This Hindi story highlights the manliness of an Indian husband who is fond off to get it during His whole Life span. A small act of His wife disturbed Him but He get it back again by overpowered Her.
दीवार पर घड़ी रात के आठ बजा रही थी । मन में पीने की इच्छा सी होने लगी थी । मैं सोचने लगा कि पीऊँ या नहीं ,अभी आस्था को मरे तेरह दिन ही तो हुए हैं ……क्या अच्छा लगेगा ऐसे ,कोई देखेगा तो क्या सोचेगा ? मगर फिर अचानक से मन दूसरी तरफ करवट लेने लगा कि सोचेगा तो सोचेगा ,क्या फर्क पड़ता है और वैसे भी अब सिर्फ घर के लोग ही तो बचे हैं ,बाकी सब रिश्तेदार तो कल तेहरवीं के बाद जा ही चुके थे । मैंने उठ कर अलमारी से बोतल निकाल ली और पेग बनाने लगा । शायद मैं आस्था को भूलना चाहता था मगर भूल नहीं पा रहा था ।
अभी एक सेकंड पहले ही जबान से निकला था ,”आस्था ,ज़रा सलाद तो काटना ।”
इतने सालों से वही तो मेरे पीने के साथ खाने का ध्यान रखती थी । हर बार यही कहती थी कि पिया करो तो साथ में कुछ ले जरूर लिया करो खाने का । और मैं हँस कर यही कहता था कि तुम हो तो । मगर कौन जानता था कि ये साथ बस यहीं तक का होगा । अब तीस सालों का साथ कोई एक-दो पेग पीने से तो जाने से रहा ना पर फिर भी शायद मैं खुद को “नशे” से बहलाकर सोना चाहता था । उसके जाने के बाद से समझ ही नहीं आ रहा था कि कहाँ से अपनी ज़िंदगी की शुरुआत करूँ ? मैं रोज़ की तरह इंटरनेट खोल कर बैठ गया । कुछ उदासी भरे गाने सुने मगर दिल को सुकून नहीं मिला ,फिर ग़ज़लें चला कर बैठ गया मगर तब भी मन अशांत सा ही रहा । अब मैंने भगवान् के भजन चला लिए जो मैं अक्सर ही अकेले में सुनता था । मुझे अब अच्छा सा प्रतीत होने लगा ,शायद जीवन-मृत्यु का सार अब समझ सा आने लगा था । मैं बहुत देर तक उन्हें सुनता रहा ……आस्था का ख्याल अपने मन से दूर करता रहा । कभी-कभी मन के भर आने पर एक-दो आँसू आँखों से छलक आते थे और मैं उन्हें हाथों से साफ़ करके फिर से पेग बनाने लगता था ।
तभी मुझे आस्था की याद फिर से गहराने लगी । मैं सोचने लगा कि पागल थी वो ,रात-दिन इस कंप्यूटर से चिपकी रहती थी ,कहती थी कि मैं एक Writer हूँ । Writer ……. हा …हा …मैं ज़ोर से हँस दिया । Writer भी भला क्या ऐसे होते हैं ,पता नहीं क्या-क्या लिख कर समय बर्बाद करती रहती थी । बेफकूफ इतना भी नहीं जानती थी कि उसके इस तरह से मुफ्त में लिखने से उसको क्या मिलेगा । Passion …पूछने पर वही passion की दुहाई । इन औरतों को भी भला कहीं ये Passion शब्द सूट करता है कहीं से । अरे घर के इतने काम होते हैं ,अगर उन्हें ही अच्छे से करें तो वही Passion नहीं बन जाते क्या ? मगर इस तरह से इंटरनेट पर लिख-लिख कर एक तो खुद का समय बर्बाद और दूसरा इंटरनेट और बिजली का बिल मेरे कंधों पर लाद देना कहाँ की समझदारी थी ? मगर पत्नी थी मेरी …… अब रोक भी लगाता तो कितनी ना ?
मैं उसे रोज़ डाँटता था और वो अपना मुँह नीचा करके सुनती रहती थी । अब मेरे आगे जबान खोलती तो देता नहीं क्या उसके मुँह पर दो-चार हाथ । मगर अब क्या फायदा …… अब तो वो इस दुनिया में है ही नहीं । मैं फिर से उदास सा हो गया । ऐसा नहीं था कि मैं उसे प्यार नहीं करता था मगर बस अपने पुरुषार्थ के आगे उसे हावी नहीं होने देना चाहता था । वो तब भी मुझसे खुश ही रहती थी ,हाँ बस जब कभी मैं उसे गुस्से में मारता था तब जरूर वो मन ही मन दुखी होती थी …… शायद मन ही मन मुझे गाली भी देती थी । लेकिन मेरे खिलाफ नहीं जाती थी ……मेरी शिकायत किसी से नहीं करती थी क्योंकि मैं उसे उसके घर जाने ही नहीं देता था । अक्सर पत्नियाँ अपने घर जाकर ही ज्यादा मुँह खोलने लगती हैं क्योंकि तब वो अपने माता-पिता को अपना हिमायती समझती हैं और जब हिमायती के पास ही नहीं भेजोगे तो मुकदमा कहाँ से बनेगा ? ऐसी ही सोच में शायद मैं भी जीता था ।
मैंने भजन सुनने बंद कर दिए और सोचने लगा कि उसने इतने सालों में पता नहीं क्या-क्या लिखा और मैंने उसका लिखा हुआ अब तक कुछ भी नहीं पढ़ा । क्यूँ ना आज उसको ही पढ़ा जाए ,देखूं तो सही कि उसकी सोच में कहीं कोई Writer बसता भी था या नहीं ? बड़े ही रुआब से मुझसे कहती थी कि जब कभी भी मेरी याद आये तभी Google पर मेरे नाम का search मार लेना ,जैसे बेचारा Google तो उसी के नाम का मोहताज़ हो । उसे अपने लेखों पर एक गर्व सा रहता था हमेशा ,पता नहीं क्यूँ मगर अक्सर वो ऐसा ही कहा करती थी कि मैं इस दुनिया में रहूँ या ना रहूँ …… मगर मेरे लिखे शब्द यहाँ सदा ही दमकते रहेंगे । क्या उसे अपनी मृत्यु की निकटता का पहले ही आभास था या फिर वो मुझे अपने लेखों से रुबरु कराना चाहती थी । मैंने उसका favourite link ” Your Story Club” दबा दिया । मेरी पत्नी के नाम से लिखी ढेरों कवितायें और कहानियाँ वहाँ जीवंत बनकर दमक रही थीं । अब मुझे ये एहसास होने लगा कि कलाकार कभी भी मरता नहीं है …… वो अपनी कला को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक बनाकर सहेज जाता है । उसके भी लेखों की वहाँ एक मोटी सी किताब छपी हुई थी । मैं देखकर हैरान था कि वो इतना सब लिखती थी । आखिर क्या वजह थी जो उसे यहाँ लिखने पर मजबूर करती थी ? क्या वो मुझसे खुश नहीं थी या फिर उसे सदा ही कुछ पाने की लालसा बेचैन करती रहती थी ? मैं सोच में पढ़ गया कि आखिर उसके दिमाग में पलता क्या रहता था ? क्या मेरे लिए कोई षड्यंत्र या फिर समाज के लिए कोई शिक्षा ?
मैंने पढ़ना शुरू किया ……समझ ही नहीं आया कि कहाँ से शुरू करूँ। किसी कविता में सच से भरी बातें थी तो किसी में एक लम्बा सा उपदेश । कोई कविता नारी उत्थान पर आधारित थी तो कोई पुरुषों पर कटाक्ष । मैं सोचने लगा कि अक्सर लेखक इन्ही सब मुद्दों को बार-बार नए-नए रूप में पेश करते जाते हैं । तभी मेरी नज़र उसकी लिखी एक कविता पर पड़ी जिसमे उसने अपने किसी प्यार को उजागर किया था । मैं पढ़ने लगा और उसका अर्थ समझने लगा । हाँ ,मैं शायद गलत ना था । कोई था उसके जीवन में जिसको उसने इतनी खूबसूरती से यहाँ दर्शाया था । यानि कि कोई मुझसे भी ज्यादा खूबसूरत इंसान को वो अपनी कल्पनाओं में बसर करती थी । मगर कौन था “वो” ?
मैं बड़ा ही परेशान सा होकर उसके जीवन में आये उस पुरुष को जानना चाहता था । अब मैं पागलों की भाँति उसकी लिखी हुई कवितायों को पढ़ने लगा । हाँ एक नहीं ,दो नहीं बल्कि ऐसी बहुत सी कविताएँ थी जिसमे उसने अपने प्रेमी का वर्णन किया था और मेरा वर्णन उसकी लिखी एक कविता में भी ना था । मतलब कि मेरे साथ बिताए हुए अतरंग क्षणों का मूल्य उसके लिए कोई महत्व नहीं रखता था । अपने प्रेमी के साथ किये चुम्बन को भी उसने एक तड़प के साथ यहाँ लिखा था जिसको पढ़कर Readers इतने भावुक हो गए थे कि उसकी प्रशंसा में ना जाने कितने ही सन्देश यहाँ छपे थे । अब मुझे उससे जलन होने लगी थी । मैं अब बेचैन सा होने लगा और हर लेख के नीचे छपी हुई तारीख के हिसाब से उसकी कवितायों को एक क्रम के अनुसार लगाकर उसके लिखे हुए लेखों की कड़ियों को जोड़ने लगा था । अब मैं समझ गया था कि वो वही सब ज्यादातर लिखती थी जो उसकी रोज़-मर्रा की ज़िंदगी में अक्सर घटित होता था जैसे कि मेरा उसको मारना ,उसका मुझसे बेरुखी का व्यवहार करना आदि ।
अब मैं समझने लगा था कि वो मुझसे दूर क्यूँ भागती थी ,क्यों सारा दिन इस कंप्यूटर से चिपकी रहती थी ,शायद इसलिए कि वो मेरे “पुरुषार्थ” से परेशान थी या फिर वो किसी और को अपने जीवन में लाकर उसके संग बिताए हुए पलों को यहाँ सहेजना चाहती थी । मगर उसके जीवन में किसी और पुरुष का होना मुझे असम्भव जैसा सा प्रतीत होता था क्योंकि मेरी आज्ञा के बिना वो घर से बाहर कहीं जाती ही नहीं थी और घर से बाहर जाए बिना किसी पुरुष के प्रति आकर्षण भला कैसे सम्भव हो सकता था ? लेकिन उसके लिखे हुए लेख उसके अपने प्रेमी से हुए मिलन को यहाँ जीवंत सा दर्शा रहे थे । शायद किसी ने सच ही कहा है कि त्रिआ (औरत ) चरित्र का कोई भरोसा नहीं ,कब दगा दे जाए कोई नहीं जानता । अब मैं उसके जीवन में आये उस पुरुष के इकलौते नाम को खोजने का प्रयास करने लगा । मगर जितना ज्यादा मैं खोजने लगता उतना ही ज्यादा मैं खुद को बँधा हुआ सा पाता । ऐसी कोई बात नहीं होती थी जो वो मुझे नहीं बताती थी तो फिर ये ही बात उसने अब तक मुझसे क्यूँ छिपाए रखी ? क्या मैंने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की या फिर मैं अपने पुरुषार्थ को हारते हुए नहीं देखना चाहता था ।
काफी खोजने के बाद भी जब मुझे कोई सुराग नहीं मिला तब मैंने अपनी पत्नी के लिखे हुए शब्दों को एक काल्पनिकता का नाम दे दिया और ये मान कर संतोष कर लिया कि लेखक ऐसे ही होते हैं …… अपनी कवितायों और लेखों के ज़रिये वो कहीं भी दूर तक चले जाते हैं और उन्हीं कल्पनाओं में से किसी भी नए चेहरे को खोज कर यहाँ ले आते हैं । अब भला सब कुछ तो सच नहीं हो सकता था ना ?
मैंने गिलास को फिर से भर लिया और एक संतुष्ट मन से अपने पेग को ख़तम करके सोचने लगा कि आस्था एक चरित्रवान स्त्री थी । मुझे उसके चरित्र पर गर्व था । “चरित्र” यही तो वो शब्द था ना जिसको हम कॉलेज के दिनों में किताब में पढ़कर क्लास में ज़ोर-ज़ोर से हँसते थे । मुझे आज भी अपने मित्र कि वो पंक्तियाँ मुँह ज़बानी याद हैं ,” स्त्री के चरित्र का कोई भी विश्वास नहीं होता ,कब डोल जाए क्या पता । हर स्त्री अपने जीवनकाल में किसी न किसी पर पुरुष पर आसक्त हो ही जाती है । ” तो क्या आस्था भी ………?
पुरुष चाहे अपने जीवनकाल में कितने ही शारीरिक सम्बन्धों को स्थापित करे परन्तु अपनी पत्नी के जीवनकाल में आये हुए एक नाम को भी वो बर्दाश्त क्यूँ नहीं कर पाता है ? शायद यही पुरुष की मानसिकता है जो उसे अपनी पत्नी को पूरी तरह से उसकी ओर समर्पित होने को बाधित करती रहती है । मेरे अंदर फिर से एक नया पेग पीने की इच्छा घर करने लगी और मैंने अपनी मानसिकता को एक और जाम तले डुबो दिया । बोतल अब तक आधी से ज्यादा खाली हो चुकी थी पर मुझे आज “नशा” पता नहीं चढ़ क्यूँ नहीं पा रहा था । अब मैं उस शख्स को अपने मन ही मन में कोसने लगा था जिसने मेरी पत्नी को इस कदर बहला लिया था कि वो उसे अपने लेखों में उतारने लगी थी । मेरे मन में शक शायद अब घर कर चुका था तभी मैं रह-रह्कर आस्था के जीवन को टटोल रहा था । अचानक मैंने घड़ी की तरफ नज़र दौड़ाई ,उसमे ग्यारह बज चुके थे । सामने नौकर खाने की थाली रखकर कब का जा चुका था । मुझे भी अब नींद सी आने लगी थी । मैंने खाना खाया और बिस्तर पर लेट गया ।
सामने दीवार पर घड़ी के ठीक नीचे आस्था तस्वीर में मुस्कुरा रही थी । मैं जानता था कि वो मुझसे कभी झूठ नहीं बोलती थी और अक्सर अपने द्वारा की गयी गलती को बड़े ही सहज भाव से सर झुकाकर स्वीकार कर लेती थी । उसके बाद अंजाम चाहे जो भी हो उसे वो मान्य होता था । अब मैंने अपने दिल में उसे पुकारा और दीवार पर लगी तस्वीर से पूछने लगा ,” आस्था बताओ मुझे ,क्या तुम्हारी ज़िंदगी में कभी कोई दूसरा मर्द आया था जिसे तुम अपने लेखों में उतारती थीं ?” मैंने अब तक अपनी पलकें मूँद ली थीं । तभी आस्था का चेहरा मेरे मानस पटल पर उभर आया । वो हमेशा की तरह अपना सर झुकाए मेरे सामने खड़ी थी और कह रही थी ,” दूसरा मर्द शादी के बाद किसी भी स्त्री के जीवनकाल में किसी असुंतष्टि के कारण ही आता है । हाँ ,मेरी किस्से-कहानियों का वो दोस्त सबसे अलग था । हाँ मेरे जीवन में भी कुछ समय के लिए उसका साथ गर्माया था ।” इतना कहते ही आस्था का चेहरा गायब हो गया ।
मैंने अपनी बंद पलकें एक झटके से खोल दी । आस्था की तस्वीर अब मुझे एक छल से भरी हुई प्रतीत होने लगी । मैंने पास ही पड़ा हुआ पेपर वेट बहुत तेज़ी से उठाकर तस्वीर पर दे मारा । तस्वीर चकनाचूर होकर फर्श पर बिखर गयी । मैं बहुत ज़ोर से हँसने लगा । एक “पुरुषार्थ ” मेरे चेहरे पर दमक रहा था । मैं सोचने लगा कि पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा ही अजीब सा होता है । सारी ज़िंदगी उसपर अपना अधिकार जमाता रहा और मरने के बाद भी उस अधिकार के छिनने का एहसास मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ । शायाद यही अधिकार हिन्दुस्तानी विवाह का एक मूलभूत आधार है । आस्था की तस्वीर अब फर्श पर पड़ी मुस्कुरा रही थी पर क्योंकि अब वो मेरे पैरों के नीचे पड़ी थी इसलिए अब मेरे मन में एक अलग सा सुकून भरा हुआ था । मेरे लिए इस वक़्त उस दूसरे मर्द का उसके जीवन में आना इतना महत्व नहीं रखता था जितना अपने “पुरुषार्थ” को फिर से पाना । मैं पागलों की भाँति और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और बोतल में बची हुई बाकी शराब को भी अपने हलक में उतारकर बिस्तर पर ढेर होकर सो गया ।
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