थोड़ा सुस्ताए। लोगों के आने – जाने की भाग – दौड़ और गाड़ियों के कर्णबेधक हॉर्न से शोर – गुल मच हुआ था। उन्होंने जानकी से पूछा था, “जानकी, अब क्या किया जाय? प्रकाश तो फोन ही नहीं उठा रहा है।”
“एक बार फिर कॉल कीजिये। वह नहीं तो बहु जरूर उठाएगी।’
जानकी को प्रकाश से अधिक रीता पर विश्वास था। बिंदेश्वरी बाबू भी यह सोचकर बहुत खुश थे। किसी माँ को अपने बेटे से अधिक अपनी बहु पर भरोसा हो, तो इससे बड़ी बात आज के रिश्तों के बदलते दौर में और क्या हो सकती है।
बिंदेश्वरी ने बाबू फिर कॉल किया था। इसबार प्रकाश ने ही फोन उठाया था। उसके उत्तर से लगा कि अभी तक वह पूरी तरह से नींद से जग नहीं पाया था। उसने उनींदे स्वर में ही उत्तर दिया, “आं…आं…कौन?”
“मैं, तुम्हारा पापा बोल रहा हूँ। मैं पुणे स्टेशन पर आ गया हूँ। तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।”
प्रकाश ने कहा था, “अच्छा, आप आ गए। ठीक है। वहाँ से निकलकर मेन गेट के तरफ आ जाइये। मैं आता हूँ।”
बिंदेश्वरी बाबू बहुत खुश हुए थे कि प्रकाश उन्हें लेने आ रहा है। इसके पहले प्रकाश जहां भी रहा है, चाहे पढाई के समय में बंगलोरे में, या नौकरी के समय चेन्नई में, वह ट्रेन के आने के पहले ही उन्हें लेने के लिए प्लेटफॉर्म पर आ जाता था। आज ऐसा पहले बार हुआ है, खासकर शादी के बाद कि वह उन्हें रिसीव करने के लिए ट्रेन आने के पहले से प्लेटफॉर्म पर मौजूद नहीं था।
इसबार हो सकता है कि काम की अधिकता के कारण उसे बीती रात तक जागना पड़ा हो। जब रात को कोई भी विलम्ब से सोएगा तो सुबह में नींद खुलने में देर हो ही जाएगी। बिंदेश्वरी बाबू ने विश्लेषण करके देखा तो लगा कि प्रकाश ने एक दो साल पहले जब से कंसल्टिंग फर्म के जॉब को स्विच किया है, तब से उसपर काम की अधिकता का बोझ हावी हो गया है। वह तनाव में भी रहने लगा था।
वे और जानकी दोनों ही स्टेशन से बाहर आ गए थे और वेटिंग लाउंज में ही प्रकाश का इंतज़ार करने लगे थे। सुबह में उन्हें चाय की जरूरत होती है। वे नित्य – क्रिया से तो ट्रेन में ही निवृत्त हो लिए थे। जानकी को भी उन्होंने उठाकर फ्रेश हो लेने को कहा था। उसने भी ट्रेन में ही ब्रश कर लिए था।
इसीलिये बैठे – बैठे उन्होंने चाय मंगवाई थी। उन्होंने जानकी के साथ चाय की पहली चुस्की ली ही थी कि उनके मोबाईल की घंटी बजी थी। उन्होंने हड़बड़ी में पैंट की पॉकेट से मोबाईल निकाला तो थोड़ी चाय छलक कर उनके शर्ट पर भी गिर गयी।
उन्होंने देखा कि यह तो प्रकाश का फोन है। उन्होंने रिसीव किया तो उधर से प्रकाश पूछ रहा था, “आप कहाँ पर है?”
बिंदेश्वरी बाबू को क्या मालूम कि वे कहाँ पर हैं? इसके पहले कभी पुणे तो आये नहीं थे। उन्होंने कहा था कि बुकिंग काउंटर के सामने के हॉल में इंतज़ार कर रहे हैं।
प्रकाश ने फिर पूछा था, “किस हॉल में वेट कर रहे हैं?”
यह आवाज़ ठीक से उन्हें सुनाई नहीं दी। पता नहीं, या तो कुछ इस अवस्था में पहुँच जाने के कारण उन्हें श्रवण – दोष हो गया था। या उसी समय गुड्स ट्रेन के पार होने के कारण कुछ आवाज़ें बढ़ गयीं थीं और वे अच्छी तरह शब्दों को सुन नहीं सके या शब्दों को पकड़ नहीं सके। इसके बाद प्रकाश का कॉल नहीं आया था।
बिंदेश्वरी बाबू भी कुछ अनमने से, कुछ लम्बे सफर में थकावट के कारण सुस्त से हो गए थे। कभी – कभी नींद की झपकी भी आ जा रही थी। जानकी ने उन्हें जगाते हुए कहा था, “फिर से प्रकाश को कॉल कीजिये न। इसी तरह स्टेशन पर ही बैठे रहिएगा?”
बिंद्रश्वरी बाबू प्रकाश के नंबर पर जैसे ही कॉल लगा रहे थे, कि प्रकाश ढूढता हुआ वहाँ आ गया। दूर से उसने कॉल किया था, “पापा, हमने आपको देख लिया है। आपलोग वहीं पर रहिये।”
वह वहाँ आया था। बिंदेश्वरी बाबु को प्रकाश का चेहरा और चेहरे का हाव – भाव नार्मल नहीं लग रहा था। कुछ गुस्से और कुछ खिन्नता का भाव चेहरे पर स्पष्ट देखा जा सकता था।
उसने प्रीपेड टैक्सी ले ली थी। टैक्सी में सारे लोग सवार हो गए। टैक्सी चलती रही। प्रकाश ने पापा – मामी को प्रणाम करने के बाद कुछ समाचार नहीं पूछा था। साधारणतया वह पूछा करता था, “ट्रेन से यात्रा में कोई दिक्कत तो नहीं हुयी? आपके सहयात्री तो ठीक थे? कभी – कभी अच्छे सहयात्री नहीं मिलने के कारण भी दिक्कत हो जाती है। वगैरह, वगैरह।”
लेकिन एक सन्नाटे के सिवा कुछ नहीं ब्याप्त था उनके बीच। इस सन्नाटे को जानकी ने ही तोडा था, “प्रकाश, सब ठीक है न? रीता तो ठीक है न?”
प्रकाश ने सिर्फ “हाँ, हूँ,” में ही जवाब दिया था। जानकी समझ नहीं पा रही थी कि इतना अधिक बात करने वाले प्रकाश को आखिर हो क्या गया था?
इसी समय अचानक टैक्सी के दाहिने तरफ के पिछले चक्के से आवाज़ आने लगी। स्पीड में जाती हुयी टैक्सी डगमगाने लगी। टैक्सी वाले ने गाड़ी रोक दी। टायर पंक्चर हो गया था।
टैक्सी वाले ने कहा, “मेरा टायर पंक्चर हो गया है। मेरे पास स्टेपनी भी नहीं है। इसलिए इसे ठीक करने में समय लगेगा। इसलिए आप ओला कैब को बोल दीजिये। कहिये तो मैं आपके लिए ओला कैब बुला देता हूँ।”
प्रकाश, “नहीं, नहीं, रुको। मैं ही बुलाता हूँ।”
प्रकाश ने अपने मोबाइल से ओला कैब से कांटेक्ट किया। उधर से रिप्लाई आया कि 20 मिनट के अंदर ओला कैब आ रहा है। प्रकाश ने तबतक टैक्सी वाले को रुकने को कहा था।
टैक्सी वाले ने ही सामान निकाला था। ओला कैब आ गया था। टैक्सी वाले ने ओला कैब पर सामान लोड करने में मदद की थी। सामान भी कहाँ ज्यादा था।
सामान सहित बिंदेश्वरी बाबू और जानकी ओला कैब में स्थांतरित हो गए थे या कर दिए गए थे । वे दोनों भी तो सामान जैसे ही लग रहे थे। न कोई बातचीत, न कोई समाचार की ही पूछताछ। उनकी बेटी भी हैदरबाद से आ रही थी। उसके बारे में भी प्रकाश ने कोई इन्कवायरी नहीं की थी।
प्रकाश, जानकी और बिंदेश्वरी बाबू के सामान के साथ अपने फ्लैट में पहुंचकर उन्हें लिविंग रूम में छोड़कर स्वयं बेड रूम में चला गया था। वहाँ रीता अभी सोई हुई थी। वह नाइटी में ही थी। वह हड़बड़ाकर उठी थी। वह तुरत बाथरूम में गई। फ्रेश होकर उसने मिनटों में ही अपना परिधान परिवर्तित कर सलवार – सूट पहन लिया था। बाहर लिविंग रूम में आकर उसने बिंदेश्वरी बाबू और जानकी के पांव छूए। इतने में गरिमा का फोन आया था। प्रकाश ने कॉल रिसीव किया था। गलती से प्रकाश से लाउडस्पीकर बटन दब गया। मोबाईल पर गरिमा की आवाज़ जानकी और बिंदेश्वरी बाबू ने भी सुनी, “मामा जी, हमलोग भी पुणे स्टेशन पहुँच गए हैं। ऑटो लेकर जो पता आपने SMS किया था, उसपर पहुँच रहे है।”
प्रकाश ने पूछा था, “कोई दिक्कत तो नहीं होगी।”
गरिमा, “नहीं मामा जी, कोई दिक्कत नहीं होगी। माँ तो पुणे में ही रहकर MBA की थी। इसे सब मालूम है।”
इसतरह गरिमा का प्रकाश से इतनी विश्वसनीयता के साथ बात करना जानकी को बहुत अच्छा लगा। वह बिंदेश्वरी बाबू से बोली, “देखे, आपकी नतिनी कितनी कॉन्फिडेंस से बात कर रही है।”
बिंदेश्वरी बाबू भी बहुत खुश नज़र आये।
प्रकाश ने उत्तर दिया था, “ठीक है, आ जाओ।”
15 – 20 मिनट बाद बेटी और नतिनी गरिमा ने जैसे ही प्रकाश के फ्लैट का दरवाज़ा खोला। प्रकाश की जोर – जोर से चीखकर बोलने की आवाज़ें साफ़ सुनाई दे रही थी। उसमें खिन्नता भी थी और अंतर्निहित गुस्सा भी।
“पापा, आपको कितनी बार कॉल किया। आपको कॉल तो रिसीव करनी चाहिए थी। यह सब क्या है? मैं इतना सवेरे उठकर आपको लेने स्टेशन गया था, और आप हैं कि कॉल ही नहीं रिसीव करते हैं। आप भी अजीब हो गए हैं।”
प्रकाश का ब्यवहार देखकर बिंदेश्वरी बाबू हतप्रभ थे। वे कातर होकर स्वयं – दोष – भाव से ग्रस्त, विचलित होकर बोले थे, “बेटे, थोड़ा इस उम्र में श्रवण – दोष और स्टेशन पर बढे हुए शोरगुल के कारण मैं तुम्हारा कॉल रिसीव नहीं कर सका।”
प्रकाश की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी, “आप जानते हैं, ऑफिस का काम निबटाने के लिए रात देर तक जागने के बाद भी सुबह उठकर आज, वीकडेज़ के दिन होते हुए भी आपको लाने गया। और आप इतने लापरवाह हैं कि फोन भी नहीं उठाते हैं।”
जानकी की बेटी भी यह सब सुन रही थी। गरिमा तो यह सब देखकर अवाक थी। बिंदेश्वरी बाबू अपना सर झुकाए चुपचाप प्रकाश की बातें सुन रहे थे, ताकि प्रकाश को लगे कि उसकी बातें और आरोप उन्होंने स्वीकार कर लिए हैं। यह जरूरी भी था क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि नई – नई बहु के सामने कोई असुंदर और बदसूरत दृश्य उपस्थित हो जाय। लेकिन प्रकाश ने अपने पेरेंट्स पर जोर – जोर से चिल्लाकर रीता के मस्तिष्क में बेटे और बाप के रिश्तों की कलई जरूर खोल दी थी। जिस माता – पिता को बेटा ही सम्मान नहीं देता हो, उसे बहु क्या सम्मान देगी। जानकी ने देखा कि अपनी बहु रीता भी कमरे के परदे के पीछे खड़ी होकर सारा दृश्य देख रही थी, चेहरे पर उपहासपूर्ण स्मित भाव लिए हुए।
थोड़ी देर बाद बिंदेश्वरी बाबू संज्ञाशून्यता की स्थिति से वापस लौटे थे। वे प्रकृतिस्थ हुए और तत्काल स्थिति को संभालने के लिए और अपनी नज़रो में गिरती, अपनी खुद की साख को और गिरने से रोकने के लिए अपने को नित्य – क्रिया में लगा देना ही उन्हें श्रेयस्कर और उचित लगा।
प्रकाश जल्दी – जल्दी तैयार होने लगे। रीता ने चाय बनाकर बिंदेश्वरी बाबू, जानकी और प्रकाश की बहन को चाय दी। इतने में झाड़ू – पोंछा लगाकर खाना बनाने वाली मेड भी आ गई थी।
उसने रोटी बनाई। रीता और प्रकाश साथ – साथ बैठकर नाश्ता किए। किचन से नाश्ता निकालकर प्रकाश ने ही लाया था। जानकी भी यह सब खुली आँखों से देख रही थी। उसे समझ आ रहा था कि जहाँ पति – पत्नी दोनों ही काम करते हों, रिश्तों की अहमियत तभी समझी जाती है, जब दोनों में सारे कामों को एक दूसरे के लिए शेयर करने में होड़ लगी हो। कौन किस दिन कितना अधिक अपने पार्टनर को खुश करने के लिए क्या – क्या किया? दोनों ही नाश्ते के बाद एक साथ काम के लिए निकल गए थे।
प्रकाश ही बोलते हुए गए थे, “माँ, दीदी आपलोग खाना खा लीजिएगा। मेड पूरा खाना बनाकर जाएगी। रीता ने उसे जरूरी निर्देश दे दिए हैं।”
प्रकाश के आने में नौ बज जाया करते थे। रीता आठ बजे ही आ गयी थी। बिंदेश्वरी बाबू को रीता खाना देने लगी तो वे बोले थे कि प्रकाश के आने के बाद साथ ही खाएंगे।
प्रकाश नौ बजे ही आये थे। उन्होंने फ्रेश होने के बाद खाना लगाने को कहा था।
“पापा, आपने खाना खा लिया?”
“नहीं बेटे, सोचा तुम्हारे साथ ही खाएंगें। मैंने नहीं खाया है तो गरिमा ने भी नहीं खाया है। बोलती है कि सभी लोग साथ खाएंगें।”
इतने में रीता ने खाना लगा दिया था। जानकी ने टेबुल पर प्रकाश, बिंदेश्वरी बाबू और गरिमा का खाना टेबुल पर रख दिया था। जानकी ने कहा था कि मेरी बेटी, मैं और रीता बाद में एक साथ खाएंगे। आपलोग खाइये।
सभी लोग खाना खाने लगे। गरिमा कुछ जल्दी – जल्दी खा रही थी।
प्रकाश ने गरिमा को समझाना शुरू किया, “देखो, गरिमा, खाना चबा – चबाकर खाना चाहिए। तीन रोटियों को खाने में 15 – 20 मिनट लगाने चाहिए। ज्यादा देर तक चबा – चबाकर खाने से गुस्सा भी कम आता है।“
इतने में गरिमा बोल उठी, “इस शिक्षा की जरूरत आपको अधिक है। आपने सवेरे नाना के साथ ठीक से behave नहीं किया। Learn to behave yourself, then teach others.” कहकर वह टेबुल से बिना खाये उठ गयी।
प्रकाश की बहन ने अपनी बेटी को डांटा था, “गरिमा, बड़ों से ऐसे बात करते हैं?”
“इसे पहले बड़ों को बताओ, माँ, फिर मुझे बताना।”
ऐसा कहकर गरिमा तेजी से कमरे में चली गयी और जोर से दरवाजा बंद कर लिया।
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–ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
तिथि: 01-06-2016.
स्थान: ऐरोली, नवी मुंबई।