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Chain Ki Saans

Published by Seema Singh in category Family | Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag domestic abuse | family | husband | job | office

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Hindi Story of Indian Woman
Photo credit: presto44 from morguefile.com

हर दिन एक नयी शुरुआत … हर दिन सोचना शायद अब कुछ बदल जायेगा.. रोज का नियम सा बन गया है . मगर कुछ बदलने वाला नहीं है… हर औरत की जिंदगी एक जगह आ कर ठहर सी जाती है वही मुकाम आ गया है मेरे जीवन मे भी …पति देव का अपना शिकायतों का पिटारा है …सासू माँ की अपनी शिकायतें …क्या कभी किसी ने ये जानने की कोशिश भी की, कि मुझे क्या चाहिए? हमेशा अपनी पसंद थोपना, अपनी ही चलाना मै भी इन्सान हूँ.. मेरी भी कुछ पसंद नापसंद हो सकती है उस से किसी को क्या लेना देना….शुरू के कुछ साल तो कपूर के जैसे उड़ गए पता ही नहीं चले … कुछ नए रिश्तों मे एक दूसरे को जानने मे निकल गए और कुछ बच्चों की परवरिश मे…अब जब जिंदगी मे थोड़ा ठहराव आना चाहिए तो ये रात दिन की किट किट…बेवजह के झगडे.. नाराजगी ..जड़ मे कोई खास बात होती भी नहीं, मगर… बात है कि खत्म भी नहीं होती …ज़रा ज़रा सी बात इतनी बड़ी हो जाती है कि कहना दुश्वार… बस कुछ मेरा मन भी विद्रोही हो गया है क्यों सुनू सबकी …मेरा गुनाह औरत हूँ ? या पढेलिखे परिवार से हूँ? या हर सही गलत को सर झुका कर न मानने की आदत ? अगर ये ही है तो मेरी गलती नहीं है … मेरे माता पिता की और मेरे बड़ों की है जिन्होंने अपने निर्णय खुद करने की आज़ादी दी और हमेशा बढ़ावा दिया कि गलत बात का विरोध करना ही चाहिए…अब शादी के इतने साल बाद कोई उंगली पकड़ के सिखाने की कोशिश करे तो गुस्सा कैसे न आयें… बड़े आये सिखानें वाले… हुह…

अब शांत हो जा दिव्या ! कितना बोलेगी मै समझ गयी यार…मत परेशान हो मै समझती हूँ हो जाता है कभी कभी घर में…

कभी कभी नही मेरे घर मे रोज का है… फिर एक बार दिव्या शुरू हो गयी माधुरी ने उसको बीच मे टोका …एक बात बता जीजाजी लगते तो नहीं हैं ऐसे … तू कुछ ज्यादा महसूस नही कर रही है …

नही बिलकुल नही बल्कि जितना होता है ना उस से तो काफी कम कह रही हूँ … कहते कहते दिव्या का गला भर सा गया …

माधुरी समझ नहीं पा रही थी कैसे सम्हाले अपनी हर दम खुश दिखने वाली बहन से भी प्यारी सहेली को … सुन सुन सुन सुन … मेरी बात तो सुन … ऐसे परेशान होगी तो कैसे चलेगा हाँ ? एक काम करते हैं मै भी थोडा काम निपटा लू और तब तक तू भी फुर्सत पा ले फिर हम शाम को मिलतें हैं … आराम से बैठ कर सोचतें हैं क्या करना … ठीक है? और देख परेशान मत होना बिलकुल भी … मै हूँ ना …

हाँ! ठीक है.. दिव्या ने बुझी बुझी आवाज़ मे कहा …

अरे ऐसे नही करते यार … अब हम बड़े हो गए हैं ….

हाहा हसते हुए दोनों ने फोन काट दिया … माधुरी गहरी सोच मे थी क्या सच मे दिव्या के घर मे परेशानी है या वो ज्यादा महसूस कर रही है.. उसके पति से ज्यादा बातचीत होती नहीं है माधुरी की .. बस कभी सामने पड़ गए तो दुआ सलाम हो गयी या कभी दिव्या के न होने पर उसका फोन उठा कर बता देते हैं कि वो कहाँ है …बस जितना जानती थी वो दिव्या ने ही बताया और उन बातों से कभी ऐसा लगा नहीं कि कोई तनाव जैसा हो भी सकता है उनके बीच ..

अचानक बजी दरवाज़े की घंटी से ध्यान टूटा .. बाहर कामवाली लीला खड़ी थी … माधुरी दरवाज़ा खुला छोड़ कर बडबडाती हुयी आ गयी कल क्या हो गया था बिना बताए गायब हो जाती है तुझे पता था ना कल मेरी मीटिंग थी ..ऐसे कैसे चलेगा …

लीला ने कोई जवाब नहीं दिया तो माधुरी ने पलट कर गुस्से से देखा …ये क्या? लीला रो रही थी …. माधुरी के गुस्से पर जैसे किसी ने पानी डाल दिया हो … झट से पास आकर प्यार से पूछा .. अरे क्या हुआ क्यों रो क्यों रही है ..और ये तेरे चोट कैसे लगी?

अब तो जैसे लीला का बाँध ही टूट गया … दीदी जी… मेरा आदमी है ना बस ..

इतना बोलते ही फूट-फूट रोने लगी … माधुरी ने उसको बैठाया और प्यार से सर पर हाथ फिरा कर बोली … बता ना … क्या किया रमेश ने…? रुक मै अभी आई ..वापस आई तो उसके हाथ मे चाय के दो कप और कुछ खाने का सामान था …. ये ले चाय पी और बता क्या हुआ है….

धीरे धीरे लीला ने सम्हलते हुए कहा दीदी जी … आप तो जानती हो ना मै कितनी मेहनत करती हूँ … सिर्फ अपने बच्चों के लिए …ये रमेश इसका बस चले मेरी तनख्वाह की भी दारु पी जाए बच्चों की स्कूल की फीस जमा करनी थी ..एक एक पैसा जोड़ा था बस आ गया मांगने, कल वापस कर दूंगा … मेरे मना करने पर बहुत मारा ..मगर मैंने भी पैसे नही दिए … और कल स्कूल जाकर फीस जमा कर दी .. मै नहीं चाहती दीदी जी कल को मेरे बच्चे भी मेरी तरह छोटा मोटा काम करके जिंदगी काटें…अपनी तो जिम्मेदारी समझता नही और मुझे भी करने नही देता… मै उस से तो कुछ नही मांगती क्यों नही जीने देता चैन से ..मै तो उसको नही रोकती फिर वो क्यों रोकता है हर समय टोंकाटांकी करता रहता है …

धीरे से चाय के जूंठे कप उठाकर किचन मे चली गयी और अपना काम करने लगी … जैसे अचानक याद आया हो .

दीदी जी आपको जाना होगा कुछ खाने का बना दूँ ?

नही मेरी छुट्टी है आज … तू आराम से काम कर मै तो नहाई भी नहीं हूँ …

लीला ने अपना काम निपटाया और बता कर चली गयी … मै जा रही हूँ दीदी जी ..

माधुरी ने सर हिला कर अनुमति दे दी … उठकर अंदर आ गयी … माधुरी ने सोचा लाओ दिव्या को फोन कर के एक बार उसका हाल ले लू बहुत परेशान थी सुबह … दो बार फोन मिलाने पर दिव्या ने फोन उठाया उसकी आवाज़ मे सुबह वाली बात नहीं थी …

माधुरी ने पूछा क्या कर रही थी?

दिव्या ने बताया अभी बाज़ार से लौटी हूँ … भुवनेश्वर वाली ननद आ रही हैं कल .. उनके ससुराल मे शादी है दो दिन हमारे पास रुक कर जाएँगी तो घर का कुछ सामान और उन लोगों को विदाई मे देने के लिए गिफ्ट लेंने गए थें.. उनके आने के बाद तो टाइम नही मिल पायगा तो इन्होने कहा आज मै भी फ्री हू चलो…

माधुरी ने कहा फिर तो काम बहुत हो गया होगा …

हाँ मगर कर लूंगी चिंता मत कर दिव्या हसते हुए बोली … खैर तू बता कैसे फोन किया ?

माधुरी ने कहा मै दो दिन के लिए बाहर जा रही हूँ ऑफिस के काम से ये ही बताना था .. ओके बाय कह कर फोन काट दिया …

दिव्या से बात करने के बाद माधुरी अजब सी सोच मे पड़ गयी … क्या जिंदगी है औरत की भी … जिस पति से इतनी नाराज़ थी अब उसकी ही बहन की आने की सूचना मिलने से इतनी खुश है … कैसे-कैसे दौर से से गुज़रती है विवाहिता महिलायों की ज़िंदगी …एक इतनी पढ़ी लिखी सुसंस्कृत परिवार से और दूसरी गरीब अनपढ़ .. मगर ससुराल और पति से एक सा ही व्यवहार पातीं हैं … कितना अच्छा किया मैंने जो इतने दबाव के बाद भी शादी नही की … माधुरी ने लंबी चैन की सांस ली और तार से तौलिया उठा कर गुनगुनाती हुयी नहाने चली गयी ….

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