रिश्ता अजीब सा: Rishta Ajeeb Sa- This Hindi love story revolves around a lady and her love whom she meets in a situation which was beyond her control.
आज मैं बहुत दिनों के बाद अपने घर में आई हूँ, माँ बाबूजी, दीदी सभी लोग बहुत ख़ुश है मुझसे। मैंने कॉलेज में टॉप जो किया था. घर में आते ही एक अजीब सी खुशी मिलती है, वो महल जहाँ पे सारा बचपन आपने बीताया हो. माँ के हाथों कहा सवाधिषट खाना। कुछ ही दिनों में मेरे जॉब के लिए अपलैय करना है।
अभी तक मैंने किसी को यह नहीं कहा की मैं काम के सिलसिले में बाहर रहूंगी। समजाना जरा मुश्किल होगा पर मैं कर लूंगी.। बड़े भैया शादी करने की सोच रहे है, और छोटी बेहने भी पढ रही है। मार्च तीन तारिक मुझे जॉब ऑफर मिला और मैं जॉब ऑफर को एक्सेप्ट करने गुडगाँव जा रहीं हूँ। काम का वक़्त सुबह ९ बजे से शाम ७ बजे तक है। मेरे बॉस का नाम शिशिर मिश्र, और बड़ा ही खड़ूस क़िस्म था।
बिना वजह मुझे कुछ न कुछ सुनाता रहता था। कभी यह नहीं कहा की तुम अचछा काम करती हो। बाकी सब लोग उसकी जी हजुरी करने में लगे रहते थे। मैं अपना सारा धयान काम में ही रखती थी लंच के वक़्त भी अपने में अकेले ही होती। माँ का फ़ोन आ़ता रहता कि मैं कैसे हूँ काम कैसा चल रहा है मगर बाबूजी ने कभी भी न पुछा। मैं जानती हूँ की उनके मान में यह बात खल रही थी की मैं आगरा से यहा पे क्यूँ काम कर रही हूँ अनजान शहर और लोग। उनका यह सोचना गलत नहीं मगर कभी मुझसे कहा नहीं। उनका यह सोचना था की लड़की को कुछ समय के बाद शादी करके घर बसना चाहिये और सबका ख़याल रखना चाहिये।
मैं बहुत ही स्वाभिमानी हूँ अपने फैसले कुछ ही करती हूँ। मैंने इतनी मेहनत से पढाई करी शादी करके घर में बीतने की लिए नहीं। वोह इस बात को कभी न समाज पायेंगे और ना मैं समजा पाऊँगी। यहाँ पे मैं दो और लाकियों के साथ रहतीं हूँ।
ख़ुद का रूम अपने मन से उठती हूँ और जब मन किया जो भी किया। इतवार को तो देर से उठाना और खाना बहार जाना शौपिंग सब कुछ नया सा लगता है। सोमवार को ऑफिस में चाय की चुस्की लेते हुए दिन की शुरूआत करना। फ़ोन की घंटी बजी इन्तेर्कोम में शिरीर का नेहा जरा आना कुछ काम है मैं उठ के चली उनके केबिन मे।
काम की बात होती रही मगर िशरीर का चेहरा लैपटॉप में था। मुझे ऐसा लगा शायद वोह कुछ जयादा ही स्मार्ट बनता है। मेनेजर होने का कुछ और ही बात होती है. एक दिन मैं भी उस जगह में ख़ुद को देखूंगी।
मैं काम में इतनी वयसत थी की वक़्त का पता न लगा और मैं ने आवाज़ सुनी अभी तक कया कर रही हो नेहा? मैंने मूढ़ के देखा तौ शिरीर खड़ा था। मैं बोली बस निकल रही हूँ उसने पुछा कैसे जाओगी मैंने तुमको ड्रॉप करो कया? मैंने कहा की नहीं मैं चली जाऊगी और बैग लेगे मैं दूर से निकल पड़ी।
घड़ी देखा तो वाकई में वक़्त काफी हो गया था। मैंने ऑटो का वेट किया और ऑटो नहीं मिला मैंने सोचा बस स्टैंड की तरफ जाओ और देखो कोई मिलता है कया। खडी ही थी एक कार आई और रुक गयी मैं देखा की एक आदमी लेट ४० में चशमे पहने था और काफी स्मार्ट लग रहा था। उसने पुछा कया मैं कही आपको ड्रॉप कर सकता हूँ? मैंने कहा की नहीं इट्स ओंके
फिर भी वो शकस जाने का नाम ही नहीं ले रहा था मैंने सोचा कया पता उसके मन में कया चल रहा है। बहुत ही बुरे बुरे खयालो ने मुझे घेरना शुरू किया। कही कुछ गलत न हो जाये मैं मन ही मन कीसी ऑटो का इतने बेसब्री से इंतज़ार कही न किया खा की भगवन जलती कोई ऑटो वाले को भेज दो। मैं इधर उधर देख रही थी तबी वोह कार वाला नीचे आके बोला शायद तुमने मुझे नहीं पहचाना मैं स्य्स्यतेम इन्तेर्ग्रतेद का डायरैटर हूँ … मैंने सोचा इतना बड़ा शख्स और इतनी सादगी से बात कर रहा और वो भी न्यू जोइनी के साथ। मैंने तुरंत कहा की सर सॉरी मैंने आपको नहीं पहचाना …. फिर से उनके कहने पे मैं उनकी कार में जाने को तैयार होगई तबकी उनहोने, कहा मेरा नाम शयामल गुप्ता है, अगर तुमको ठीक लगे तौ मेरे घर में चल सकती हो मैंने सोचा यह काया बात हुयी मगर कुछ न खी और हाँ में सर हिला दिया.
जैसे ही कार एक बड़े से बंगले की तरफ मुड़ी वाचमैन ने सलाम किया और मैं गेट खोला …सर ने एक मुसकुरा कर हाथ दिखाया और कार पार्किंग स्पेस में खडी किया।
मैं कार से उतर की सोच रही थी कौन होगा घर में और कॉल बेल बजा तौ एक नौकर ने दरवाजा खोला और बोला साहेब बेबी बहुत देर से आपका वेट कर रही है।
सर ने हाँ कहा और बोले नेहा तुम रेलक्स करो मैं अभी आता हूँ मैंने सोचा बेबी मतलब कोई छोटी सी बचची होगी।तभी एक व्हील चेयर मेरी तरह आया और मैंने देखा एक बहुत ही ख़ूबसूरत सी लड़की( २५ वर्ष ) बोली हेल्लो..कैसे है ? मैं कुछ देर उसको देखती रही और कहा की अचछी हूँ. मैंने पुछा कया नाम है तुमारा उसने कहा की स्नेहल। मैंने कहा बहुत अचछा नाम है।
मैं कुछ और पुछा कि उसके दिल को ढेस नहीं लगाना चाहती थी। इतने में सर भी आ गए और बोले …नेहा कहना खा के जाना थोड़ी सी देर में तुमको तुमरे घर छोड़ दूंगा।
मैं ने कह दिया ढिक है सर।
स्नेहल अपने पापा से बात कर रही थी दिन भर में कया किया और उसका मन है इसे करें खाना है तौ सर ने कहा नेहा को छोड़ने जायेगे तब खा लेना। उसकी मुस्कान देखने लायक थी।प्यारी सी लग रही थी।
खाना खतम होते ही स्नेहल बोली चलो पापा अब चलो ..और सर ने हस के सर हिला दिया,, और कार में उसको गोदी में लेके बैठाया और मेरे लिए बेक सीट का दरवाजा खोला और बोले ढिक है मैंने सर हिला दिया और बैठ गयी मन में यह ही हलचल थी की ऐसा कया हुआ होगा जो स्नेहल ऐसी है मगर दिल को समझाया की चुप हो.
सारे रास्ते स्नेहल पापा से बातें कर रही थी और मैं सोच रही थी अपने पापा की बारें में जो ऐसा कुछ नहीं करते सिर्फ अपने काम और भाषण जादने में वक़्त बिताते थे यह करो वोह मत करो ऐसे रहो वैसे रहो …खैर मैं उनके बारें में सोचना नहीं चाहती।आइसक्रीम पार्लर आया और हमने अपनी पसंद की फ्लेवर आर्डर किया और वोह शायद वो दुकानदार उनको जनता था तुरंत ले के आगया। स्नेहल का चेहरा फूल की तरह खिल गया और बोली पापा इ लव उ उर थे बेस्ट इन थिस व्होले वर्ल्ड.. सर ने फिर एक स्मिले दिया और पैसे देने चले गए।
मैंने सोचा इतना बड़ा आदमी कैसे सदागी और सभ्यता से बात करता है।
सर ने पुछा नेहा तुमारा घर कहा है? मैंने कहा की सर, परिदे अपार्टमेन्ट, अगले कॉर्नर पे और उन्होंने मुझे छोड़ के चले गए। मैं बस उनके और स्नेहल के बारें में ही सोचती रही और सुबह कब हुआ मालुम ही न चला।
सुबह अलार्म की घंटी बजी और मैं उठके तैयार होने लगी और ऑफिस की तरफ बस लिया. मैं अपने काम में बिसी हो गयी कब लंच टाइम हुआ मालूम ही नहीं पड़ा। लंच के बाद जैसे ही बैठी थी तब इन्तेर्कोमे में कॉल आया और मैंने कहा हेल्लो, उदार से स्नेहल की आवाज़ थी बोली कैसे हो नेहा, व्यस्त लगती हो कया ? मैंने कहा नहीं बोलो अभी लंच किया और काम करने वाली हूँ उसने कहा तुम तो जानती हो की मैं बहार जा नहीं सकती कुछ मोवीस मगाया है कया तुम आओगी? मैं ने सोचा मना कर दू मगर कर न सकी यह सोच कर शायद स्नेहल अकेले में बोरे हो रही होगी मैं ने कहा आज नहीं सन्डे जरुर आऊँगी ठिक है? स्नेहल ने कहा कोई बात नहीं मैं तुम्हारा वेट करुँगी।
इतने में मैंने देखा की शिरीर खड़ा मेरे और देख रहा था बोलो बॉय फ्रिनेद का कॉल था? मैंने कहा नहीं, तुम बोलो कया बात है क्यूँ मेरे टेबल पे आये हो? उसको मेरा यूँ बोलना अच्छा न लागा और मुह बना के बोला सोचा शाम को तुमको डेट पे ले जाऊं, मैं उसकी तरफ ऐसे देखी जैसे उसने कोई गलत बात करी हो। उसने फिर पुछा क्यूँ अपने शहर में कभी डेट पे नहीं गयी? मैंने कहा नहीं ऐसे बात नहीं न ही मैं कभी जाती हूँ मेरे परिवार वालो को पसंद नहीं दीर रात को घर से बहार रहना।
उसको यह जानान जरुरी था की मैं कोई नीचे खल्यालो वाली नहीं हूँ इस लिए जाने को तैयार हो गयी। जैसे ही हम कैफे डे में गए उसने कोल्ड कोफ्फे विथ आइसक्रीम आर्डर किया और पुछा कि तुम कया लोगी मैंने कहा की मैंने कैपीचिनो लुंगी और इदर उदार की बात करने लगे मेरा मन किया पूछू की उसको सर की बेटी सिंहल के बारें में कुछ मालूम है मगर रोक लिय। वो पुछा की मेरे परिवार में कौन है मैंने कहा माँ बबुज्जी और भैया और छोटी बहन है।
उसने फिर पुछा कि अकलेपन नहीं लगता मैंने कहा नहीं काम में इतना बिसी रहती हूँ और घर जाके टीवी देखा और कुछ बुक्स पढ लेती हूँ और कुछ सोचने की फुर्सत नहीं है।
शिरीर ऑफिस में कुछ और लगा और अभी कुछ जयादा ही फ़्रिरी लगा मैंने सोचा शायद उसको अकलेपन लगरहा है, मैंने पुछा कि तुमहारे परिवार में कौन है वोह कुछ देर चुप रहा और बोला कोई नहीं मैं एक अनाथ हूँ और अकेले ही रहता हूँ, इसलिए मेरे सवभाव में यह रुडनेस दीखता है। मैंने कहा हाँ वोह तौ है।
उसने फिर कहा की आज तौ मैं तुमको घर तक ड्रॉप कर सकता हूँ अगर तुमको बुरा न लगे मैंने कहा कोई बात नहीं मैं ऑटो कर लुंगी मैं नहीं चाहती की वोह समझे कि मैं मौके का फायदा उठा रही हूँ और गुड नाईट कह के ऑटो स्टैंड की तरफ चल पड़ी।
वैसे मेरे मन में यह बात लग रही थी की आज कल शिरीर कुछ मेरे तरफ जयादा ध्यान रखता है. फिर मैंने सोचा शायद मैं अकली हूँ इसलिए वोह हमदर्दी दिखा रहा है।
कुछ ही वक़्त में ३ साल गुजर गए और मैं और शिरीर कभी काफ़ी शॉप पे या किसी माल में घुमने चले जाते और वक़्त जैसे पंख लगाके बीता जा रहा था। इन दिनों मैंने महसूस किया की शिरीर कुछ कहना चाह रहा है मगर कह नहीं पा रहा है और मैंने जयादा उसके बारें में सोचना ठीक नहीं समझा।
इस हफ्ते माँ का फ़ोन आया कितने दिन बीत गए घर आ के जाओ और मैंने सोचा चलो जाके आते है. आगरा की ट्रेन में बैठ गयी और एक हफ्ते की छुट्टी भी दाल दिया था। हाँ मैंने आपको यह नहीं बताया की स्नेहल की एक एक्सिडेंट में दोनों पैर ख़राब हो गए थे और वोह तब से घर से ही अपनी पढाई पूरी कर रही थी और अपने पापा के साथ काम करना चाहती थी। खाली समय में वोह पेंटिंग करती थी, खूब गुनी लड़की थी।
चलो ट्रेन ने सीठी मारी और गाडी चल पड़ी मैं खिड़की के बहार के नज़ारे देख रही थी तभी एक आवाज़ ने मुझे चौका दिया ..नेहा तुमने बताया नहीं की तुम घर जा रही हो? मैंने िसर गुमा के देखा तौ शिरीर खड़ा था? मैं सोच में पड गयी कही यह मेरा पीछा तौ नहीं कर रहा है, उसने शायद मेरे मन की बात जान ली और कहा … नहीं नहीं नेहा मैं तौ ऐसे ही छुट्टी लेके आगरा गुमने जा रहा था देखा की तुम बैठी हो तो पुछ लिया। मैंने कहा हाँ मैं घर जा रही हूँ माँ ने बोलया है।
उसने छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा क्यूँ कोई शादी वादी का चक्कर है कया? मैं बोली झट से नहीं नहीं,
और सारे रस्ते हम बातें करते रहे कब आगरा कैटं स्टेशन आया मालूम नहीं पड़ा और मैंने उसको बाई बोला और उतर गयी क्योंकि की मैं उसको घर नहीं बुलाना चाहती थी। फिर बाबूजी की कट कट और गुस्सा कौन सहेगा।
घर पहुचते ही माँ ने कहा कितनी दुबली हो गयी नेहा बेटी कुछ ध्यान नहीं रखती क्यूँ? मैंने कहा माँ ऐसे कोई बात नहीं तुमहारी नज़र ही ऐसे है और छोटी बहन ने कहा की दीदी मेरे लिया कया लायी हो ? मैंने उसकी लिए जेंस और टॉप लिया था भैया की लिए शर्ट बाबूजी की लिए भी शर्ट और माँ की लिए रेशमी साड़ी सब देख के खुश हुए .. बाबूजी ने बोला नेहा बेटी इधर तो आना मैंने सोचा कुछ और भाषण की लिए तैयार कर लो और बोलो जी आई।
मगर बाबूजी इन तीन सालों में काफी बदले से लग रहे थे बोले बेटी कितनी दिन ऐसे ही रहोगी शादी क्यूँ नहीं कर लेती मैंने सोचा लो शिरीर की बात सच्ची हो गयी और मुस्कुरा के बोली पापा छोटी की पदाई में एक और साल है फिर सोचेंगे, और काम के बारें में बात करती रही और में बताया की मेरे बॉस की बेटी स्नेहल जो की अब चल फिर नहीं सकती उसके बारें में बातें करती रही. मन हुआ की पुछू क्या भैया ने शादी के बारें में सोचा की नहीं फिर माँ से पूछना ठीक लगा। बाबूजी को अकेले छोड़ के मैं चली छोटी के पास और बोला चल आज दोनों बहने गुमने जाते है और वोह बोली हाँ चलो।
शौपिंग माल की तरफ ऑटो लिया और चल पड़े रास्ते में गोल गप्पे खाए और फिल्म भी देखि बहुत ही ख़ुश लग रही थी छोटी। मैंने उससे कहा की पढ़ाई ख़त्म कर के कुछ काम जरुर करना आत्म निर्भर होना हर लड़की को चाहिए वो बोली हाँ दीदी मैंने सोचा है की कम्प्यूटर में कुछ कोरस करू और डेलही में काम करूँ मैंने कहा हाँ ठीक है।
भैया ( दिलीप ) जो की चीएफ़ अारकीटेट है उससे थोडा बात करने में डर ही लगता है हर वक़्त काम में वयसत रहता है। मैंने हिम्मत करके पुछा भैया कया चल रहा है बोला ठीक तू बता कैसे है? मैंने कहा मैंने ठीक हूँ। फिर बोली कया एक बात पूछु बोला हाँ बोल,, मैंने फिर हिम्मत करके पुछा कि कया आप शादी के बारें में सोच रहे हो वो बोलो माँ ने कुछ लड़की देखीं है तू भी पसंद करके बता मैं अपने पसंद आख़िर में बताऊँगा, मैंने कहा ठीक।
माँ से बात करने पहुच गयी. और बोला माँ भैया की लिया लड़की देखी है आपने। बोली हाँ कुछ है तौ मगर ठीक से तै नहीं कर पा रही हूँ। मैंने कहा माँ दहेज़ के बारें में सोचना भी मत। क्यूँ की आपकी भी दो लड़कियां है माँ बोली ,,हाँ मुझे ही तू सिखा रही है ? मैंने कहा नहीं माँ बस मन में आया कह दिया। फिर सोचा स्नेहल के बारें में कहूँ या नहीं माँ ने पुछा कुछ कहा है ? मैंने कहा हाँ मेरे बॉस की लड़की स्नेहल बहुत ही अचछी है मगर एक बात है वोह चल फिर नहीं सकती कया आप उनसे बात करोंगे माँ ने कहा बाबूजी से बात कर के देखती हूँ।
मैंने बाबूजी को बॉस का फ़ोन नमबर दिया और बात करने को कहा तौ गुप्ताजी मैं नेहा की पापा बोल रहा हूँ अगर से उदार से आवाज़ आई हांजी बोलीये ..पापा ने कहा की हमारा लड़का दिलीप जो की चीएफ़ अरकिटेट है उसकी लिया आप की लड़की का हाथ मागना चाहते है ..कुछ देर तक उधर से कोई आवाज़ ना आने पर पापा ने कहा हेल्लो हेल्लो, फिर बॉस ही आवाज़ आई जी ..कया आपको मालूम है मेरी बेटी की हालत के बारें में? पापा ने कहा की जी नेहा ने बतया है। अगर आपको समय हो तो हम मिलने आ सकते है। बॉस (गुप्ता) ने कहा की जरुर मैं आपको दो दिनों में कॉल करता हूँ।
मैंने भी इस बात को यहीं पे छोड़ दिया और छुट्टी का मज़ा लेने लगी और शाम के ६ बजे होंगे तभी बड़ी से कार हमारे दरवाज़े पे आई मैंने सोचा कौन होगा? छोटी को आवाज़ दिया और बोला देख ना कौन आया है? छोटी बोली दीदी कोई बड़ी सी कार आया है और दो लोग है मैं जलती से बहार आके देखने गई। देखा की गुप्ताजी और स्नेहल थे..मैंने बोला सर आइये स्नेहल तो मुझे देखकर इतनी ख़ुश होगई बोली अरी नेहा पापा ने यह कहा गुमने जायेंगे और तुमरे घर ले के आ गए..
मैंने उसे बड़े ही सावधानी से व्हीलचेयैर पे बिठाया और घर लेके आई इतने में बाबूजी और माँ भी आ गए और बोले आई गा.
भैया ओफ्फिफ्स में ही थें। हमारा घर छोटा सा था मन में यह की कहीं सर को बुराना लगे मैंने कहा सर पिलीस डोट माईक, इट ईस वैरी स्माल होम। सर बोले स्माल होम बट्ट ओंके हार्ट इस आल मेटरस।
बाबूजी और दोनों बात करने लगे भैया भी पहुच गए थे। स्नेहल को देखते ही वो बोले यह लोग कौन है माँ और क्यूँ आये है माँ ने कहा रिश्ते की बात करने तेरे लिए ।भैया बोले पहले नेहा का सोचो फिर मेरे बारें में। माँ ने कहा घर आती लक्ष्मी को ना नहीं कहते ।
सर ने भी हाँ कर दिया और स्नेहल ने भी हाँ कर दिया. ३ महीने बाद की सगाई तय हुई। सर ने पुछा कि बाबूजी से दहेज़ में कया माग है तुरंत माँ ने कहा की नहीं हमें कुछ नहीं चाहिये सिर्फ लड़की जो की सुशिल है कुछ और नहीं।
देर रात को ही दोनों होटल चले गए और फिर स्नेहल का फ़ोन आया की नेहा तुमको मालूम था इस की बारे में मैंने कहा नहीं माँ ने मेरे आने के बाद ही इस बारें में सोचा और तुमसे अचछी भाभी मुझको नहीं मिल सकती, और यह भी कहा की भैया चाहते है की मेरे शादी भी तय हो जाये वोह बोली ठीक है ना, एक लड़की विदा होगी तुसरी आयेगी।
मैं हस पड़ी सोचा मुझसे शादी के बारें में अभी ना बात करें तौ अच्छा हो।
तुसरे दिन मैं मार्केट में थी तब किसी ने आवाज़ दी नेहा नेहा … मैंने मुड़ के देखा शिरीर खड़ा था. मैंने बोला ऐसे क्यूँ आवाज़ लगा रहे हो? गुस्से में थी बोलो अरे मैं रास्ता भूल गया तुमरे शहर में।
मैंने कहा बोलो कहा जाना है उसने पता पड़ा जो की मेरे घर का था मैंने सोचा अब इसको कैसे टालू मैंने कुछ कुछ बोल के चली गई।
घर में थोड़ी दीर के बात कॉल बेल बजी छोटी बोली हाँ कौन है आप? किसीसे मिलना है? मैंने आवाज़ पहचान लिया शिरीर .
तुरंत बहत गयी और उसने कहा अच्छा मजाक तुमने मेरा बनाया नेहा, तुमरे घर का पता था फिर भी तुमने घुमाया?
मैं सकपक गयी। छोटी बोली दीदी इनको आप जानती हो मैंने हाँ में सर हिला दिया।
भैया जो की यह सब काफी देर से दीख रहे थे बोले आओ शिरीर ..कब से तुमारा इंतज़ार कर रहा हूँ किधर खो गए तुम? शिरीर ने मेरे तरफ देखा बोला एक लड़की ने गलत राह बता दिया थोडा भटग गया था।
मैं अन्दर चली गयी और माँ को बोला कोई आया है जाके बात करो।
बाबूजी भी आगये ऑफिस से बोलोए कौन आया है? माँ ने कहा की दिलीप ने किसी को घर में बुलाया है। लड़का अच्छा लग रहा है अपनी नेहा की लिए कया ख़याल है? बाबूजी बोले देखते है गंभीर से आवाज़ में।
बाबूजी ने अपनी पुछ ताछ शुरू किया तौ उनको पता लगा की अनाथ है तौ दिलीप की तरफ देखने लगे और बोले इधर अाओ, भैया उठ के चल दिए।
छोटी और मैं शिरीर के साथ थे वोह सवाल पुछ रही थी शिरीर जवाब दे रहा था। इतने में शिरीर ने कहा की छोटी जरा पानी तो लाना वो चली गयी फिर शिरीर ने मुझसे कहा क्यूँ मुझसे शादी करोगी देखा किस्मत हर वक़्त मुझे तेरे पास लेके आता है? मैंने कुछ नहीं कहा तब एक चिट्टी उसने मुझे दिया और बोला की यह तब लिखा ता जब तुमको मैंने डेट पे लेके गया उस दिन काफ्फी डे!
चिट्टी में उसने यह लिखा था की उसको मुझसे पहेल दिन ही पयार होगया था लेकिन मेरे रुड बिहेवियर से वोह बोल नहीं पा रहा था जब कई बार मिला तब भी ना बोल पाया यह सोच की मैं एक अनाथ से कैसे शादी करुँगी? उस चिट्टी को पढ के मैंने सोचा जो इंसान देखने मे इतना खडूस है वो इतना पयार भी कर सकता है!
माँ और बाबूजी भी शिरीर से खुश लगे और बोले की हमें कोई ऐतराज़ नहीं है। शिरीर मेरी तरफ देख के बोला कया तुमको भी इस रिश्ते में हाँ है? मैंने कहा की एक शर्त मैं अपने छोटी बहन की पढाई पूरी होने का इंतज़ार करुँगी और फिर मैं काम छोडूगी नहीं इस पे शिरीर ने कहा की…तो फिर बात पक्की!
भैया की सगाई की कुछ महीने बाद मेरी और शिरीर की सगाई हो गयी। अब हम हर हफ्ते एक साथ बिताने लगे और आने वाले कल के जीवन के बारें में सोचने लगे। छोटी न भी अपनी पढाई पूरी करके डेल्ही में काम करने लग गई।
सब कुछ ठीक चल रहा था। मैं और शिरीर अपनी शादी की शौपिंग कर के लौट रहे थे की ऐकायक एक तेज़ी से आती ट्रक ने सामने से टक्कर मारी और सब तरफ अँधेरा छा गया।
मेरे आख खुली तौ कया देखती हूँ माँ बाबूजी भैया छोटी सब खड़े है स्नेहल भी व्हिलचेयर में है मैंने सोचा भगवान ने मुझको बचा दिया और धीरे से मुस्कुराने लगी तभी मेरे पैरों को छूने की कोशिश करी ..कोई हरकत ना हरारत थी..मैंने सोचा शायद एक्सिडेंट की वजह से या फिर मैं काफी दीर से बेहोश थी इस लिए कोई एहसास नहीं है मगर नहीं यह कया मेरे दोनों पैर ही नहीं थी मैं जोर जोर से रोने लगपड़ी और डोक्टर ने मुझे नीद की इनजेकशन देके सुला दिया।
दुसरे दिन जब होश आया तौ मैंने समझी की अब मैं कभी चल ना पाऊँगी मैंने माँ से पुछा की सब लोग हो, शिरीर कहा है ?माँ रोनो लग गयी और बहार चली गयी.. छोटी ने बोली दीदी, शिरीर जीजाजी अब नहीं रहे. और रो पड़ी।
मैं सोचने लगी यह रिश्ता कितना अजीब है, जब वो मेरे सामने था मैंने उसकी पयार की कदर ना की और अब जब वो नहीं है मैं उसको हर जगह ढुड रही हूँ…
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