जिंदगी का सफर
“जिंदगी का सफर “है यह कैसा सफर ,कोई समझा नहीं कोई जाना नही़ं ।जिंदगी के इस सफर को, ना कोई समझ पाया है ,ना कोई जान पाया है ।जिंदगी किसी के लिए बहुत लंबी और किसी के लिए बहुत छोटी हो जाती है ।जब हम जन्म लेते हैं ,तो हमें पता नहीं होता है कि यह जिंदगी हमें कैसे-कैसे रंग दिख लाएगी ।यह जिंदगी मेरी” मां” की जीवन मैं इतना रंग नहीं ला सकी ,उसकी जिंदगी उसके लिए बहुत छोटी साबित हुई ,क्योंकि एक बीमारी ने उस का रास्ता रोक लिया। इस बीमारी को हम सभी “कैंसर” के नाम से जानते हैं ।
हम सब भाई बहन अपनी अपनी पढ़ाई और शादीशुदा जिंदगी में इतने मशगुल थे कि ,किसी को भी इस बीमारी का एहसास ही नहीं हुआ। जब तक हमें पता चलता बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन एक कैंसर के मरीज पर क्या गुजरती है, वह एक कैंसर का मरीज ही समझ सकता है। मेरी “मां “को अपनी बीमारी का एहसास तो था, लेकिन उसने कभी भी अपनी बीमारी का जिक्र हम सबसे नहीं किया ।इसके बाद भी मेरी मां के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रही ।उसने अपना दर्द ,हम सबको नहीं दिखाया। लेकिन मैं कभी इस बात को समझ नहीं पाई।
मुझे आज भी वह दिन याद है ,जब मेरी “मां” का “कैंसर “का ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद मिलने गई तो उसने मुझे बोला कि ,मैंने उसको बचा लिया ।मैं समझ न सकी, फिर उसने मुझसे कहा कि उसने एक सपना देखा था कि ,मैंने उसको बचाया है।यह सुनकर एक पल के लिए मै मुस्कुराई और अगले ही पल मैं निराश हो गई ,क्या वाकई मैंने अपनी” मां “को बचा लिया है ।
हम सब ने बहुत कोशिश की, कहते हैं ना कि मुश्किल दौर में आदमी सब चीजों पर विश्वास करने लगता है ।हम लोगों ने भी किया, पूजा पाठ, जादू टोना ,झाड़-फूंक सब करवाया पर सब बेकार। क्या ,आपने कभी भी कैंसर के पेशेंट को देखा है ।मैंने देखा है, विश्वास कीजिए आप नहीं देख पाएंगे ,कि एक कैंसर के पेशेंट पर क्या गुजरती है।कितने दर्द में वो रहते हैं, जिसका एहसास ना आप कर सकते हैं ,ना हम।
उस वक्त मुझे एक “गाना” रह-रहकर बहुत याद आता था की “दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है ,लोगों का गम देखा तो ,मैं अपना गम भूल गई “”।वाकई में ,जब मैंने हॉस्पिटल में छोटे-छोटे बच्चों को ,इस बीमारी से जूझते हुए देखा तो मेरा गम, वाकई कम लगने लगा ।लेकिन गम तो गम है, कम या ज्यादा बीमारी तो आज भी वही की वही है पर कोई नहीं है तो तो वह मेरी “माँ “।
” मां “का जाना क्या होता है शायद वही जान सकता है जिसने अपनी मां को खोया है। आज हम सभी अपनी अपनी दुनिया में जी रहे हैं, पर कोई अकेला है या तनहा है तो वह है मेरे पापा। उनका अकेलापन कोई भी मिटा नहीं सकता ,कहने को हम सभी हैं पर साथ में रहने वाला कोई नहीं ।”माँ “तो चली गई ,लेकिन उसकी याद नहीं गई । कहने को तो सब कुछ है हमारे पास नहीं है तो सिर्फ “मां”।
“मां”हमे जिंदगी के हर पल में याद आती है। जब मेरी शादी हुई तो मां की याद आई ,जब मेरे बच्चे हुए तब मां की याद आई ,और जिंदगी की हर खुशी और गम में याद आती रहेगी।
सब कुछ होते हुए भी जिंदगी में एक खालीपन ,एक सुनापन है ।यह खालीपन यह सूनापन क्यों है ,पता नहीं “मां- बाप “”का ख्याल रखना हम सब बच्चों की जिम्मेदारी बनती है।पर मुझे लगता है कि आज के इस दौर में जहां बीमारियां अपना डेरा डाल रही है , हम सबको अपनी सेहत का ख्याल खुद रखना पड़ेगा ,वरना “जिंदगी का यह सफर ” सुहाना नहीं रहेगा।
–END–
—-रीतु गुप्ता