वो पांचवी सालगिरह
Disclaimer: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, लेकिन सच्चाई का संयोग न होने की कोई गारंटी नहीं है।
शनिवार की सुबह के सात बजे थे, जब मेरी आँख खुली। आम तौर पे दुनिया भर के दफ़्तरों में वीकेंड पे छुट्टी होती है, लेकिन मेरी कंपनी इस दुनिया की श्रेणी में कहाँ आती थी? यहाँ पर तो १५ अगस्त और २६ जनवरी को भी छुट्टी इस तरह से घोषित होती है, जैसे की देश पे एहसान कर रहे हों। बड़े भारी मन से बिस्तर से उठा और मधु और श्लोक की तरफ देखा जो ख़र्राटों की प्रतियोगिता में कुंभकरण को भी टक्कर दे रहे थे।
मधु के चेहरे की एक ख़ास बात थी कि उसे सोते हुए देखके यह बता सकतें हैं कि वो नींद में कौनसा सपना देख रही है। जिस तरह से दाँत भींचके मधु सो रही थी, मैने अनुमान लगाया कि ज़रूर सपने में किसी ग़रीब चोर की डंडे से पिटाई कर रही होगी। या शायद मेरी?
यही सोचते हुए जब मैने चेहरे पे हाथ फेरा तो याद आया कि मैने पिछले एक हफ्ते से शेविंग नहीं की है और रात ही मधु ने अलटिमेटम दिया था की याँ तो मैं कल हजामत बनाऊं या धर्म-परिवर्तन करके सरदार बन जाऊं।
“राघव बेटा।।”, मेरी अंतरात्मा से आवाज़ आई, “मधु के उठने से पहले शेविंग कर ले वरना जो सपना वो अभी देख रही है, वो उसके उठने के बाद तेरे लिए भयानक हक़ीकत बन जाएगा!”
खुद को पिटता हुआ सोचते हुए मैं कमरे से बाहर निकला और हॉल के स्टेरीयो सिस्टम से FM रेडियो ऑन किया।
“दे दे प्यार दे, हमें प्यार दे…” शराबी फिल्म का गाना बजना शुरू हुआ जिसे गुनगुनाते हुए मैं बाथरूम में दाखिल हुआ और हाथ में रेज़र लेके दुनिया के सबसे बोरियत वाले काम को अंजाम देना शुरू किया। अचानक मुझे भूकंप के हल्के झटके महसूस होने लगे। कुछ पल बाद झटकों के आवाज़ और तेज़ हुई तो पता चला कि कोई बाथरूम का दरवाजा बाहर से पीट रहा है।
मैने जैसे ही बातरूम का दरवाजा खोला तो सामने मधु के रूप में साक्षात चन्डी माँ के दर्शन हुए।
“आपको थोड़ी भी अकल है कि नहीं?” मधु ने गुस्से में सिर हिलाते हुए कहा।
“हुआ क्या मधु जी? देखो मैं तो शेविंग भी कर रहा हूँ।” मैने सकपकाते हुए पूछा। जब भी मधु गुस्से में होती थी, तो मैं बड़े ही सम्मान के साथ उसके नाम के साथ ‘जी’लगाके समोधित करता हूँ।
“ये जो १५-१५ दिन के बाद शेविंग करते हो, तो तुम्हारी दाढ़ी के बाल सिंक में अटक जाते हैं, और नाली जाम हो जाती है। पिछले हफ्ते ही प्लमबर को बुलाया था और आज फिर वहीं शेविंग कर रहे हो!”
मैने हैरत से एक नज़र अपने Gillette Fusion के 5-ब्लेड रेज़र पे डाली और फिर मधु को देखा, “Are you insane? मैं सर के बाल थोड़ी काट रहा हूँ जो सिंक में अटक जाएँगे! कुछ तो लॉजिकल बात करो। Gillette कंपनी वालों ने कहीं तुम्हारी बातें सुन ली तो तुमपे केस कर देंगे।” मैने कहते हुए शेविंग क्रीम की ट्यूब को होल्डर में वापस डालने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब हुआ।
“शेविंग क्रीम तो ढंग से रखने आती नहीं…” मधु ने ट्यूब को मेरे हाथ से छीना और उसे उल्टा करके होल्डर में रखती हुई बोली, “…और खुद को तीस-मार-ख़ान समझते हो।”
“अरे वो तो तुम्हें गुस्से में देखके मेरे हाथ काँपने लगते हैं।” मैने बात बनाते हुए कहा, “और कोई शिकायत है?”
“कुछ नहीं!” मधु ने बाथरूम की हालत देखी और पलटके वापस किचन में चली गयी। बीवियों के पास थर्ड डिग्री टॉर्चर करने के बहुत तरीके होते हैं, जिसमें से एक तरीका ये है कि वो जिस बात पे नाराज़ है वो वजह कभी खुल के जाहिर नहीं करेंगी और बेचारे पति की आधी ज़िंदगी इसी ख़ौफ़ मैं गुज़र जाएगी की आख़िर उसकी ग़लती थी क्या?
मैं बिना इस बात की परवाह किए कि शेविंग क्रीम अभी भी मेरे चेहरे के आधे हिस्से में लगी हुई है, किचन में गया और मधु से बड़ी मासूमियत से पूछा, “बताओ भी, अब मैने क्या किया?”
“आप कभी कुछ करते कहाँ हो? सुबह सुबह इतनी ज़ोर से उटपटांग गाने बजाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? टाय्लेट इस्तेमाल करने के बाद कमोड को ठीक से साफ करना तो दूर, उसकी सीट तक नीचे करना भूल जाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? नहाने के बाद गीला तोलिया वहीं सोफा पे छोड़ देते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? अपने प्रेस किए हुए कपड़े तक अपने अलमारी में नहीं रख पाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो?”
अगले कुछ पल सन्नाटा, और फिर FM रेडियो पे “ज़ोर का झटका हाए जोरों से लगा” गाना बजने लगा, जो मेरी परिस्थिति पे बिल्कुल सही फिट बैठता था।
“एक तो ये बकवास गाने सुनके मेरा ज़्यादा सरदर्द होता है। आपके पास कोई और ढंग के गाने नहीं है क्या?” मधु ने अपना सर पकड़ते हुए कहा।
“ये गाने कोई मैने थोड़ी लिखे हैं, और वैसे भी यह गाने मेरी प्लेलिस्ट में से नहीं बल्कि FM रेडियो पे आ रहे हैं।” मैने गाना बदलते हुए कहा, “मैं तो चाहता हूँ कि सिर्फ़ तुम्हारे नाम के गाने सुनूँ, लेकिन तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा नाम ही इतना चुनकर रखा है, जिसपे आज तक कोई एक गाना नहीं बना। जूली, किरण, चाँदनी, कंचन, मुनी, शीला, रबरी, जलेबी, यहाँ तक की तुम्हारी बहन मोनिका पर भी गाना बना हुआ है, सिर्फ़ एक तुमको छोड़के।” मैने मधु को छेड़ा।
“आप मोनिका की बात तो रहने ही दो। और इतने ही मेरे नाम के गाने गाने थे, तो शादी के बाद क्यूँ नहीं मेरा नाम बदल दिया?”
मैं संजीदा होके कहा, “देखो हमारा नाम हमारी पहचान का एक अंश होता है, और हमें किसी को भी खुदकी पहचान बदलने का हक़ नहीं देना चाहिए। मैं तो शादी के बाद सरनेम बदलने के भी पक्ष में नहीं हूँ।”
आख़िरकार मधु के चेहरे पे मुस्कुराहट आई और वो मुझे गले लगते हुए बोली, “लेकिन मुझे तो मेरे नाम के साथ आपकी सरनेम बहुत पसंद है, ‘मधु माखीजा’, ऐसा लगता है जैसे कोई किसी मिठाई की दुकान पे मक्खियों को भगा रहा हो।” ये कहके मधु अपनी उंगली से शेविंग क्रीम मेरी नाक पे लगाते हुए ज़ोर से हंसने लगी।
चाहे मधु दिन में हज़ार बार रूठती हो, लेकिन उसे एक बार हसते हुए देखके मुझे जो खुशी मिलती है, वो शायद शब्दों में बयान करना नामुनकिन है।
“चलो, आप जल्दी से तैयार हो जाओ, आपको ऑफिस के लिए लेट हो रहा होगा। और शाम को आज जल्दी आ जाना, आज नीलू चाची के दामाद की बर्थडे पार्टी में जाना है।”
“अरे यार मैं पिछले 5 साल मैं आज तक यह नहीं जान पाया कि तुम्हारे आख़िर कितने रिश्तेदार हैं? और वो इतने नवरे क्यूँ हैं की हर दूसरे दिन कोई ना कोई पार्टी देते रहते हैं? अभी परसों ही तो तुम्हारे मामा के पोते के मुंडन में गये थे!” मैने चिड़ते हुए कहा।
“अब भाटिया और शर्मा परिवार का इतना रुतबा है इस शहर में तो इसमें आपको क्यूँ जलन हो रही है?” मधु ने पूछा।
“मुझे जलन नहीं हो रही है, मेरी ज़िंदगी ख़तम हो रही है इन सब फालतू के झंझटों में। कभी किसी का जनमदिन होता है, तो कभी किसी का मरनदिन! और जब ये सब वजहें भी ना हों, तो तुम्हारे रिश्तेदार जंगलकांड का पाठ रख देते हैं।”
“जंगलकांड?” मधु कुछ सोचने के बाद बोली, “कम से कम नाम तो ढंग से लिया करो, उसे सुंदरकांड कहते हैं।”
“अरे सुंदरकांड हो या जंगलकांड, क्या फ़र्क पड़ता है। तुम्हारे रिश्तेदार सारे कांड में माहिर हैं। सामने पाठ चल रहा होगा और आपस में पीने-पिलाने की बातें कर रहे होंगे।”
“और आपका खानदान कम अजीब है?” मधु ने काउंटर-अटेक किया, “मुहे याद है आपके पेरेंट्स जब मुझे देखने आए थे, तो आपकी माँ कैसे मुझे घूर घूर के देख रही थी और फिर पूछती हैं कि क्या मेरी आखें असली हैं? हद है! उन्हें क्या लगा कि मेरी आँख पत्थर की है या मैने कलर कॉंटॅक्ट लेंस लगाए हुए हैं?”
“वो तो उन्हें यकीन नहीं हुआ कि किसी की आखें इतनी खूबसूरत भी हो सकती हैं।” मैने बात संभालते हुए जवाब दिया।
“अब रहने भी दो ये मस्का लगाना और जाके तैयार हो जाओ।” मधु मुझे किचन से धक्का देते हुए बोली।
“हां लेकिन शाम को फन्क्शन में मैं नहीं चलूँगा।” मैने बाथरूम में जाते हुए कहा।
“ठीक है बाबा मत चलना, लेकिन कल का क्या प्रोग्राम है?” मधु ने ज़ोर से आवाज़ दी।
‘कल का प्रोग्राम? कल क्या है??’ मैने मुँह धोते हुए सोचा। फिर अचानक याद आया की कल हमारी शादी की पाँचवी सालगिरह है। मैने ना अब तक मधु के लिए कोई गिफ्ट लिया था, ना कोई प्लांनिंग की थी।
“राघव, अब तो तू गया काम से” मेरी अंतरात्मा ने घोषणा की। “मधु पक्का तुझे इस बार तलाक़ देने वाली है! अब क्या करेगा?’
नहाते हुए मेरे कानों में हॉल में बज रहे गाने की आवाज़ आ रही “सुन रहा है ना तू, रो रहा हूँ मैं…।”
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तैयार होकर मैं घर से ऑफ़िस के लिए निकला तो सही लेकिन रास्ते भर सिर्फ एक ही चिंता सताए जा रही थी कि इतने कम समय में मधु को ऐसा क्या गिफ्ट लेके दूँ, जिससे वो कम से कम सालगिरह के दिन तो मुझे तलाक ना दे।
ऑफ़िस पहुँचते ही मेरी नज़र समीर पर पड़ी जो बड़े ही ध्यान से लैपटॉप पर काम कर रहा था। उसके काम में इतना मग्न होने का एक ही मतलब होता है कि वो ज़रूर ‘सोलीटर’ गेम खेल रहा होगा। जैसे ही मैंने उसका नाम पुकारा, उसने सकपकाते हुए झट से अपने की-बोर्ड पे ALT+TAB दबाया और आउटलुक ओपन कर दिया।
“अबे घबरा मत, मैं हूँ!” मैने बताया।
वो तुरंत ही तनाव मुक्त हुआ और फिर से लॅपटॉप पर ‘सोलीटर’ खेलते हुए बोला, “घबरा कौन रहा है? मैं किसी से डरता हूँ क्या? एक तो Saturday को भी ऑफ़िस में गधे की तरह हाज़री देनी पड़ती है, उपर से सारी सोशियल नेटवर्किंग वेबसाइट्स भी ब्लॉक की हुई है। जब कुछ काम ही नहीं है करने को, तो बंदा ‘सोलीटर’ नहीं खेलेगा तो क्या झख मारेगा?
“शांत क्रांतिकारी समीर, शांत। तुझे काम चाहिए तो मैं देता हूँ ना! फ़र्ज़ कर कि अगर तू एक लड़की होता तो अपनी शादी की पाँचवी सालगिरह पे अपने पति से किस तोहफ़े की उम्मीद करता?”
“भाई मेरे, ना मैं लड़की हूँ, ना मेरी शादी हुई है और ना ही मुझे किसी से कोई गिफ्ट की उम्मीद है।” समीर ने कंधे उचकाते हुए कहा।
“लेकिन फिर भी कोई आइडिया तो दे। मुझे मधु को कल पाँचवी सालगिरह का तोहफ़ा देना है, लेकिन क्या दूं, समझ नहीं आ रहा।”
“Bro, तू ग़लत दरवाज़े पे कुण्डी खड़का रहा है। ऐसे आदमी के पास जा, जो इस मामले में एक्सपर्ट हो।” समीर ने चुपके से शेट्टी की तरफ इशारा किया, जो बगल वाली cubicle में अख़बार पढ़ रह था।
शेट्टी की उम्र करीब चालीस के करीब होगी और वो काफी गंभीर प्रवृति का व्यक्ति था जिसने हमारी कंपनी में तीन महीने पहले ही एंट्री मारी थी। वो साउथ से आया था और हम सबसे बहुत कम ही बात करता था। हम में से कोई भी उसके बारे में कुछ ज़्यादा नहीं जानता था सिवाए इस अफ़वाह के, कि कुछ महीने पहले ही उसका अपनी पत्नी से तलाक हुआ था। शायद इसलिए समीर के कहने पर मैने उसकी तरफ देखा तो सही, लेकिन उससे कोई भी मशवरा पाने की मेरी कोई प्रबल इच्छा नहीं थी।
शायद उसने मेरी इस मंशा को भाँप लिया था इसलिए वो अपनी सीट से उठा और अख़बार को इतनी कोमलता से फोल्ड किया जैसे कल फिर यही अख़बार पड़ेगा। मेरी तरफ कदम बढ़ाते हुए उसने अपने अपने साउथ-इंडियन लहज़े में कहा, “मैं तुम लोगों का बात सुना। मैं तेरे को एक मिलियन-डॉलर सजेशन देगा! कोई गिफ्ट देने का ज़रूरत नहीं है। तुम पाँच साल से तुम्हारा बीवी के साथ है, वो ही तुम्हारा बीवी के लिए सबसे बड़ा गिफ्ट है। अदरवाइज़ पाँच साल में तो गवर्नमेंट बदल जाती है।”
“और हमारी राघव सरकार तो अब तक मज़बूती से टिकी हुई है!”समीर हंसते हुए बोला।
मुझे अब समझ में आ रहा था की शेट्टी के तलाक का क्या कारण रहा होगा। अभिमान और अक्खड़पन की अतिशयोक्ति की वजह से उसकी पत्नी ने उसकी सरकार भंग की होगी। मैने समीर को गुस्से से देखा और शेट्टी को हाथ जोड़ते हुए कहा, “शेट्टी सर, मैने आपका क्या बिगाड़ा है जो आप मुझे ऐसे आत्मघाती सुझाव दे रहे हो। कोई ढंग का सजेशन दो ना!”
“अरे तुम साला नया जनरेशन का सब लोग डरपोक है, सारी ज़िंदगी बीवी के पल्लू में ही रहेगा।” शेट्टी झल्लाया और ऑफीस से बाहर निकलने से पहले बोला, “अगर गिफ्ट देना ही है तो सुनो। बीवियों को दो चीज़ें सबसे ज़्यादा attract करती हैं – कपड़े और गहने। दोनो में से कुछ भी लेके दे दो “ वैसे जाते जाते बात सही कह गया ये।” समीर ने कहा “क्या खाक सही कहा।” मैं अपनी सीट पे बैठते हुए बोला, “मधु की पसंद के कपड़े मुझे समझ नहीं आते। उसके पिछले बर्थडे पर एक ड्रेस गिफ्ट की थी, उसने ड्रेस को देख के ऐसे रियेक्ट किया जैसे मैंने उसके हाथ में मरा हुआ चूहा रख दिया हो।”
“तो उसे सोने के ‘earrings’ लेके दे दे। खुश हो जाएगी।”
“वो गोल्ड नहीं पहनती। सोने से उसे एलर्जी है, स्किन में ‘rashes’ हो जाते हैं।” मैने समझाया।
“खुशकिस्मत है यार तू। ऐसे एलर्जी भगवान हर पत्नी को दे।” समीर हंसा।
मैं इधर टेंशन में हूँ, और तू मेरी फिरकी ले रहा है। अभी थोड़ी देर में ‘हरी साडू आयेगा और ‘साई इंडस्ट्रीस’ के टेंडर की फाइल माँगेगा। मैं वो फाइल पूरी करूँ या बीवी के गिफ्ट के लिए बाहर दुकानों पे भटकू? आखिरी दिन पे तो ऑनलाइन शॉपिंग भी नहीं कर सकता।”
तभी मेरे फ़ोन की रिंग बजी और मधु का फोटो स्क्रीन पे फ़्लैश हुआ।
“अब क्या काम पड़ गया मधु को?” मैंने फोन उठाया और बड़े प्यार से कहा, “बोलिए मधुजी, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?”
सामने से मधु के बजाए श्लोक की आवाज़ आई, “पापा आज आप मेरे से मस्ती किए बिना ही ऑफ़िस क्यूँ चले गये?”
मैं समझ गया कि श्लोक ने फिर से मधु के सेलफोन के स्क्रीनलॉक का पैटर्न हैक कर लिया है और वो बिना मधु को बताए मुझसे बात कर रहा है।
“बेटा, आपकी छुट्टी थी तो मैंने आपको सोने दिया। अभी दिन को आऊंगा तो पक्का मस्ती करेंगे, ठीक है?” मैने जवाब दिया।
“प्रॉमिस? आप जल्दी घर आ जाना, आपके लिए एक सर्प्राइज़ है!”
“बेटा, सर्प्राइज़ तो मुझे आपकी मम्मा को देना है, आप मुझे क्यूँ सर्प्राइज़ दे रहे हो?”
“मम्मा को सर्प्राइज़! कौन सा?” श्लोक ने चिल्लाते हुए“वो ही तो कब से मैं भी सोच रहा हूँ बेटा’ मैंने मन ही मन कहा और श्लोक को जवाब दिया, “सर्प्राइज़ बताते थोड़ी हैं, और आप मम्मा को सर्प्राइज़ वाली बात नहीं बताना, ठीक है? यह हमारा सीक्रेट है!”
“ओके, पापा। अभी मैं फोन रखता हूँ। मम्मा नहा के आती होगी। आप जल्दी से आ जाना!”
“ओके बेटा, bye।” मैने फोन रखा और समीर से कहा, “मुझे समझ नहीं आता की आज कल के बच्चे कैसे इतने ‘technologically advance’ हैं? जब मैं चार साल का था तो मेरा इकलौता टैलेंट था सोफा मैं से रुई निकाल के खाना।”
“तू बचपन से ही इतना खाऊ था?” समीर ने फिर कटाक्ष किया।
“अबे उस वक़्त घर पे टाइम पास के लिए ना टीवी पे कार्टून चैनल्स होते थे, ना कोई सेलफोन। बस घर में एक फटा हुआ सोफा था जिसमे से रुई निकला करती थी।”
“सेलफोन की बात से एक आइडिया आया है। तू अपनी वाइफ को कोई नया सेलफोन क्यूँ नहीं गिफ्ट करता? आजकल सेल्फी का ज़माना है, बीवी खुश हो जाएगी।” समीर ने कहा।
“यह सुझाव तो बढ़िया है यार।” मैने खुश होते हुए कहा, “मधु वैसे ही कुछ टाइम से कह रही थी की उसका फोन बहुत hang होता है। आज ही दिन को जा के एक अच्छा फोन लेता हूँ और रात को 12 बजे मधु को गिफ्ट करूँगा।”
तभी ऑफिस में बॉस ने ऐसे एंट्री मारी जैसे ‘शोले’ फिल्म में गब्बर सिंह ने मारी थी और आते ही मुझे कालिया समझ के बोला, “राघव, वो ‘साई इंडस्ट्रीस’ का कोटेशन बन गया?”
मैंने सकपकाते हुए कहा, “बस सर, उसी पर वर्किंग चल रही है। अभी थोड़ी देर में देता हूँ।”
“Hurry Up! आज दिन को जाने से पहले फाइल कंप्लीट करके मुझे दिखाना। आज शाम को बिडिंग करनी है।”
“Noted Sir!” मैंने कहा और अगले 3 घंटे फाइल में ऐसा उलझा की मधु के लिए कौन सा मोबाइल लेना है, वो ऑनलाइन सर्च ही नहीं कर पाया। जब 2 बजे मेरी नज़र घड़ी पर पड़ी तो श्लोक से किया हुआ प्रॉमिस याद आया। जल्दी से फाइल मैंने बॉस के टेबल पे रखी और घर को रवाना हुआ।
घर आते ही जैसे मेन गेट खोला, श्लोक दौड़ते हुए बाहर आया, “Yayyy, पापा आ गये!”
मैने श्लोक को गोदी मैं उठाया और घर के अंदर घुसा, जहाँ सामने ही मधु गुस्से में बैठी थी।
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“टाइम देखा है? आए ही क्यूँ हो? ऑफ़िस में ही खाना मंगा लेते!” मधु ने दहाड़ा।
“अरे मधुजी, कोई भी होटेल तुम्हारे जैसा स्वादिष्ठ खाना बना सकता है क्या?” मैंने सिचुयेशन को संभाला।
“रहने दो। अब श्लोक को नीचे उतारो और खाना खाओ। वैसे ही ठंडा हो गया है।”
“नहीं, पापा ने बोला था की वो पहले मेरे साथ मस्ती करेंगे।“ श्लोक ने कहा और मुझे ज़बरदस्ती अपने अखाड़े यानी बेडरूम में ले गया।
श्लोक के लिए मस्ती का मतलब था ‘दंगल′ और ‘कुश्ती’ ‘दंगल′ फिल्म देख के सीखा था, और अब हर दिन मुझपे एक्सपेरिमेंट करता था। अगले 15 मिनिट तक शरीर के हर हिस्से में मार खाने के बाद और हॉल से मधु के चिल्लाने के बाद, श्लोक ने फाइनली मुझे खाना खाने की इजाज़त दी।
जैसे ही खाने का पहला निवाला मुंह में डाला, मधु ने कहा, “आप मेरी एक बात मानोगे?”
चाहे आप अपनी बीवी की हज़ार बातें मान लें, अगले दिन आपकी बीवी फिर से यही सवाल करेगी कि ‘आप मेरी एक बात मनोगे?’
मैंने मधु की मंशा भांपते हुए कहा, “बिल्कुल मानूँगा। बस शाम को नीलू चाची के दामाद की बर्थडे पार्टी में चलने को मत कहना। वो बात सुबह ही हो गयी थी।”
मधु रूँआंसा होके बोली, “आपको पता भी है मुझे कितना अजीब लगता है हर फंक्शन पे अकेले जाना? हर कोई मुझसे पूछता है राघव क्यूँ नहीं आया। आपको तो बस दिन भर ऑफीस में बैठे रहना है। सोशियल लाइफ भी कोई चीज़ होती है कि नहीं? अगर ऐसे ही रहना था तो मुझसे शादी ही क्यूँ की? अपनी कंपनी से ही शादी कर लेते।”
शादी सलमान खान की किसी मसाला फिल्म की तरह है, जिसकी ओपनिंग बहुत ही धांसु होती है, लेकिन बाद में कुछ भी नया नहीं रहता। वोही घिसे पिटे सीन्स रिपीट होते रहतें हैं, कहानी नदारत हो जाती है, लॉजिक का कोई वजूद नहीं रहता और क्लाइमॅक्स में होती है एक लंबी लड़ाई। शायद इसीलिए सलमान खान ने खुद शादी नहीं की।
लेकिन फिलहाल मेरे पास लड़ाई की बिल्कुल भी वक़्त नहीं था। घड़ी में ऑलरेडी ढाई बज चुके थे और मुझे अभी मधु के लिए सेलफोन भी लेना था।
“हम क्यूँ किसी और के दामाद के बर्थडे के लिए अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?” मैने फिर एक गहरी साँस भरी और कहना जारी रखा, “देखो, मैं वादा तो नहीं करता लेकिन शाम को जल्दी आने का पूरा try करूँगा। अभी मुझे जाना होगा, ऑफ़िस में बहुत काम बाकी है।” कहते हुए मैं घर से निकलने ही वाला था कि श्लोक ने कहा, “पापा, आपका सरप्राइज तो देखते जाओ!”
“अभी नहीं बेटा, शाम को आके देखता हूँ।” मैंने कहा और तेज़ी से गाड़ी भगा के एक बड़े एलेक्ट्रॉनिक्स के शोरुम में पहुँचा।“बताइए सिर, क्या दिखाऊं आपको”शोरूम के अंदर आते ही सेल्समन ने पूछा।
इससे पहले की मैं कुछ कह पाता पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई, “अरे जीजुसा, आप यहाँ?” ‘गयी भैंस पानी में’ पीछे मुड़ते ही मैंने अपने आप से कहा। सामने मधु की छोटी लेकिन बड़ बोली बहन मोनिका खड़ी थी।
“मैं जीजू सा नहीं, जीजू ही हूँ।” मैने मोनिका को देखते हुए कहा।
“Very funny!” मोनिका ने कहा और मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली, “ये आपके कपड़े और बाल क्यों बिखरे हुए हैं? घर से सोके आये हो क्या?”
“सोके नहीं, पिटके आया हूँ, तुम्हारे भांजे से। आखिर उसकी रगों में भी तो आधा खून भाटिया परिवार का दौड़ रहा है।”
“वो तो है। वैसे आप यहाँ क्या कर रहे हो? अपना दस साल पुराना मोबाइल बचने आए हो क्या?”
“नहीं नहीं…” मैंने हिचकते हुए कहा, “मैं तो नया चार्जर लेने आया हूँ, पता नहीं ऑफीस में से कहाँ ग़ुम हो गया।”
मोनिका को मधु के गिफ्ट के बारे में बताना वैसा ही था जैसे न्यूज़ चॅनेल पे ब्रेकिंग न्यूज़ देना, अगले ही पल वो खबर मधु के पास होती।
“चार्जर लेने इतनी दूर आए हो? ये तो आपके ऑफ़िस के पास किसी छोटी दुकान पे भी मिल जाता।” मोनिका ने जिरह करने में CID के ACP Pradyuman से ट्रैनिंग ली थी।
“वो सब डुप्लीकेट होते हैं। तुम बताओ तुम यहाँ क्या कर रही हो?” मेरी नज़र मोनिका के हाथ में पड़े एक नये मोबाइल बॉक्स पे पड़ी, “फिर से नया मोबाइल? अभी दो-तीन महीने पहले ही तुमने लिया था ना?”
“यह मेरे लिए नहीं, मधु के लिए खरीदा है, कल उसकी मैरिज एनिवर्सरी है ना।”
मेरे सर पे जैसे बम सा गिरा। अब मधु के लिए फिर से और कोई अलग गिफ्ट ढूंढना पड़ेगा, जिसके लिए मेरे पास बिल्कुल भी वक़्त नहीं था।
“अरे, आपको क्यूँ साँप सूंघ गया?” मॉनिका ने सवालिया नजरों से मुझे देखा।
“कुछ नहीं”मैने खुद को संभालते हुए कहा, “वैसे शादी की सालगिरह हम दोनो की है, तुमने गिफ्ट सिर्फ़ मधु के लिए लिया?”
“आपको गिफ्ट की क्या जरूरत है? आपके पास तो वैसे ही दुनिया का सबसे नायाब तोहफ़ा है – मेरी बहन!” मोनिका अपनी ही बात पे ज़ोर से हँसने लगी और फिर बोली, “आप देखो तो सही मैंने मधु के लिए कितना बढ़िया फ़ोन ख़रीदा है! कल ही लांच हुआ है, जिसमें पूरे 32 मेगापिक्सेल का कैमरा है।”
“32 मेगापिक्सेल!” मैंने हैरानी से कहा, “क्यूँ, मधु से मंगल ग्रह की फोटो खिचवानी है? मेरे फोन में तो 3.2 मेगापिक्सेल का कैमरा है, जिससे भी अच्छी तस्वीरें खिचती हैं।”
“जीजुसा, आप तो ना पुरानी सदी के हो। आपको पता है, इस फोन में मूनलाइट फंक्शन है जिससे रात के अंधेरे में भी अमेजिंग सेल्फी ले सकते हैं, पूरे दिन में सेल्फी कम पड़ती थी जो अब रात को भी इंसान उल्लू की तरह अंधेरे मे’ मैं अपने आप से बुदबुदाया।
शोरूम का सेल्समन, जो बड़े धीरज से हमारी बातें ख़तम होने का इंतज़ार कर रहा था, आख़िरकार मुझसे बोला, “सर, आपको कौन सी कंपनी का चार्जर चाहिए?”
“अच्छा जीजुसा, मैं चलती हूँ, कल मिलते हैं।” मॉनिका ने फाइनली विदा ली।
शोरुम से बाहर निकलते हुए मेरे पास दो चीज़ें थी – हाथ में नया चार्जर जिसकी मुझे कोई जरूरत नहीं थी, और दिल में मायूसी जो मॉनिका से मिलने के बाद हुई थी।
“राघव, तू फिर वहीं आ गया जहाँ से चला था।” मेरी अंतरात्मा ने फिर से आवाज़ दी।
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“और भाई, भाभी के लिए फाइनली कौनसा मोबाइल पसंद किया?” दफ़्तर में मेरे घुसते ही समीर ने बड़ी बेसब्री से पूछा।
मैने उसकी तरफ हताश भरी नज़रों से देखा और बगैर कुछ कहे अपनी कुर्सी पे आके पसर गया।
“क्या हुआ, इतना परेशान क्यूँ है? नया सेलफोन कहीं गुम तो नहीं कर आया?”
“यार, पूछ मत। बस इतना समझ ले कि सेलफोन वाला आइडिया केंसिल हो गया। अब कोई और सुझाव है तो बता।”
“देख राघव, सेलफोन का आइडिया मैने इसलिए दिया था क्यूंकी तेरे पास वक़्त की कमी है। वरना मैने कहीं पढ़ा था कि बीवी को वो तौहफा सबसे बेहतरीन लगता है जो वो खुद को ना दे सके। अब सोच कि तू भाभी को ऐसा क्या अनूठा उपहार दे सकता है जो उन्हें और कहीं ना मिल सकता।”
“अब ऐसा क्या दूं, जो वो खुद को ना दे सके? बच्चा?” मैने पूछा।
“अभी घोन्चु! बच्चा क्या एक दिन में लेके आएगा?”
“मज़ाक था यार। लेकिन तूने आइडिया सही दिया है। तोहफा वो दो जो इंसान खुद को ना दे सके। ये बात तूने मुझे पहले क्यूँ नहीं बोली? बाहर से कोई तोहफा खरीदने के बजाए क्यूँ ना मैं मधु के लिए खुद कोई ऐसी चीज़ बनाऊँ जो उसे पहले किसी ने ना दी हो?
“इससे ज़्यादा रोमांटिक तोहफा और क्या होगा?” समीर ने थम्स-अप का संकेत दिया।
अब बस वो तोहफा क्या होगा, इसकी कल्पना करनी थी। समीर ने सच ही कहा था की मेरे पास वक़्त की कमी थी। ना सिर्फ़ अगले तीन घंटों में मुझे उस बेमिसाल उपहार का सृजन करना था बल्कि हरी साढ़ू के लिए साई इंडस्ट्रीस का कोटेशन भी तैयार करना था। गनीमत थी की कुछ देर सोचने के बाद मुझे उस नायाब तोहफ़े का आइडिया मिल गया।
हर पत्नी को यह पसंद आता है कि पति उसकी दिन रात तारीफ करे, लेकिन तारीफ करने के मामले में मैं थोड़ा फिसड्डी था। मैं हमेशा ही इस कशमकश में रहता हूँ, कि मेरी की गयी तारीफ कहीं सामने वाले को शैखी याँ चापलूसी ना लगे। इसी वजह से मधु की तारीफ किए हुए मुझे एक अरसा हो गया था। मैने सोचा यह मधु को सर्प्राइज़ करने का यह एक बेहतरीन मौका है। मैं पास के एक जनरल स्टोर में गया और एक ताश की गड्डी खरीद के लाया। मेरा गिफ्ट का कॉन्सेप्ट यह था की हर कार्ड के उपर मधु की एक तस्वीर लगी हो और दूसरी तरफ मधु के बारे में कोई तारीफ लिखी हो। मैने ताश के पहले कार्ड पे लिखा, “50 reasons why I love you!” और फिर बाकी कार्ड्स पर मधु की तस्वीरें चिपकाता गया और उसकी खूबियाँ लिखता गया।
फ़ेसबुक की मेहरबानी से मधु की बचपन से लेकर जवानी तक की यादगार तस्वीरें मुझे आसानी से मिल गयीं और मधु की खूबियाँ पर तो एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। उसके बाद का काम आसान था। मैंने सभी कार्ड्स में पनचिंग मशीन के ज़रिए छेद किया और एक लाल रिब्बन से सारे पत्ते एक क्रम में समेटता गया ताकि उसे एक छोटी सी नोटबुक का आकार मिल सके। और इस तरह ढाई घंटे की कढ़ी मशक्कत और ऑफीस के कलर प्रिंटर के भरपूर दुर्प्र्योग के बाद मेरा निर्माण ने पूर्णता प्राप्त की। लेकिन मेरा पास फ़ुर्सत से उसे निहारने का समय नहीं था।
हरी साढ़ू ने इस बीच कम से कम मुझसे चार बार साई इंडस्ट्रीस का कोटेशन माँगा था और बिडिंग का समय भी निकलता जा रहा था। गड्डी को जैसे तैसे गिफ्ट रॅप करने के बाद उसे मैने अपने टेबल के ड्रावर में छुपाया और किसी तरह अगले 15 मिनिट में टेंडर का कोटेशन तैयार करने के बाद मैं बॉस के कॅबिन में पहुँचा। हरी साढू ने मुझे देखने के बाद अपनी घड़ी को निहारा लेकिन कुछ कहा नहीं, शायद वो अपना गुस्सा टेंडर के खुलने के बाद निकालने वाला था।
कहते हैं कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान और यह कहावत इस समय मुझ पर बिल्कुल सही बैठ रही थी। आनन-फानन में बनाए हुए कोटेशन के बावजूद हमें साई इंडस्ट्रीस का टेंडर मिल गया और मेरा जालिम बॉस, जो कुछ देर पहले तक शाकाल की तरह मुझे घूर रहा था, वो अचानक से मुझे संस्कारी बाबूजी आलोक नाथ की तरह आश्रीवाद देने लगा। ऑफीस से निकलने के वक़्त मैं सोच रहा था कि चलो अंत भला तो सब भला, लेकिन उस समय मुझे ये इस बात का इल्म कहाँ था कि इस कहानी में अभी कई और घुमाव आने बाकी थे।
घर में जैसे ही दाखिल हुआ, मधु की मधुर आवाज मेरे कानों में पड़ी, “श्लोक बेटा, किसी ने कहा था की वो आज शाम को जल्दी घर आएगा।” मधु जब भी मुझसे किसी बात पे खफा होती है तो श्लोक के जरिये ही मुझसे बात करती है।
मैने अपना लॅपटॉप बैग उतारकर डाइनिंग टेबल पे रखा और श्लोक को गोदी में उठाके किचन में दाखिल हुआ।“श्लोक बेटा, मम्मी को बोलो की किसी ने कहा था की वो पूरी कोशिश करेगा लेकिन कोई वादा नहीं किया था।” मैंने जवाब दिया।
“अरे, मुझे तो गोदी से नीचे उतारो, टीवी पे शिवा आ रहा है।” श्लोक हमारी यह नोक झोंक लगभग रोज़ सुनता था और अब उसे समझ आ रहा था की हम दोनो उसे अपने पक्ष में शामिल करने की कोशिश करेंगे जिसमे उसे जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। वो मेरी गोदी से उतरकर वापस हॉल में जाकर कार्टून देखने लगा और अब मधु के पास सीधे मुझसे बात करने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
“दिख रही है आपकी कोशिश…” मधु मेरा खाना थाली में परोसते हुए बोली, “रात के 9:30 बजे हैं, ये जल्दी है तो पता नहीं देर से कब आते।”
“अरे यार क्या बताऊँ, साई इंडस्ट्रीस के टेंडर की आज बिडिंग थी। उसी में ही देर हो गयी। ख़ुशख़बरी ये है की हमें वो टेंडर मिल गया।”
“मिस्टर…” मधु ने प्याज काटना छोड़ा और मुझे छुरी दिखाते हुए बोली, “यह खुशख़बरी आपके लिए होगी, मेरे लिए नहीं। मैं तो तब खुश होती जब आप मेरे साथ नीलू चाची की घर चलते।”
‘खुश तो तुम तब होगी जब रात के 12 बजे मैं तुम्हें सर्प्राइज़ करूँगा।’ मैं मन ही मन बुदबुदाया। “अरे वाह, आज खाने में राजमा चावल बनाए हैं?”
“टॉपिक चेंज करना तो कोई आपसे सीखे।” मधु खाना डाइनिंग टेबल पे परोसते हुए बोली, “ये जूते हॉल में क्यों उतारे हैं और ये लैपटॉप बैग टेबल पे क्यूँ पड़ा है? हज़ार बार कहा है इसे अंदर कॅबिनेट में रखा करो। इंसान आख़िर खाएगा कहाँ?” मधु के अंदर आज फूलनदेवी की आत्मा ने प्रवेश किया हुआ था।
“रख देता हूँ काली माता।” मैने मधु को हाथ जोड़ते हुए श्लोक को आँख मारी, “अब प्लीज़ शांत हो जाओ और मेरा नरसंहार करना बंद करो। कल हमारी शादी की पाँचवी सालगिरह है और हम बेवजह की बातों पे झगड़ रहें हैं।”
“Exactly my point!” मधु मुझे बख्शने के मूड में बिल्कुल नहीं थी, “कल हमारी पाँचवी सालगिरह है लेकिन आपको परवाह कहाँ है? क्यूंकी आपके हिसाब से तो हर दिन स्पेशल होता है, कल के दिन में कौनसी ख़ास बात है? आप आज वहाँ पार्टी में होते तो आपको पता चलता की इन ख़ास दिनों की अहमियत क्या होती है। चाची की बेटी और दामाद ने कितना रोमॅंटिक सालसा किया था। लेकिन मेरे पति को तो यह सब नौटंकी लगती है।”
“यार, क्या हम थोड़ी देर के लिए तुम्हारी चाची और उसके दामाद के अलावा कोई और बात कर सकते हैं?” मैं अब झुंझलाने लगा था। “और हम क्यूँ उनकी तरह अपने प्यार का डिंडोरा पीटें? हमारे बीच प्यार है, ये साबित करने के लिए सबके सामने नाचना ज़रूरी है क्या?”
“नहीं।” मधु ने कहा, “लेकिन प्यार है, उसे महसूस करना और कराना बहुत ज़रूरी होता है। कुछ तो आप ऐसा करो जिससे मुझे लगे कि मैं आपके लिए कोई मायने रखती हूँ, जिससे लगे कि आप उतने नीरस नहीं, जितना आप दिखावा करते हो।”
मैं और मधु कुछ पल एक दूसरे को देखते रहे। अब मैं गिफ्ट की बात और नहीं छुपा सकता था क्यूंकि उसके अलावा इस बहस को बंद करने का और कोई तरीका नहीं था। “तुम जानना चाहती हो ना कि तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो? तो फिर मेरा लॅपटॉप बैग खोलके देख लो।” कहते हुए मैं उठा और अपना लॅपटॉप बैग मधु के हाथों में सौंपा। मधु ने सवालिया नज़रों से मुझे देखा और बैग खोलने लगी। कुछ देर तक बैग खंगालने के बाद उसने पूछा, “क्या दिखाना चाहते हो? इसमें तो सिर्फ़ तुम्हारा लॅपटॉप, कुछ कागज़ और एक डायरी पड़ी हुई है।”
“क्या कह रही हो? ठीक से देखो!” कहते हुए मैंने बैग मधु से छीना और खुद उसे छानने लगा, लेकिन मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी जब गिफ्ट बैग में से नदारत मिला। अचानक मुझे याद आया कि गिफ्ट तो मैं ऑफिस डेस्क के ड्रावर में से निकलना ही भूल गया था!
“क्या हुआ?” मधु ने पूछा, “आपको साँप क्यूँ सूंघ गया?”
मैं हताहत सा हॉल के सोफा पर बैठ गया और अपनी लापरवाही पे खुद को मन ही मन गालियाँ देने लगा। लेकिन मधु को भी सब सच बताना ज़रूरी था।
“क्या बताऊं मधु, आज पूरे दिन बड़ी मेहनत से तुम्हारे लिए अपने हाथों से एक तौहफा बनाया था। सोचा था रात के 12 बजे तुम्हें सर्प्राइज़ दूँगा। लेकिन उसे ग़लती से मेरे डेस्क की ड्रावर में ही भूल आया हूँ।”
“वाह! और आप सोचते हो कि मैं आपकी बात मान लूँगी। अभी कुछ देर पहले तो कह रहे थे की आज सारा दिन टेंडर के पीछे लगे हुए थे।”
“अरे वो तो मैं झूठ बोल रहा था। तुम्हें बता देता तो सर्प्राइज़ कैसे देता?”
“यां शायद अब झूठ बोल रहे हो?” मधु बोली।
“हद करती हो मधु!” मैं चिल्लाया, “अपने इकलौते पति पर ऐसे इल्ज़ाम लगते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती। अगर तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं है तो रूको, मैं अभी ऑफीस जाके वो गिफ्ट लेके आता हूँ।”
“फिल्मी डाइलॉग मारना बंद करो और चुपचाप खाना खाओ। आपका ऑफीस क्या नाइट क्लब है जो रात के 10 बजे तक खुला होगा?” मधु ने चेताया।
मैं घड़ी की तरफ देखा। सचमुच रात के 10 बजे थे। और कल रविवार था। यानी सालगिरह के दिन मेरे पास मधु को देने के लिए कुछ नहीं था। मेरी हताशा अब निराशा में बदलने लगी थी।
“तुम खाना खा लो। मुझे भूख नहीं है।” मैने मायूस होके कहा।
“अब खाने ने आपका क्या बिगाड़ा है? ग़लती खुद करते हो और गुस्सा खाने पे उतारते हो।”
“क्या तुम थोड़ी देर के लिए अपना विविध भारती का प्रसारण बंद करोगी!” मैंने चिड़के कहा, “जब से घर में आया हूँ तब से किसी ना किसी बात पे मुझे ताने मारती जा रही हो। समझ नहीं आता कि तुम्हें प्राब्लम किस बात से है? मेरे लेट आने से, हॉल में जूते उतारने से, डाइनिंग टेबल पे बैग रखने से, या फिर उस सड़े हुए फंक्शन में तुम्हारे साथ सांबा डांस ना करने से?”
“सांबा नहीं सालसा! डॅन्स करना नहीं आता तो कम से कम उनके नाम तो ढंग से लिया करो। और मुझे प्राब्लम इस बात से है की आप खुद को अभी भी बैचलर समझते हो। ‘मुझे यह नहीं पसंद, मुझे यहाँ नहीं जाना, मुझे ये नहीं खाना’, कभी आपने यह सोचा की मधु को क्या पसंद है, या मधु को किस बात से खुशी मिलती है? अगर सिर्फ़ अपने ही बारे में सोचना था तो फिर मुझसे शादी ही क्यूँ की?” मधु पैर पटकते हुए बेडरूम में चली गयी।
“वही तो सबसे बड़ी ग़लती हो गयी मुझसे!” मैंने पलटवार किया। मैं अपना आपा खोने ही वाला था तभी मेरी नज़र श्लोक पर पड़ी। मैने और मधु ने बहुत पहले से यह तय किया था की श्लोक के सामने छोटी मोटी नोकझोंक ठीक है, लेकिन कभी भी झगड़ा नहीं करेंगे। लेकिन उस वक़्त मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। इससे पहले कि बात ज़्यादा बढ़ती, मैने घर से बाहर निकल जाना ही सही समझा। मैंने ज़ोर से घर का दरवाजा पटका और बाहर निकल गया। जैसे ही मैं सड़क तक पहुंचा, मुझे याद आया की जल्दबाज़ी में घर की चाबी, सेलफोन और बटुआ सब घर के अंदर ही रह गया था और जितनी ज़ोर से मैने दरवाजा पटका था, मुझे यकीन था की अगर मैं घंटी बजाऊंगा तो भी मधु सारी रात मेरे लिए दरवाजा नहीं खोलने वाली। बीच सड़क पे आवारा कुत्ते मुझे देख कर ऐसे भोंक रहे थे जैसे उनका कोई बिछड़ा हुआ साथी वापस मिला हो। शायद उन्हें भी यह अंदाजा हो गया था की मैं सारी रात उनके साथ गुजारने वाला हूँ और वो मुझे सात्वना दे रहे थे।
“क्या हुआ राघव, ऐसे क्यूँ सड़क के बीचो-बीच खड़े हो?” बाहर टहलते हुए एक पड़ोसी ने पूछा।
“कुछ नहीं, आसमान के तारे गिन रहा हूँ। तुम अपना वॉक करो ना, तोंद बहुत निकल आयी है तुम्हारी।” मैने रूखा सा जवाब दिया। पड़ोसी ने अजीब सी शकल बनाई और चला गया। मैने भी सड़क पर तमाशा करने के बजाये अपने मोहल्ले से दूर निकलना ही मुनासिब समझा और चलते हुए शहर की तरफ निकल आया।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा है कि जब आप एक खूबसूरत लड़की के साथ बैठे हों तो एक घंटा एक सेकंड के समान लगता है और जब आप धधकते अंगारे पर बैठे हों तो एक सेकंड, एक घंटे के समान लगता है। इसे सापेक्षता कहते हैं और मेरा साथ उस वक़्त यही घटित हो रहा था। कहाँ मैं मधु को सर्प्राइज़ करके उससे अपने लिए तारीफे सुनने वाला था और कहाँ मैं इस वक़्त बेवजह शहर की गलियाँ छान रहा था। जैसे जैसे मैं चलता जा रहा था, मेरे दिमाग़ में आज का पूरा दिन वापस से घूमने लगा।
‘क्या मधु ठीक कह रही थी? क्या मैं सच में मैं इतना गैर-जिम्मेदार और मतलबी हूँ? वैसे अगर मैं उस टकले दामाद की बर्थडे पार्टी में कुछ देर चला जाता तो कौनसी आफ़त आ जाती? मधु भी तो सिर्फ मुझे खुश करने के लिए मेरे साथ बहुत सी उबाऊ फ़िल्में देखती है।’ मैं अपने आप से कहने लगा।
मेरे दिमाग़ में अब मधु के साथ शादी से पहले की मुलाक़ातें घूमने लगी। किस तरह मैं उसके साथ बात करने के लिए, उसके साथ वक़्त बिताने की लिए दीवाना रहता था। ‘तो क्या मैं शादी के बाद बदल गया हूँ?’ मैंने खुद से पूछा।
कभी कभी जब सपने हक़ीकत बनते हैं, तो हम उनकी अहमियत, उनकी कीमत भूल जातें हैं। हमें यह अहसास ही नहीं रहता की जो आज हमारी हक़ीकत है, वो हो सकता है कि ना जाने कितने लोगों का सपना हो।
अंतर्मन में उमड़ी इस उदेड़बुन में मैं ना जाने कितने मील घर से दूर निकल आया था। जैसे ही मेरा गुस्सा शांत हुआ और मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ, मैं मुड़ा और तेज़ी से वापस घर की ओर चलने लगा। घर जब पहुँचा तो देखा की मधु बाहर आँगन में ही बड़ी बचेनी से घूम रही है।
मुझे देखते ही मधु मेरे पास दौड़ते हुए आई और जोर से गरजी, “आप क्या पागल हो गये हो। बिना बताए इतनी देर कहा चले गये थे?” मैंने महसूस किया कि उसकी आखों में नमी थी।
“क्यूँ? तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है? तुम तो मुझे रोकने एक बार भी नहीं आई।” मेरा पुरुष अहंकार अभी भी मुझे अपनी ग़लती मानने से रोक रहा था।
“मैं आपको बुलाने बाहर तक आई थी। लेकिन आपको गुस्से में सुनाई कहाँ देता है? मदमस्त हाथी की तरह पता नहीं कहाँ चलते जा रहे थे। आपको अंदाज़ा भी है कि हम दोनो की क्या हालत हुई है? पूछो श्लोक से कि हम दोनो आपको कहाँ कहाँ ढूंढ़ने निकले थे। वो बेचारा कब से मुझसे पूछ रहा था कि पापा कभी वापस आएँगे। किसी तरह बहला फुसलाके कुछ देर पहले ही उसको सुलाया है।” मधु ने कहा।
मैं निरुत्तर था। आख़िर अपनी की हुई बेवकूफी को सही ठहरा भी कैसे सकता था? बस सिर झुकाके मधु को इतना ही कहा, “मधु, मैने सच में तुम्हारे लिए एक बहुत ही प्यार उपहार बनाया था। उसमें मैंने सारी वजहें बयान की थीं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। काश तुम्हें इस वक़्त वो दिखा पाता।”
“आप सच में अब तक मुझे समझ नहीं पाए हो!” मधु बोली, “मुझे सुबह से ही पता था की आप मेरे लिए कोई सर्प्राइज़ प्लान कर रहे हो। जब आपने श्लोक को सर्प्राइज़ गिफ्ट की बात सीक्रेट रखने को कहा था, उसी वक़्त उसने मुझे बता दिया था। दिन को जब आप मेरे लिए सेलफोन लेने मोबाइल शॉप गये थे, वो बात भी मुझे मॉनिका ने फोन करके बता दी थी।”
“तुम्हें सब पता था?” मैं हैरान था। “तो तुमने मुझे यह बात बताई क्यूँ नहीं?”
“क्यूंकि मैं देखना चाहती थी कि जो इंसान सारा दिन मेरा मखौल उड़ाता रहता है, वो मेरी की हुई ठिठोली समझ पाता है यां नहीं। मैंने मोनिका को दावा किया था कि आप आधे घंटे तक भी मुझसे गिफ्ट की बात नहीं छुपा पाओगे। जब मैंने बैडरूम जाने का नाटक किया था, तब भी मैं हस ही रही थी। बस आप ही समझ नहीं पाए। क्या मज़ाक करना सिर्फ़ आपको ही आता है? मुझे तो लगा कि आप मुझे मनाने आओगे, लेकिन कहाँ पता था कि आप घर छोड़कर ही भाग जाओगे।”
मैं चुपचाप गर्दन झुकाए मधु की बातें सुन रहा था।
“राघव, मैं कुछ दिनों से महसूस कर रही हूँ की तुम थोड़ी थोड़ी बात पे मुझसे झुंझला जाते हो। तुम्हें ऐसा क्यूँ लगा कि मैं तुमसे किसी भौतिक वस्तु के लिए तुमसे नाराज़ हो जाऊंगी? अगर शादी की पाँच साल के बाद भी हम एक दूसरे की परेशानियाँ, तकलीफें या जरूरतें नहीं जान पाए हैं तो हम अब तक भी एक दूसरे के लिए अनुकूल नहीं बन पाएँ हैं। फिर इन तोहफों का क्या मतलब रह जाता है? कभी कभी तो ऐसा लगता है की मैने शादी किसी और राघव से की थी।”
“मैं अपनी ग़लती समझ रहा हूँ मधु। लेकिन सच मानो, मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना शादी से पहले करता था।” मैने मधु की आखों में देखते हुए कहा।
“मैं जानती हूँ बुध्दू!” मधु ने मुझे गले लगाया, “और एक बात जान लो, आपने भले ही मुझसे प्यार करने की ढेरों वजहें लिखी हों, लेकिन मेरे लिए आपसे प्यार करने के लिए सिर्फ़ एक ही वजह काफ़ी है कि आप जैसे भी हो, मेरे हो!”
हम दोनो एक दूसरे की बाहों में समा गए। अब बातों की और कोई गुंजाइश नहीं बची थी।
रात के 12 बज चुके थे।
हमारी पाँचवी सालगिरह आ गयी थी।
–END–