यह कहानी उस अकेली लड़की की है जिसे उसकी बेटी ने ही महान चित्रकार बना दिया। नाम राजकुमारी लेकिन काम सारे घर के नौकरों की तरह करने पड़ते थे। सौतेली माँ के दिए घाव क्या होते हैं शायद हर व्यक्ति नहीं समझ सकता है।
राजकुमारी ऐसी ही एक लड़की का नाम है जो अपने मन की बातों को किसी के भी साथ बांटने से घबराती थी। या यूं कहिये की कोई था ही नहीं जो उसके मन में उतर पाया हो। अपने जीवन के संघर्षों से जूझते जूझते वह उम्र के उस पड़ाव पर जा पहुँची जहाँ उसे एक हमसफ़र का साथ मिल जाता है । अर्थात एक ऐसा व्यक्ति जिसे भारतीय परिवेश में पति परमेश्वर भी कहते हैं, का साथ मिलाना उसे अपनी हजार परेशानियों की दवा जैसा था। जिस देश में भगवान राम के अनुयायी हों वहाँ के लोग पत्नी के अरमानों को क्या समझते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा अभी तो सारे सपने सजाकर ससुराल पहुँची राजकुमारी बहुत खुश थी। सौतेली माँ के अत्याचारों से छुटकारा जो मिल गया था।
“हे भगवान्! इस जन्म के दुःख दूर हो गए। मुझे मेरी माँ से छुटकारा तो मिला।” पर उसे नहीं मालूम था की ऊपर वाले की परीक्षा अभी वकाया थी। भगवान् भी धैर्य की परीक्षा कब तक लेता है यह हर कोई नहीं जानता है। अपने मोहल्ले की कई महिलाओं की आशीर्वाद के साथ राजकुमारी ससुराल के सपने में ही खोई रहती थी।
पर बेचारी यह नहीं जानती थी , बचा हुआ जीवन भी कितना खुशहाल है। राजकुमारी का सपना एक सपने की तरह ही रहा, जल्दी ही आँखें खुल गयीं कि पति को उसका हाथ थामना तो दूर की बात ठीक से बोलने में भी बेइज्जती मेहसूस होती है । बूढ़े सास ससुर के बिगड़े लडके से क्या आशा की जा सकती है। रोज रात में देर से घर आना उसकी आदत थी पत्नी की क्या अपने माता पिता की भी कोई चिंता नहीं। अपनी मौज मस्ती सबसे पाहिले बाकि की दुनिया में क्या हो रहा उसके मन में भी ख्याल नहीं आता था। जब जी करे शराब पी कर घर पहुंचे। पहुँचते ही राजा महाराजा जैसा स्वागत हो , यही जिंदगी थी। पिता जी की पेंशन पर्याप्त थी घर चलने के लिए। अपनी दुकान की कमाई से जी भर कर ऐश करता था।
दुखों के साथ समझौता करने वालों के दुखों का क्या कभी अंत भी होता है। सास ससुर की सेवा ही धर्म मान कर खुश रहने लगी। मन में रचे बसे सारे सपने, किस्से कहानी की तरह कब गायब हो गए मालूम ही नहीं हुआ। उम्र का एक दौर पति पत्नी बन कर गुजार दिया पर कभी मिलकर बातें नहीं की, कभी मिलकर मुस्कुराये नहीं, कभी हाथों में हाथ नहीं थमा , कभी एक दूसरे को गले नहीं लगाया , बस जिंदगी का सफर गुजार रहे थे और निरर्थक जीवन जिए जा रहे थे । समाज में ऐसे बहुतेरे पति पत्नी होगें जिनके बीच कभी वास्तविक प्यार नहीं पनपा बस एक दूसरे के हमसफ़र बन कर चलते रहे और जीवन गुजार दिया।
राजकुमारी भी कभी अपने पति की रानी न बन सकी पर दो बच्चों की माँ अवश्य बन गयी थी। वे बच्चे भी उसे भगवान की देंन लगते थे पति और अपने बच्चे कम लगते थे। राजकुमारी का जीवन संघर्षों की रेलगाड़ी बन गया था जो कभी भी बेपटरी हो जाता था। थकते थकते और अकेले चलते चलते जीवन के चालीस वरस पार हो गए थे। जीवन जीने की सारी आशाये अभिलाषाएँ जाने लगी थी। जिस प्यार की प्यास थी वो बच्चों के अलावा किसी और से न मिल सका पर बच्चों से इतना मिला की सारे गीले शिकवे मिट गए। बेटी परियों के जैसी दिखती थी और राजकुमारी के जीवन में एक परी ही सावित हुई। पति के दिल का रास्ता उसके लिए पाहिले से ही बंद था अब उसने भी अपना बंद कर लिया था। बचपन और जवानी बिना खेल, बिना प्यार के ही बीत गए, कब आये और कब चले गए बस गिनती के दिनों जैसे ही लगते थे।
कभी परियों की कहानी न सुनी थी पर अपने बच्चो को रोज परियों की कहानी सुनती थी , शायद कल्पना शक्ति कमाल की देकर भेजा था ऊपर वाले ने , किसी करिश्मे से कम नहीं होता मनगढंत रचना करना। एक और हुनर था जो अभी तक उसे भी नहीं मालूम था वह हुनर था चित्रकारी का। राजकुमारी की बेटी स्कूल जाने लगी थी लेकिन बेटा अभी छोटा था। सास ससुर भी बहु की सेवा से खुश थे। बेटी स्कूल से जो कुछ सीख कर आती थी माँ को आकर सुनाती थी। राजकुमारी अपनी बेटी नेहा से कविता कहानी सुनकर उसका चित्र बेटी की नोटबुक में बना कर बेटी को खुश कर देती थी। कुछ समय के बाद बेटी के स्कूल में नोटबुक प्रधानाचार्य ने जाँची तो सुन्दर चित्रों को देखकर समझ गया की बच्ची के घर में कोई महान चित्रकार है। बच्ची को बुला कर मालूम किया तो उसने अपनी माँ के बारे में बताया।
प्रधानाचार्य ने पुछा माँ क्या काम कराती हैं। घर के कामो के सिवाह नेहा के पास कोई जवाब नहीं था। हाँ इतना जरूर बोली “मेरी माँ अनपढ़ है वो कुछ नहीं कर सकती है।”
अक्षरों की जगह चित्र बनाना उसे इतना प्रशिद्धि दिलाएगा यह राजकुमारी ने कभी नहीं सोचा था। राजकुमारी की बेटी नेहा के प्रधानाचार्य ने आर्टबुक और रंग भरे पेन देकर अपनी माँ से सभी कविताओं के लिए चित्र बनाकर लाने को कहा। राजकुमारी को तो जैसे इस दुनिया की नई ख़ुशी मिल गयी हो , उसने बिना ज्यादा समय लगाए चित्र बनाकर स्कूल भेज दिए। अगले साल की किताब में वे सभी चित्र कविताओं से साथ छापे गए थे।
राजकुमारी को प्रशंसा के साथ पहिली बार अपनी कमाई का भुगतान भी मिला। देश के एक अखवार ने उसके जीवन को लोगों के सामने बताया। कई स्कूलों में किताबो के लिए चित्रकारी का काम भी मिलने लगा। पैसा और प्रशिद्धि देखकर पति का स्वभाव भी बदल गया। जो पति कभी अच्छे से बोलता तक नहीं था आज उसी ने हाथ पकड़ कर बैंक में अंगूठा लगवाया तो पहिली बार उसे पति से प्यार की अनुभूति हुई। कौन कहता है की वक्त नहीं बदलता बस देर लग सकती है। बेटी नेहा आज बड़े ही खुश होकर कहती है की मेरी माँ एक चित्रकार है।
राजकुमारी के जीवन से सीखा जा सकता है की हमें धैर्य बनाये रखना चाहिए समय जरूर बदलेगा।
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