This is a true Hindi story of me and my sweet little squirrel. A beautiful and lovely relationship between human and animal.
जैसे ही चाय लेके बरांडे पे आयी..देखा गार्डन में एक छोटी सी गिलहरी एक पेड़ के ऊपर तेजी से चू चू करती भाग रही है…उसकी ये हरकते देख अचानक हंसी आ गई और मेरा मन दौड़ पड़ा उन पुरानी यादों के गलियारे की तरफ जहा उससे जुड़ी कितनी सारी बातें यादें बन के मेरे दिलो दिमाग पे छा गई। एक हिंदी फिल्मों की तरह आँखों के सामने रील चलने लग गई।
जब मै स्कूल में थी तब मैंने महादेवी वर्मा की एक कहानी पढ़ी थी “गिल्लू”। उस कहानी में एक छोटे से जीव और इंसान के बीच के रिश्ते की एक भावनात्मक और दिल को छू लेने वाली कहानी थी। वो इतनी ज्यादा प्रभावपूर्ण थी कि वो मेरे दिल में एक ख़ास छाप छोड़ गई और सोचने लग गई काश! मै भी महादेवी वर्मा होती। वक़्त कब पंख लगा के उडा पता ही नही चला वो कहानी मेरे दिल में एक इच्छा बन कर जिन्दा तो थी किन्तु वो तो एक कहानी बस थी मेरे लिये…लेकिन पढाई और व्यस्तता के चलते कुछ समय के लिए बस भूल गई थी और तब तक मै पोस्ट ग्रेजुएशन में आ चुकी थी ।
एक दिन मुझे अपनी दोस्त के घर कुछ किताबें लेने जाना पड़ा। निशा मेरी दोस्त…उसके घर पे बहुत सुन्दर सा बगीचा था। उसी के घर के बरांडे पे बैठ कर बातें करने लग गए और पड़ोस के ही कुछ बच्चें उस के बगीचे में खेल रहे थे। हम बात ही कर रहे थे कि अचानक बच्चों के चींखने की आवाज़ आई। हम भागे क्योंकि हमे लगा कोई बच्चा खेलते समय गिर गया शायद। वहा देखा सारे बच्चे एक घेरा बना के खड़े थे। बच्चों को हटा के देखा तो एक नन्ही सी गिलहरी चोंट लगने की वजह से सुस्त सी निढाल गिरी हुई थी। मैंने झट से उसे हाथों में उठाया और घर के अन्दर ले आई।उसकी निढालता देख मै थोड़ा घबराई परन्तु उसकी चलती सांसो ने एक हौसला दिया कि नही उसे कुछ नही होगा। मै बचाऊँगी इस ‘नन्ही’ सी जान को । निशा तब तक में दूध ला चुकी थी, रुई के पतले से फाहे को दूध में डुबो कर उसके मुह को हल्का सा खोल के डाला, चोंट लगने की वजह से उसे गटकने में दिक्कत हो रही थी।
फिर उसे मै अपने साथ घर ले आयीं। तीन दिन काफ़ी सुस्ती में गुज़ारे, धीरे-धीरे वो ठीक होने लगी। फिर तो उसने अपनी मदमस्त करने वाली हरकतों से पूरे परिवार का मन मोह लिया। वो भी हमारे घर की एक ख़ास सदस्य बन गई। सब उसे प्यार से “गिल्लु” बुलाते, अब उसको अपना एक नया नाम मिल चूका था…”गिल्लू”। गिल्लू सबसे ज्यादा मेरे दिल के करीब आ चुकी थी। अब तो ‘हमारी’ पक्की वाली दोस्ती भी हो चुकी थी। अब तो एक अनोखा रिश्ता बन चूका था हमारे बीच…ऐसा रिश्ता जिसमे कोई स्वार्थ नही था, ना कोई लेन देन था…था तो बस प्यार का रिश्ता। चूंकि मैंने उसे कभी बाँध के नही रखा, मै उसे बस ठीक करना ही चाहती थी। उसे ‘आज़ाद’ छोड़ रखा था, अपनी मनमर्जी से कही भी रहे। पर…उसका दिल कहा लगता था मेरे बिना…शायद हम दोनों का ही मन नही लगता था। जब भी पढने बैठती, अपनी फूल झाड़ू जैसी सुन्दर ‘ पूंछ’ हिलाते हुए मेरे पुरे शरीर पर घूमने लग जाती। मना करने पर अपनी चोंच से मेरे हाथो को धक्का देती…मानो कह रही हो…मुझे प्यार करो, मेरी पीठ सहलाओ, मेरे साथ खेलो।
ऐसे ही हँसते खेलते वक़्त कब बीत गया..पता ही नही चला। पर कहते है ना कि ख़ुशी ज्यादा दिनों तक कहा टिकती है। मेरी खुशियों को भी नज़र लग चुकी थी। कैसे भूलु वो मनहूस शाम…जब मै अपने काम से बाहर जा रही थी, मैंने गिल्लू को बाय बोला ( वैसे तो हमेशा उसे अपने साथ ले के जाती थी पर आज जल्दी थी सो अकेले जा रही थी). वो मेरे पीछे-पीछे आई…गिल्लू नही चाहती थी कि मै उसे अकेले छोड़ के जाऊ। उसकी आँखे देख कर ऐसा लगा मानो वो बहुत दर्द में हो…एक अजीब सा दर्द। वही एक चीज़ मुझे मजबूर कर रही थी कि मै ना जाऊ…पर क्या करती जाना जो मजबूरी थी।
वो एकाएक सुस्त पड़ती जा रही थी। उसका पेट फूलता जा रहा था। उसकी बेचैनी लगातार बढती जा रही थी। खाना पीना सब छोड़ दिया था उसने…उसकी तबियत बिगड़ने लग गई, उसे ले के भागी तुरंत डॉक्टर के पास…दवाई दी। दवाई खाते ही बेचैनी थोड़ी कम तो हुई परन्तु ज्यादा देर तक स्थिर ना रह सकी। अचानक गिल्लू उठी गोद से मेरे हाथो की तरफ तेजी से भागी…और..और मेरे इन्ही हाथों में ‘उसने’ दम तोड़ दिया। गिल्लू! गिल्लू! बोल के फफक फफक के रो पड़ी। वहा उपस्थित सारे लोग मेरे इस ‘दर्द’ को मेरा पागलपन समझ के हंस रहे थे। डॉक्टर बोले- बेटा! क्यू रो रही हो? ये मर गई तो क्या हुआ दूसरी गिलहरी पाल लेना। मैंने रोते हुए बोला-डॉक्टर! मुझे तो यही गिलहरी चाहिए, क्या आप इसे वापस ला सकते है? वो चुप हो गए। गिल्लू का अंतिम संस्कार अश्रुधारा के साथ गंगा नदी में अंतिम विदाई विसर्जित कर दी। उसी भारी मन से वापस घर लौटी पर….खाली हाथ…!!!
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