This Hindi story shows how people prefer fair color to quality in negotiation of marriage of girl Beauty is perishable – quality is permanent We must look into .
काले लोगों को समाज किस दृष्टि से देखता है , कहने की आवश्यकता नहीं है . इसका सबसे ज्वलंत प्रमाण है लडकी के विवाह में उठती हुयी परेशानियां . लड़केवाले सबसे पहले शर्त रख देते हैं कि लडकी गोरी होनी चाहिए . काली होने से एक सीरे से प्रारम्भिक बात-चीत में ही आगे की बात-चीत करने से किसी न किसी बहाने मुँह मोड़ लेते हैं . सबसे बड़ी दुःख की बात तब होती है , जब लडके पक्षवाले लडकी के गुण को भी जानने की ईच्छा नहीं रखते. बस सौ सवालों का एक ही जबाव – ‘ आप की लडकी फेयर नहीं है , हम रिश्ता नहीं कर सकते. ’ ऐसी अवस्था में लड़कीवालों के दिल पर क्या गुजरती है , उसे बयाँ नहीं किया जा सकता . यह रोग यहीं तक सीमित नहीं है . अब तो लड़कीवाले भी लड़केवाले से साफ़ – साफ़ शब्दों में पहली शर्त रख देते हैं कि लड़का फेयर और हैंडसम होना चाहिए तभी शादी की बात आगे बढ़ाई जा सकती है , अन्यथा यहीं ख़त्म . इस प्रकार एक बात सामने उभर कर आती है कि वर या वधु का सौदर्य उसके गुण की अपेक्षा ज्यादा महत्यपूर्ण हो गया है. रूप व सौन्दर्य ग्राह्य हो गया है . गुण सौन्दर्य के आगे बौना साबित हो रहा है . समाज में बहुत कम ही लोग है , जो वैवाहिक सम्बन्ध में सौन्दर्य या रूप – रंग की अपेक्षा गुण को तरजीह देते हैं . गुण स्थाई है , जबकि सौन्दर्य नाशवान . आज कोई सौन्दर्यवान या रूपवान है , ढलती उम्र के साथ – साथ उसका सौन्दर्य या रूप क्षीण होता चला जाता है , लेकिन गुण के साथ वैसी बात नहीं . गुण अक्षुण्ण है. गुण शाश्वत है. इसमें दिनानुदिन निखार आता रहता है . एक बहुत ही प्रचलित कहावत है कि गुण की पूजा होती है , रूप की नहीं , लेकिन जब हमारे व्यवहारिक जीवन में निर्णय की घड़ी आती है कि हम किसे स्वीकार करे और किसे नकार दें तो हम रूप को चुन लेते हैं और गुण को दरकिनार कर देते हैं . हमने क्यों नकार दिया , यह भी बताने की जरुरत नहीं समझते.
किसी भी व्यक्ति को किसी व्यक्ति या स्थान या वस्तु का सौंदर्य बोध कहाँ से होता है – आँखों से या हृदय से . यह कोई जरूरी नहीं कि जो हमारे नेत्रों को तृप्त करे वह हमारे मन को भी तृप्त कर सकते है. जो नेत्रों को तृप्त करे और मन को भी तृप्त करे , ऐसे अपवाद ही होते है. नयनों की तृप्ति और हृदय की तृप्ति के परिमाण में अंतर तो होता ही है . इस अंतर को नकारा नहीं जा सकता.
ऐसे आपलोग मेरी बातों पर यकीन नहीं कर सकते. हर कोई सबूत मांगता है. मेरे पड़ोस में एक लडकी तीन बहनों में बड़ी थी . मैट्रिक पास करने के बाद से ही माँ – बाप को लडकी की शादी की चिंता सताने लगी . लडकी पढने – लिखने में अच्छी थी. नाक – नक्स भी ठीक था , लेकिन सांवली थी . जो भी लड़केवाले लडकी देखने आते , लडकी के कम्प्लेक्सन पर सवाल पैदा कर देते और रिश्ता करने से इनकार कर देते . चार वर्षों तक यही होता रहा . लडकी बी . ए . भी पास कर ली. इन चार वर्षों में उसकी छोटी बहन भी शादी करने योग्य हो गयी. अब तो समस्या सुलझती क्या , दोगुनी हो गयी. माँ – बाप को रात को नींद नहीं और न दिन को चैन . घरवाले तो घरवाले , लडकी भी लड्केवालों के पास आने में कतराने लगी . एक तरह से ऊब गयी . घर की माली हालत भी उतनी अच्छी नहीं थी कि पैसों के बलबूते पर दामाद खरीद लिया जाय. अंततोगत्वा लडकी ने अपने आप से समझौता कर लिया कि वह आजीवन कुंवारी रहेगी या आत्महत्या कर लेगी . माँ – बाप को और तकलीफ नहीं देगी . आशा – निराशा के बीच वक़्त गुजर रहा था कि एक दिन किसी रिश्तेदार ने खबर भेजवायी कि जिस लड़के के जीजा जी ने लडकी के सांवलेपन को लेकर शादी के रिश्ते को ठुकरा दिया है , वह लड़का अब स्वं लडकी देखना चाहता है. मरता क्या न करता ! इस खबर को सुनकर कौन माँ – बाप खुश नहीं होगा ? आशा बन्ध गयी कि हो सकता है लड़के को लडकी पसंद आ जाय. दिन , तिथि, समय सब तय हो गया लडकी दिखाने का .
लडकी अड़ी हुयी थी कि अब वह किसी के सामने नहीं जायेगी , भले आजीवन कुंवारी ही रहना पड़े . मैं हर निगोसिएसन में रहता था , इसलिए मुझे लडकी को समझाने की जिम्मेदारी दी गयी. घरवालों को विश्वास था कि लडकी मेरी बात जरूर मानेगी . हुआ भी वही . मैंने लडकी से ज्यों मिला वह तुरंत भांप गयी और मेरे कहने से पहले ही बोल पडी , ‘ आप मुझे राजी करने आये हैं न उस बात पर जिसे मैंने नकार दिया है ? आप जब मुझे मनाने आ गये तो मम्मी – पापा को कह दीजिये मैं तैयार हूँ लड़केवालों के पास जाने के लिए , लेकिन यह मेरा आख़री चांस होगा . ’ मैंने दो शब्द ही कहा , ‘ ठीक है .’
लड़के का बड़ा भाई एवं मामा ने साफ़ शब्दों में कह दिया कि यदि लड़के को लडकी पसंद है तो उन्हें कोई एतराज नहीं है, लेकिन जीजा जी ने अपना मत दिया कि शादी नहीं हो सकती , क्योंकि लडकी सांवली है , जबकि लड़का गोरा है. लड़के ने लडकी से कई सवाल किये जिनका जबाव सही – सही दिए गये . रामायण , महाभारत एवं श्रीमद्भागवत गीता से भी कई प्रश्न किये गये जिनका उत्तर लडकी ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ दिया . लड़के ने उसी वक़्त स्पष्ट कर दिया , ‘ मुझे लडकी के गुण से मतलब है , उसके रूप – रंग से नहीं.
जीजा जी ने कुछ प्रतिकार करना चाहां तो लड़के ने यह कहकर फटकार लगाई कि शादी उसे करनी है , जीवन उसे काटनी है , किसी को इससे क्या मतलब कि लडकी गोरी है या काली है . और मैं बिना लाग – लपेट और बिना दान – दहेज़ के विवाह करना चाहता हूँ . आज ही , अब ही , मुहूर्त निकाल लिया जाय . लडकी को जाने के लिए भी कह दिया लड़के ने . लडकी उठी और एक सीरे से सब का चरण स्पर्श किया – अपने होनेवाले पति को भी . मेरी तरफ मुखातिब होकर लड़के ने एक संस्कृत का श्लोक पढ़ा , जिसका अर्थ होता है कि पलाश के फूल कितने सुन्दर होते हैं , लेकिन गंधहीन होते हैं , इसलिए किसी देवता पर नहीं चढ़ाये जाते . क्यों मास्टर साहब ?
सो तो है , लेकिन इस बात को समझनेवाले आज के समाज में कितने प्रतिशत हैं ? शायद नगण्य .
मुझे नगण्य में ही गिनती कीजिये . लड़के ने जोड़ा .
क्या खूब ! मेरे मुंह से अनायास ही निकल पडा .
लड़का पेशे से वकील ( एडवोकेट ) था . तीन – चार साल से वकालती कर रहा था . इसलिए उसने दूसरा प्रश्न कर दिया मुझसे :
मास्टर साहब ! आप को इस लडकी से शादी करने के लिए कहा जाता तो आप क्या करते ? – हाँ में या न में उत्तर दीजिये .
हाँ , मैं शादी करने के लिए तैयार हो जाता . मैंने अविलम्ब उत्तर दे दिया .
सुन लिए – उसने अपने हित – मित्रों की ओर इशारा करते हुए अपने दलील को पुष्ट कर दिया .
हमलोगों ने एक ही साथ भोजन किया . कुछ देर आराम करने के बाद हमलोग सबों को स्टेशन छोड़ने चले गये . सब कुछ सौहार्दपूर्ण वातावरण में तय हो गया . जून महीन के दूसरे सप्ताह में शादी भी हो गयी लडकी की .
वही लडकी , जिसकी शादी कई वर्षों पहले हुयी थी , अपने भतीजे की शादी में पति एवं बाल – बच्चों के साथ आयी हुयी है . मैंने उससे आज ही मिला . जो उसने अपने परिवार की जानकारी दी , उसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जा रहा है :
पता चला लडकी ससुराल में बहुत खुश है. दो लड़के हैं – एक पिता के साथ वकालती करता है – दूसरा डॉक्टर है , जो गाँव में ही निजी प्रक्टिस करता है . दो लड़कियां हैं , जो पास के ही गाँवों में शिक्षिका हैं . बहुएं भी पढी – लिखी गृहिणी हैं .
बड़ा लड़का एवं छोटी लडकी गोरी हैं , जबकि छोटा लड़का और बड़ी लडकी सांवली हैं . लोगों का कहना है कि कोई संतान पिता पर गयी है तो कोई माँ पर. लोगों का मत है कि ऐसा अक्सरां होता है.
वकील साहब से पता चला कि उसने बहुत ही नेक और समझदार पत्नी पायी . उनकी माँ को हृदयाघात के बाद लकवा मार दिया था तो सावित्री ( वकील साहब की धर्मपत्नी ) ने उनकी जी- जान से सेवा – सुश्रुषा की जबकि उनके बड़े भाईयों की पत्नियों , जो गोरी – चिट्टी थीं , ने कोई न कोई बहाना बनाकर सेवा से मुंह मोड़ लिया .
वकील साहब ने दूसरी घटना का जिक्र किया कि एकबार उसे पीलिया ( Jaundice ) हो गया तो सावित्री ने उसकी दिन – रात सेवा – टहल की – एक तरह से उसे मौत के मुंह से निकाल कर लाई .
सावित्री किसी प्रकार के दिखावे में विश्वास नहीं करती . साज – श्रृंगार से दूर रहती है. उसका कहना है कि ईश्वर ने उसे जो रूप – रंग दिया , उसे अपने कर्मों एवं व्यवहार से सजाना है , न कि तेल – फुलेल क्रीम – कंघी से . यह संस्कार उसने अपने बच्चों एवं बच्चियों को भी दिए हैं .
मेरा मत है कि शादी करते वक़्त लडकी के रूप – रंग पर ध्यान न देकर उसके गुण पर ध्यान देना चाहिए. इससे परिवार में सुख – शांति बनी रहेगी और जिस परिवार में सुख – शांति होती है , वही परिवार उन्नति के पथ पर अग्रसर होता चला जाता है दिनानुदिन .
क्या मैं गलत कहता हूँ ?
आप सही कह रहे हैं . मैं आपके विचारों से सहमत हूँ .
हमलोग बात कर ही रहे थे कि कहाँ से सावित्री टपक पडी और हमारे पास ही बैठ गयी .
हमने बातचीत के प्रवाह को मोड़ दिया – खुशनूमा बनाने के ख्याल से.
वकील साहब ! हमारे और सावित्री की उम्र में महज चार – पांच साल का अंतर होगा . हमलोग एक ही स्कूल में पढ़ते थे – पास ही बेसिक स्कूल में . मैं आठवीं में था तो वह चौथी क्लास में होगी . जब वह गर्ल हाई स्कूल , धनबाद में पढने लगी तो मैं आर . एस. पी . कालेज , झरिया में पढने लगा .
मेरा रंग तो देख ही रहे हैं – बिलकुल काला – कोयले की तरह . सावित्री के कम्प्लेक्सन की तुलना मेरे रंग से करेंगे तो वह गोरी लगेगी . देख लीजिये, पास ही तो है बैठी. क्या मैं गलत कह रहा हूँ ?
आप सही कह रहे हैं . वकील साहब ने कहा .
स्कूल की जब छुट्टी की घंटी बजती थी तो मैं गेट से दाहिनी ओर मुड जाता था ओर वह बाईं ओर ,चूँकि मेरा घर दाहिने तरफ और उसका बाईं तरफ थे.
सावित्री अपनी जिह्वा निकालकर मुझे चिढाती थी . तब मैं गोरा – काला फिल्म का लोकप्रिय गाना गाकर उसे भी चिढाने से नहीं चुकता था .
कौन सा गाना ? मास्टर साहब ! जरा मुझे भी चिढ़ा दीजिये .
वकील साहब ! आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं .
आप की प्रिय शिष्या का पति जो हूँ !
तो शुरू करूँ ?
नेकी और पूछ – पूछ .
काले हैं तो क्या हुआ , दिलवाले हैं ,
हम तेरे – तेरे – तेरे चाहने वाले हैं |
यहीं बात ख़त्म नहीं होती है . सावित्री सुनकर मुझे अंगूठा दिखा देती थी और मुंह चिढाते हुए चल देती थी . आज इस घटना के हुए कई दसक हो गये होंगे .
मुझपर यकीन न हो तो सावित्री – अपनी धर्मपत्नी से पूछ लीजिये . पास ही तो बैठी है .
हाँ , सर की बात पूर्णतः सत्य है . सर ने मुझे किसी भी संकट को सच्चाई से सामना करना सिखाया है. आप से ही , ( पति की ओर मुखातिब होकर ) पूछती हूँ , ‘ मैंने कभी भी सत्य का साथ छोड़ा है क्या ? यही नहीं जब कोई वरपक्षवाला ‘ लडकी काली है कहकर शादी का रिश्ता नामंजूर कर देता था तो सर मुझे एक गीत गाकर ढाढस बंधाते थे ’
तो वह गीत मुझे भी सुना दो आज – उसके पति ने आग्रह किया .
सर के श्री मुख से ही सुन लीजिये . मेरे तरफ मुखातिब होकर बोली ,’ सर वो गीत सुना दीजिये न !
मैंने सावित्री को दिल से प्यार किया था तो उसकी बात को कैसे ठुकरा सकता था . मैंने माँ काली का स्मरण करके सस्वर गाकर सुनाया जो कुछ भी मुझे याद था :
प्रसंग है कि एक युवती काली है – इस वजह से उसका प्रेमी उसे प्यार नहीं करता – ऐसा वह सोचती है . वह अपनी सहेली से इन पंक्तियों में अपने अंतर की वेदना को प्रकट करती है :
‘ ओगो ! कृष्ण कालो , आन्धार कालो , आमियो तो कालो सखी ,
तबे आमाय केनो भालो बासले ना ?
( अर्थात हे सखी ! भगवान कृष्ण काले हैं , अँधेरा काला है , मैं भी काली हूँ . तब मेरे प्रेमी ने मुझे क्यों नहीं प्यार किया ? )
क्या खूब ! मास्टर साहब ! सावित्री अब भी आप को उतना ही प्यार करती है जितना … मैं उसका पति हूँ और यह बात दावे के साथ कहता हूँ . आप बहुत लक्की हैं कि …
मुझसे ज्यादा तो आप लक्की हैं जो इतनी नेक और निष्ठावान पत्नी पायी सावित्री के रूप में .
सावित्री कभी – कभी कहती थी कि सर से मिलेंगे और बातें करेंगे तो आप वकील होकर भी उन्हें हरा नहीं पायेंगे . आज मैंने आप को जिस सच्चाई से अपनी बात को रखते हुए पाया , मैं सचमुच में हार गया और आप जीत गये.
सावित्री तरफ मुखातिब होकर वकील साहब ने कहा :
सावित्री ! तुम्हारा सर अच्छा इंसान ही नहीं बल्कि फरि … ? यही वजह है कि मुझे तुमपर और तुम्हारी निष्ठा पर अटूट विश्वास है. जहां तक मुझे याद है कि अन्यान्य बातों के अलावे तुमने इस बात का भी जिक्र कभी किया है मुझसे .
वकील साहब ! आप की अनुमति हो तो एकबार सावित्री को फिर चिढाऊँ ?
क्यों नहीं ?
हम काले हैं तो क्या हुआ, दिलवाले हैं ,
हम तेरे – तेरे – तेरे चाहनेवाले हैं |
सावित्री भी कम नहीं किसी मायने में मुझसे वो भी चौसठ साल की उम्र में – वह जिह्वा निकालकर मुंह चिढाती हुयी , ठेंगा दिखाती हुयी चल दी.
वकील साहब और मैं इस तमाशे के तमाशबीन बनकर देखते रह गये . हमने हंसी – खुशी को जी भरके शेयर किया .
शीघ्र ही सावित्री दो प्याली चाय लेते आयी और हमें थमा दी .
मैंने पूछा : और तुम ?
मैं आपसब के सामने नहीं पी सकती . पुरानी बातों से भावुक हो जाती हूँ .
यहाँ तो हजारों हैं , कौन सी बात ?
वही – हम काले हैं तो …
देखा , उम्र के इस ढलान पर भी उसके कपोल लज्जा से रक्तरंजीत हो गये – लाल टेसू की तरह .
वकील साहब से मैंने विदा ली और घर चले आये . मुडकर पीछे देखा तो ऐसा आभास हुआ कि पुरानी यादें मुझे पीछा कर रही हैं एक अजनबी की तरह …
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २९ जून २०१३ , दिन : शनिवार |
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