Family Hindi Short Story on AIDS – “Chalti Hun – Mayur”

Hindi Short Story – “Chalti Hun – Mayur”
Photo credit: nitpix from morguefile.com
यह मेरी ज़िन्दगी के कुछ ऐसे पल हैं,पल हैं जिसमें मैंने अपनी ज़िन्दगी की किताब के पूरे पन्ने फिर से पलट कर याद कर लिए हैं।कुछ मिनटों में ही अपना पूरा बचपन,अपना प्यार,अपना हर रिश्ता फिर से जी लिया। अपने बचपन की हर एक शरारत दोहरा ली।
मैं रिधिमा अपने मम्मी पापा की इकलौती औलाद थी। इसलिए उनकी बोहोत लाडली भी थी,दोनों जान छिड़कते थे मुझपर। कुछ भी लाने को कहो तो बिना वक़्त देखे तैयार रहते थे अपनी रिधिमा की मांग पूरी करने को। उनके लाड प्यार के चलते अपनी हर ज़िद मनवाना मैं बखूबी जानती थी।स्कूल में तो पढाई लिखाई में अछि ही रही मैं लेकिन कॉलेज जाते ही खुद को आज़ाद पंछी समझ बैठी मैं। घूमना फिरना, थिएटर जाना,बाहर खाना पीना ,घर देर दे जाना ….पढाई के लिए वक़्त कम और मौज मस्ती के लिए वक़्त बढता जा रहा था।
कॉलेज के फर्स्ट इयर में तो बच्चो के कपडे,बाल ,चाल,रंग ढंग सब बदल जाता है। स्कूल का अच्छा बीता समय भी कैद सा याद आने लगता है। स्कूल की बंदिशों से निकल कर मानो कॉलेज का खुला आसमान हर कॉलेज के पंछी को अपनी और खीचने को तैयार रहता है और कान में आकर कहता है की यह अब न किया तो कब किया …वो अब न किया तो कब किया। कभी पैर इस ओर भागते है तो कभी उस ओर ओर। घर वालो से छुप छुपाके वोडका,शराब,सिगरेट भी शुरू कर दी थी मैंने।हमारे ग्रुप में मैं ,शालिनी ,प्रतीक और मयूर थे। दोस्तों की दोस्ती ज़िन्दगी बन गयी थी। ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे हमारे ग्रुप का फवेरेट गाना था। सही कहूँ तो फ्रेंडशिप एंथेम था।
फर्स्ट इयर की परीक्षा के बाद सोचा की चरों दोस्त शिमला घूम आएं।शिमला के उस एक हफ्ते में मैं मयूर की बोहुत करीबी दोस्त बन गयी।पसंद तो उसे पहले से ही करती थी,पर शिमला में साथ वक़्त बिताने के बाद नज़रे मयूर को हरदम ढूँढने लगी। मोबाइल पर घंटो बात करना और फिर उसके बारे और उसकी बातों के बारे में सोचना रोज़ का काम हो गया था। शायद प्यार हो गया था मुझे .. हाँ प्यार हो गया था। 14 फेब्रुअरी को हिम्मत करके अपने मन की बात मैंने मयूर से कही। मयूर की हाँ सुनते ही लगा की जैसे एक पंछी की तरह आकाश में इधर उधर उड़ रही थी उस पंछी को एक घोंसला मिल गया हो। कॉलेज ख़त्म होते ही मैंने और मयूर ने अपने अपने घर में बात की और जल्द ही हमारी शादी हो गयी।
मयूर के माता पिता भोपाल ही रहते थे सो वो हमारी शादी के बाद वापिस चले गए। मयूर की नौकरी दिल्ली में लग गयी थी।शालिनी को मयूर के ऑफिस में और प्रतीक को मुंबई में नौकरी मिल गयी थी। जल्द ही मुझे भी नौकरी मिल गयी।मैंने मूवी की दो टिकेट खरीद के राखी और डिनर का प्लान भी बना लिया और सोचा की मयूर के शाम को घर आते ही उन्हें बतौंगी की मुझे नौकरी मिली है।पर उसके लौटने पर जब मैंने उसे ये बात बताई तो उसने साफ़ मन कर दिया। मैं समझ ही नहीं पाई की एक इंसान जो खुद इतना महत्वाकांक्षी हैं वोह अपनी बीवी को आगे बदने से क्यूँ रोक रहा है? क्यूँ उसे ख़ुशी नहीं हुई जब ये नौकरी तो मुझे उसके ही ऑफिस में मिली थी।
कुछ दिन तक इसी बात को लेकर हमारे बीच तनाव रहा।फिर मैंने अपने मनन को समझा लिया और सब पहले जैसा हो गया।अपनी मैरिज एनिवर्सरी पर हमने शिमला जाने का प्लान बनाया जहाँ हमें एक दूसरे को जानने का मौका मिला था। लेकिन इस बार वहां जाते ही मेरी तबीयत ख़राब हो गयी और हम वापिस लौट आये।पर वापिस आकर भी मेरी तबियत में कुछ सुधर नहीं हुआ और तबीयत दिन ब दिन बिगड़ने लगी। मयूर मुझे हस्पताल ले गए और जांच कराई।जब रिपोर्ट्स आई तो विशवास नहीं हुआ की मुझे “एड्स ” हुआ है। न मेरे पास कुछ कहने को था न मयूर के पास कुछ सुनने को। मयूर को कैसे विश्वास दिलाती की सिर्फ वही है मेरी ज़िन्दगी में।इतना पढने लिखने के बाद भी कैसे लोग भूल जाते है की एक ही कारण नहीं होता एड्स होने का।
हर रोज़ खुद को ज़िन्दगी से और मयूर को खुद से दूर जाते हुए महसूस कर मेरी एक एक सांस उखाद्ती रही।शरीर के साथ जब दिल और दिमाग भी बीमार होने लगा तो बिमारी तिगुनी रफ़्तार से मुझ पर काबू पाने लगी।मयूर के साथ एक घर में तो थी पर बातें ख़तम हो गयी थी।जल्द ही कमरे भी बदल गए। एक दिन जब मयूर घर पोहुंच तो वोह अकेला नहीं था मेरी बेस्ट फ्रेंड शालीनी भी उसके साथ थी।उसे देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई पर जैसे ही नज़र थोड़ी नीचे गयी तो देखा की मयूर और शालिनी के हाथ जुड़े हुए थे।आज समझ आया की क्यूँ नाराज़ थे मयूर मेरे उनके ऑफिस में नौकरी करने की बात लेकर। शायद मेरी जगह शालिनी ले चुकी थी। उन दोनों की आँखों में न मेरे लिए दर्द था न मुझसे शर्म।
मैं अब मैं कहाँ बची थी … सिर्फ एक जिंदा लाश थी जो रोज़ सोती थी तो सोचकर की भगवन काश कल सुबह न उठूँ।पिछले हफ्ते शालिनी को चक्कर आने लगे , बुखार रहने लगा । चेक कराने पर रिपोर्ट के बारे में उसने मुझसे ज़िक्र नहीं पर मैं सब समझ गयी। बस फूट फूट कर रोने लगी और मुझे गले लगा लिया।मेरी आँखों में आंसूं तो थे पर चलके नहीं।क्या कहती मैं उससे ….के जानती हूँ की क्या हुआ है उससे?शायद दोनों सहेलियों की किस्मत एक ही कलम से लिखी है भगवान् ने।क्या कहती की समझ गयी हूँ की उससे भी एड्स हुआ है। शायद अब वो समझ गयी थी की एड्स मुझे मयूर से ही हुआ है।क्या जवाब देती उसे की क्यूँ मैंने मयूर को नहीं बताया इस बारे में। लेकिन कैसे बताती क्या सह पाता वो इस सच को
?छुप कर जब भी उसके खाने में दवाई मिलाती थी तो यही सोचती थी की वो ठीक हो जाए।उसकी नफरत मुझे मंजूर थी पर उससे टूटते देखना नहीं। और अगर शालिनी को पहले बताती तो क्या शालिनी को इस सब से बचा पति।क्या वो मेरी बात को सच मानती ? शायद नहीं!मेरी हर बात तो झूट थी सबके लिए।मैं तो खुद अछूत बन चुकी थी। तो कौन विश्वास करता मेरी बात पर? पर अब और नहीं ..एक और जिंदा लाश नहीं देख पाऊँगी …जो नफरत मयूर की आँखों में अपने लिए देखी वो शालिनी के लिए नहीं देख पाऊँगी।एक और रिधिमा बनते नहीं देख पाऊँगी।यह किस्सा अपनी आँखों के आगे दोहराने की हिम्मत नहीं है।न जाने भगवान् और कितना दुःख देखा इस जिंदा लाश को …और इत्नेज़ार नहीं कर सकती भगवान् के फैसले का …. ये फैंसला मेरा है और मुझे अभी ही करना होगा।
चलती हूँ माँ …चलती हूँ पापा …. चलती हूँ मयूर ………..
__END__