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Future Planner is Always Happy

Published by Durga Prasad in category Family | Hindi | Hindi Story with tag admission | Engineering College | son | train

अग्रसोची सदा सुखी ! (Future Planner is always happy): My younger son got a seat at Engineering College of Mumbai. In limited time , I made plan to send him to Mumbai. Read Hindi story from an autobiography

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Hinsi Story – Future Planner is always happy
Photo credit: marykbaird from morguefile.com

यह बात उस समय की है जब मेरे तीसरे पुत्र शिवाकांत का सरदार पटेल कालेज ऑफ़ इंजीनियरिंग , मुंबई में एड्मिसन होना निश्चित हो गया. मैं अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त था . उसी वक़्त श्रीकांत का फोन आया कि मुझे शिवाकांत के लिए हावड़ा से मुंबई के लिए अति शीघ्र स्टेसन जाकर टिकट कटवा लेना है तथा बिना विलम्ब किये उसे ब्लेक डायमंड एक्सप्रेस से हावड़ा भेज देना है ताकि उसका एड्मिसन वक़्त रहते हो जाय.

मैंने घर फोन करके इस बात की सूचना लल्ला ( शिवाकांत ) को दे दी तथा तुरंत मोटर साईकल से बबलू को लेकर निकलने की हिदायत कर दी. समय करीब एक का होगा. लल्ला उस वक़्त खाना खा रहा था. मैंने यह भी बता दिया कि मैं अपनी गाडी ( कार ) लेकर सिंह जी की चाय दूकान के पास खड़ा रहूँगा. दस मिनट भी नहीं हुआ होगा कि बबलू मोटर साईकल से आता हुआ दिखलाई दिया. वह लाल रंग का शर्ट पहना हुआ था . पिछली सीट पर लल्ला बैठा हुआ था. मैंने दूर से ही उसे आते हुए पहचान लिया था. समय बहुत ही कम था.

पास आते ही मैं बबलू के पीछे बाईक में बैठ गया और लल्ला को कार से स्टेसन आने के लिए कहा. अजय ( Driver ) को गाड़ी लेकर स्टेसन आने की बात पहले ही बता दी थी. अजय शीघ्र ही मेरी बात समझ गया और रवाना हो गया. मैंने बाईक इसलिए चुनी थी कि ट्रेफिक जाम रहने पर भी किसी न किसी तरह दायें – बाएं काटते हुए निकला जा सकता है, जबकि कार से नहीं , और वो भी बिना किसी बाधा – विपत्ति के कम समय में ही स्टेसन पहुंचा जा सकता है . हमने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. जाम रहने के बाबजूद हम शीघ्र स्टेसन पहुँच गये और शिवाकांत के लिए एक टिकट हावड़ा से मुंबई ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में स्लीपर क्लास में कटवा लिए.

मेरे बड़े लड़के ने इंटरनेट में देख लिया था कि ट्रेन में मात्र दो ही स्लीपर खाली है. जब हमें शिवाकांत के लिए कनफर्म्ड टिकट मिल गया , तब हमारी जान में जान आई. जैसा कि श्रीकांत ने बतलाया था कि एड्मिसन के लिए महज चार दिन ही बचे हैं. टिकट देकर लल्ला को बबलू के साथ बाईक से घर के लिए रवाना कर दिया तथा तीन बजे के करीब उसे सूचित करते हुए स्टेसन जाने की बात भी बता दी. लल्ला को अकेले हावड़ा जाना और हावड़ा से मुंबई जाना था. यह उसके लिए इतनी दूरी अकेले तय करना कितना कठीन था , मैं ही बता सकता था . मेरे लिए कितनी चिंता की बात थी , यह सिर्फ मैं ही जानता था. मुझे ज्यों ही फोन मिला . पता चला लल्ला घर से चल चूका है .

तत्क्षण मैं गाडी से चल दिया. अजय को हिदायत दे दी थी कि वह घंटे दो घंटे के लिए गाडी छोड़कर कहीं न जाय. मुझे आते देखकर ही सारी बातें समझ गया. हमलोग कुछेक मिनटों में ही स्टेसन पहुँच गये. मेरे बाद लल्ला बबलू के साथ पहुँच गया . हम एक नंबर प्लेटफोर्म पर चले गये और ब्लेक डायमंड एक्सप्रेस में खाली जगह देखकर एक बोगी में सवार हो गये. लल्ला तो अभी बालक ही था – दुनिया व दुनियादारी से महफूज. ट्रेन खुलने में कुछ ही मिनट बाकी थे . मैं लल्ला से बात करने में मशगूल था . मैं उसे समझा रहा और हिम्मत दिला रहा था कि कैसे सुरक्षित यात्रा किया जा सकता है और गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है. मैंने देखा पास ही एक अधेड़ उम्र के सज्जन बैठे हुए हैं. मैं उनके पास गया और हाथ जोड़ कर विनती की कि आप इस अबोध बालक का ख्याल कीजियेगा. हावड़ा तक जा रहा है. वहाँ से मुंबई जायेगा – ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस का स्लीपर टिकट है. क्या आप भी मुंबई तक जायेंगे?

हाँ , मुंबई तक जाऊंगा.

‘तब तो एक अभिभावक की तरह इस लड़के को अपने साथ ले जायेंगे, इसके लिए मैं आप का आभारी रहूँगा. असल में लड़का कभी बाहर इतनी दूर सफ़र में अकेले नहीं निकला . इसी लिए बड़ी चिता हो रही है मुझको कि … ’’

जो पालता – पोसता है बच्चों को , फूल की तरह ,वही दर्द को समझ सकता है. लल्ला मेरे सभी बच्चों में जरूरत से कुछ ज्यादा ही सुकुमार था. यह अकाट्य सत्य है कि माँ – बाप को ऐसे बच्चों की चिंता कुछ ज्यादा ही सताती रहती है.

सज्जन व्यक्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया और आश्वस्त किया, ‘ आप निश्चिन्त रहिये , मैं इसे अपने साथ आराम से ले जाऊंगा. ’’

गार्ड ने आखीरी सीटी दे दी. मैं जल्द बोझिल क़दमों से गाडी से झटपट उतर गया. लल्ला दरवाजे तक हमें ( मुझे और बबलू को ) विदा करने आया और हाथ हिलाता रहा तबतक जबतक गाडी आँखों से ओझल नहीं हो गई. मैं स्टेसन से बाहर आया , अजय को भी बुला लिया और साथ-साथ चाय पी. बाईक लेकर बबलू घर लौट गया . मैं कार से घर चला आया . वाईफ दरवाजे पर ही मुझे इन्तजार करती हुई मिल गयी.

पास पहुँचते ही बोल पडी, ‘ लल्ला को अच्छी तरह समझा – बुझा दिया न आपने ? ’

“हाँ , एक सज्जन आदमी मिल गया , गुजराती है, वे भी हावड़ा से मुंबई जा रहे हैं, उनका साथ लगा दिया और ख्याल रखने के लिए कह दिया. कह रहे थे ऐसे वक़्त में आदमी आदमी का काम न आये तो सब व्यर्थ . मुझे तो सज्जन पुरुष लगा . बाकी भगवान मालिक , साईं बाबा की कृपा से सब कुछ ठीक ही होगा. उन पर भरोसा रखो. ’

पत्नी मेरी बातों से उतनी संतुष्ठ नहीं हुयी, लेकिन इसके सिवाय कोई चारा भी तो नहीं था. ब्लेक डायमंड एक्सप्रेस करीब साढ़े नौ बजे रात तक हावड़ा पहुँच जाती है – यह मुझे मालूम था . ज्ञानेश्वरी का डिपारचर टाईम करीब ग्यारह बजे रात को थी . ट्रेन छूटने का कोई सवाल ही नहीं था. मैं इतना चिंतित था कि घर के भीतर चहल कदमी कर रहा था.

वाईफ ने कई बार खाने के लिए आवाज दी , लेकिन हर बार मैंने “ थोडा रुको न , खाते हैं . पहले पता तो चल जाय कि लल्ला सकुशल पहुँच गया कि नहीं .’’

रात के दस बज गये , फिर भी कोई खबर नहीं मिली. मैं हतास होकर फोन के पास बैठ गया . साईं किसी को निराश नहीं करते जो उनपर दिल से भरोसा करते हैं . फोन की घंटी बजने लगी . मैं दौड़ कर चोंगा उठाया. लल्ला की आवाज थी . उसने सूचित किया कि सब कुछ ठीक है . अंकल बहुत ही अच्छे आदमी हैं . बहुत ख्याल रखते हैं मेरा . आप किंचित मात्र भी चिंता न करें . जहाँ भी मौका मिलेगा , आप सब को फोन करता रहूँगा . मेरी जान में तब जाकर जान आयी. मैंने वाईफ को सूचित किया .

“अब तो खाना खा लीजिये . आप जरा सा में ही घबडा जाते हैं .”

“बाप होती तब तुम्हें पता चलता कि दर्द क्या होता है उनका बच्चों के प्रति . ”

देखा पत्नी कोई माकूल जबाव तलाशने में मशगुल है . और मैं ?
और मैं चटखारे ले – ले कर लिट्टी – चोखा खाने में व्यस्त हो गया |

 

लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , गोबिंदपुर , धनबाद | दिनांक : ३० अप्रील २०१३ दिन : मंगलवार |
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